दोस्तों आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी सुनाएंगे, जिसने तीन बार मौत को अपने करीब से देखा है। इंग्लैंड के रहने वाले जॉन बैबाकॉम्ब ली (John Babbacombe Lee) को तीन बार फांसी के फंदे तक ले जाया गया था, लेकिन वह तीनों बार मौत की सजा से बच गया था। आप भी सोच रहे होंगे कि भला ऐसा कैसे हो सकता है।
सन 1884 में जॉन ली (john babbacombe lee) एक महिला के घर पर नौकरी किया करते थे। वह महिला बहुत अमीर थी। एक दिन महिला के घर पर चोरी होती है और उसके जुर्म में वह जॉन ली को अपने घर से निकाल देती है।
कुछ महीने बात महिला को अपनी गलती का अहसास होता है और उसे जॉन ली पर दया आ जाती है। वह महिला जॉन को वापस काम पर रख लेती है, लेकिन उसे वापस काम पर रखना शायद महिला की सबसे बड़ी गलती थी। 15 नवंबर 1884 को उस महिला का अचानक खून हो जाता है और उसकी आधी जली लाश घर में मिलती है। वारदात वाली जगह पर केवल जॉन ली मौजूद होता है और महिला की मौत का सारा आरोप उसके ऊपर आ जाता है। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने देर ना करते हुए जॉन को फांसी की सजा सुना दी।
हालांकि जॉन (john babbacombe lee) खुद को बेकसूर बताते रहें, लेकिन सारे सबूत उनके खिलाफ थे। जॉन ने मौत से पहले कहा था कि यदि वह बेकसूर है और इस दुनिया में भगवान मौजूद है तो वे उसे बचा लेंगे। 23 फरवरी 1885 के दिन जॉन का मुँह ढककर फांसी के फंदे तक ले जाया गया। जल्लाद ने उसे फांसी देने के लिए हैण्डल खींचा, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि जॉन के नीचे मौजूद लकड़ी का दरवाजा खुला ही नहीं। जल्लाद ने हैण्डल को कई बार खींचा, लेकिन उसके कई प्रयासों के बाद भी दरवाजा नहीं खुला और जॉन फांसी से बच गया।
इसके बाद अगले दिन दोबारा जॉन को फांसी तक ले जाया गया, लेकिन अगले दिन भी वही घटना हुई। ठीक ऐसा ही तीसरे दिन भी हुआ और जॉन लगातार तीसरी बार फांसी से बच गया। इस बात से हर कोई हैरान था कि आखिर कैसे एक शख्स तीन बार मौत की सजा से बच सकता है।
न्यायालय के आदेशानुसार जाँच हुई तो पता चला कि एक लोहे के टुकड़े के कारण फांसी का तख्ता नहीं खुल पा रहा था। दोस्तों इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने जॉन की सजा माफ कर दी थी। कोर्ट का कहना था कि जॉन ने तीन बार मौत की सजा को महसूस किया है और इतनी सजा उसके लिए काफी है। इसके बाद लोगों को यही लगा कि जॉन को भगवान पर भरोसा था और भगवान ने ही उसकी मदद की है। 19 फरवरी 1945 को जॉन का 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था, लेकिन उनका नाम आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है।