आज ही के दिन हुई थी अमर शहीद भगत सिंह को फांसी, क्या आप जानते हैं उनकी फांसी से जुड़े हुए इन रहस्यों के बारे में

23 मार्च सन 1931 को अमर शहीद भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। लेकिन जिस समय वे जेल में रहे उनके साथ बहुत सारी ऐसी घटना घटित हुई जो लोगों को जीवन में प्रेरणा देती है। आज इस लेख में हम आपको बताएंगे कि अमर शहीद भगत सिंह से जुड़ी हुई ऐसी कौन सी बातें हैं जो प्रत्येक भारतीय को जानने चाहिए और किस तरह से कोई भी व्यक्ति भगत सिंह से प्रेरणा ले सकता है।

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लोग मानते हैं कि अमर शहीद भगत सिंह 1 साल 360 दिन जेल में रहे थे और इस समय में उनका वजन भी बढ़ गया था। लोगों का मानना है कि उनका वजन इसलिए बड़ा था क्योंकि वह खुश है कि वह वतन पर कुर्बान होने जा रहे हैं। जेल के सारे कैदियों में शोक का माहौल था वहीं दूसरी तरफ राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह हंसते-हंसते फांसी पर झूलने के लिए तैयार थे। अंग्रेज अधिकारी जानते थे कि भगत सिंह भारत के युवाओं के दिलों में बसते हैं और उनकी एक आवाज पर युवा कुछ भी कर सकते हैं। अंग्रेज अधिकारियों को इस बात का भी अंदाजा था कि यदि उन्हें फांसी दी गई तो देश का माहौल बिगड़ सकता है। इसीलिए इन तीनों अमर शहीदों को तय समय से 1 दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया गया।
असल में इनकी फांसी का दिन 24 मार्च तय किया गया था। सतलुज नदी के किनारे गुप-चुप तरीके से इनके शवों को ले जाया गया। इनके उनके शवों को यहीं पर जलाया जाने लगा, जब आग की लपटे लोगों ने देखी तो वहां पर लोग इकट्ठे हुए और अंग्रेज अधिकारी उनके शवों को छोड़कर चले गए तब वहां पर उपस्थित स्थानीय लोगों ने ही उनका अंतिम संस्कार किया था।

अमर शहीद भगत सिंह अपनी जेल यात्रा के समय में बहुत सारी पुस्तकों को पढ़ते थे लेकिन जब उनका अंतिम समय नजदीक आ रहा था उस समय वे लेनिन की एक पुस्तक पढ़ रहे थे। तब जेल में उपस्थित एक पुलिस वाले ने भगत सिंह से कहा कि आप की फांसी का समय हो चुका है चलिए…भगत सिंह बोले, “ठहरिये, पहले एक क्रन्तिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो ले।” अगले एक मिनट तक किताब पढ़ी। फिर किताब बंद कर उसे छत की और उछाल दिया और बोले, “ठीक है, अब चलो।”

भगत सिंह को जिस जगह फंसी दी गयी थी, आज वो जगह पाकिस्तान में है। जिस स्थान पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी उसी स्थान पर पर ट्रैफिक का गोल चक्कर बनाया गया है। उस गोलचक्कर पर कई साल पहले 1974 में पाकिस्तानी नेता और एक बड़े वकील अहमद राजा कसूरी के बाप नवाब मोहम्मद अहमद कसूरी की हत्या कर दी गयी थी। अहमद राजा कसूरी अपनी चार में अपने बाप के साथ थे जब उनपर गोलियां चलायीं गयी थीं। ऐसा कहा जाता है कि ये सब कुछ बेनजीर भुट्टो के कहने पर किया गया था। अहमद रज़ा कसूरी के दादा यानी मरने वाले मोहम्मद अहमद कसूरी के बाप उन लोगों में से एक थे जिन्होंने भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव की फांसी के बाद उनकी लाश की शिनाख्त की थी।

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