उत्तरप्रदेश के कानपुर के विक्ररुं गांव में गुरुवार रात हिस्ट्रीहीटर को पकड़ने गयी पुलिस टीम पर बदमाशों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी। इसके बाद 3 जुलाई को 21 नामजद तथा 60-70 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। लेकिन जिस तरह ये पूरा घटनाक्रम दिखाया जा रहा है उसके कुछ हिस्से ऐसे हैं जो दिखाई नहीं दे रहें हैं। क्योंकि विकास की मां का कहना है, ” वह 5 साल भारतीय जनता पार्टी 15 साल बहुजन समाज पार्टी और 5 साल समाजवादी पार्टी का सक्रिय सदस्य रहा है!” इसका मतलब यह है कि किसी न किसी समय किसी न किसी राजनीतिक पार्टी ने विकास का साथ दिया है। तो इस वक्त कोई भी राजनीतिक पार्टी बोलने का अधिकार नहीं रखती है और अगर हम विस्तार से देखें तो उत्तर प्रदेश पुलिस के जवानों की शहादत का कारण बहुत बड़ा हो सकता है।
इस प्रकरण ने ये बात तो सिद्ध कर दी है कि गुंडे और बाहुबलियों के तार बहुत गहरे हैं। वास्तव में विकास दुबे जैसे अपराधियों ने जो कृत्य किया है वह बिल्कुल भी माफी योग्य नहीं है और कानून की किताब में जो सबसे बड़ा दंड हो जो सबसे ज्यादा खूंखार अपराधी को दिया जाता हूं वह दंड विकास दुबे और उसके साथियों को दिया जाना चाहिए। और उत्तर प्रदेश पुलिस को एक ऐसा उदाहरण पेश करना चाहिए जिससे आने वाले समय में भी उत्तर प्रदेश में कोई ऐसी घटना ना घटित हो। एक ऐसा अपराधी जिसके ऊपर 60 मुकदमें दर्ज थे, जो थाने में बैठकर एक तत्कालीन राज्य मंत्री का कातिल रहा उसके बाद भी अगर वह सरकार और कानून की लचीली नीतियों के कारण बार-बार बेल ले पाता है और अपने क्षेत्र का एक बाहुबली नेता बन जाता है और पुलिस के 8 जवानों की शहादत का कारण बन जाता है।
पूरे प्रकरण से जुड़े कुछ अहम तथ्य-
- FIR लिखने वाले SO चौबेपुर को उनकी संदिग्ध गतिविधियों के कारण सस्पेंड किया जाता है।
- FIR में विरोधाभास पाया जाता है जैसे FIR में लिखा था कि जब पुलिस विकास के घर गई थी तब उस गांव में पर्याप्त रोशनी थी जबकि असलियत में विकास के गांव की बिजली को काट दिया गया था।
- FIR में यह भी लिखा गया कि मृत्यु के बाद पुलिसकर्मियों के शव इधर उधर पड़े हुए थे जबकि प्रत्यक्षदर्शियों ने यह बताया कि पुलिस के शवों का ढेर बना दिया गया था।
- विकास दुबे के साथी दयाशंकर अग्निहोत्री को पुलिस ने दबोच लिया है और अग्निहोत्री ने बताया कि पुलिस के आने की सूचना विकास दुबे को पुलिस के द्वारा ही पहले मिल चुकी थी इसके बाद विकास दुबे ने हत्यारों को जमा करना शुरू कर दिया और अपने अन्य साथियों को भी बुला लिया।
- SO विनय तिवारी और विकास दुबे के करीबी संबंध सामने आए हैं उसी थाने में देवेंद्र मिश्रा भी तैनात थे देवेंद्र मिश्रा और विनय तिवारी के संबंध कुछ अच्छे नहीं थे बताया यह जा रहा है कि विनय तिवारी ने ही विकास दुबे के द्वारा अधिकारी देवेंद्र मिश्रा को भी हटाने का प्रयास किया था और आपको बता दें कि विनय तिवारी विकास से मिलने घटना से कुछ लम्हे पहले भी गया था। लेकिन यह खबर किसी भी सीनियर अधिकारी को नहीं बताई गई।
- पुलिस ने इस पूरी वारदात को बहुत हल्के में लिया और पुलिस की पूरी टीम बगैर किसी सुरक्षा उपकरणों के साथ विकास दुबे के घर पहुंच गई।
- अगर हम इस पूरी घटना को देखें तो पुलिस ने अपने ख़बरियों से भी यह पता नहीं किया कि विकास दुबे के घर कितने लोग खड़े हैं और रास्ते में क्रेन मशीन के खड़े होने पर भी पुलिस के आला अधिकारियों ने इस बात को हलके में लिया।
यदि हम इन सभी बिंदुओं पर विचार करें तो हमें यह पता लगेगा कि कहीं ना कहीं पुलिस प्रशासन से बहुत बड़ी चूक हुई है इस घटना को लेकर। आप सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में विकास दुबे जैसे बहुत अपराधी हैं लेकिन उन सब की करतूत है और उन सबके काम तब तक सामने नहीं आते हैं जब तक वह किसी न किसी बड़े काम को अंजाम न दे दे।
विकास दुबे के मकान तोड़ने का प्रकरण
उत्तर प्रदेश सरकार ने तत्काल आदेश जारी कर विकास दुबे के घर को क्रेन मशीन से ढहा दिया। इस पर भी कुछ लोग कह रहे हैं कि यह सरकार का बहुत अच्छा कदम है प्रत्येक बाहुबली और प्रत्येक गुंडे के साथ यही कार्य होना चाहिए। लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि यह केवल और केवल बदले की भावना से की गई कार्रवाई है। सोशल मीडिया पर मकान को गिराने को लेकर कई सवाल वायरल हो रहे हैं जिनमें से कुछ निम्न है: विकास दुबे का यह पैतृक घर किस वजह से तोड़ा गया? क्या मकान अवैध तरीक़े से बना था? क्या मकान विकास दुबे के ही नाम पर है और उससे पहले उसे कोई क़ानूनी नोटिस दिया गया था? क्या उसे तोड़ने का कोर्ट का कोई आदेश था? मकान तोड़ने का क्या कोई क़ानूनी प्रावधान है?
विकास दुबे कोई साधारण अपराधी नहीं था विकास दुबे राजनीति और अधिकारियों के बीच में पला हुआ एक ऐसा सर्प था जिसे कानून ने और उत्तर प्रदेश की तमाम राजनीतिक पार्टियों ने दूध पिला पिला कर बड़ा किया था। और आज वक्त आने पर उसने अपने ही मालिकों को डस लिया उसने उन्हीं लोगों को डस लिया जो दिन रात मेहनत करके जो दिन रात अपने घरों को छोड़कर केवल और केवल उत्तर प्रदेश की जनता के लिए दिन और रात जाकर अपनी जान को खतरे में डालकर ड्यूटी करते हैं। इस समय पूरा देश केवल एक ही बात कह रहा है कि इस कुकृत्य की विकास दुबे और उसके साथियों को बहुत जल्दी सजा मिलनी चाहिए, क्योंकि एक अधिकारी अपने पूरे विद्यार्थी जीवन में गहन अध्ययन करने के बाद इन पदों को प्राप्त करता है। ऐसे में यदि कोई गुंडा मवाली उनकी शहादत का कारण बनता है तो यह बहुत ही गलत है।
क्या लगता है, सरेंडर करने के बाद भी पुलिस उसे जिंदा रखेगी?