हमारे देश की आजादी में बहुत सारे लोगों का योगदान है। लाखों लोगों की शहादत के बाद आज हमारे घरों में आजादी फल-फूल रही है। दिल्ली की सड़कों पर देश विरोधी नारे लगाने वाले लोगों को शायद पता ही नहीं कितने पूर्वजों के लहू से इस आजादी को रंगा गया है? न जाने कितने शहीदों के परिवारों ने कुर्बानियां दी हैं तब जाकर हम स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मना पाते हैं! आज ऐसे ही एक महान स्वतंत्रता सेनानी की जयंती है जिन्होंने कहा था,”मेरे ऊपर अंग्रेजों का एक-एक प्रहार उनके ताबूत में आखिरी कील की तरह साबित होगा।” स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 18 से 65 को पंजाब के मोगा जिले में हुआ था। पंजाब में अच्छे कार्य करने के कारण उन्हें पंजाब केसरी की उपाधि दी गई। लाला लाजपत राय को याद करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा महान स्वतंत्रता सेनानी पंजाब केसरी लाला लाजपत राय को उनकी जयंती पर शत-शत नमन।
लाला लाजपत राय का कहा था “पत्थर की लकीर”
लाला लाजपत राय साल 1880 में कोलकाता और पंजाब यूनिवर्सिटी के एंट्रेंस परीक्षा एक ही वर्ष में उत्तीर्ण करने वाले छात्र थे। 1882 में की परीक्षा पास की जिसके पश्चात उन्होंने वकालत की डिग्री को लेकर प्रैक्टिस करने लगे। लाला लाजपत राय आर्य समाज के संपर्क में आए और आर्य समाजी हो गए। 1885 में कांग्रेस की स्थापना करते समय लाला लाजपत राय इस पार्टी के प्रमुख सदस्य थे। आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लाला लाजपत राय को अंग्रेजों ने बर्मा की जेल में भेजा जेल से जाकर वह अमेरिका गए वहां से लौटने के बाद महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन का हिस्सा बने। लाला लाजपत राय की लोकप्रियता पूरे देश में ऐसी थी कि पंजाब में अंग्रेजो के खिलाफ उनकी आवाज को पत्थर की लकीर माना जाता था।
पंजाब का “शेर”
पंजाब में उनकी लोकप्रियता के कारण और उनका प्रभाव ऐसा था कि लोग उन्हें पंजाब केसरी यानी पंजाब का शेर कहते थे। साल 1928 में ब्रिटिश राज ने भारत में कुछ मामलों में सुधार लाने के लिए साइमन के नेतृत्व में एक कमीशन का गठन किया था। अंग्रेजों ने इस कमीशन में किसी भी भारतीय को जगह नहीं दी थी। जिसके विरोध में लाला लाजपत राय ने झंडा उठाया और अंग्रेजों ने उन पर इतना प्रहार किया कि 18 दिनों तक हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत से जंग लड़ते हुए 17 नवंबर 1928 को उन्होंने देह त्याग दी।