भारत बंद रहा बेअसर, किसानों से ज्यादा राजनीतिक पार्टियों ने किया जनता को परेशान

केंद्र सरकार के कृषि कानून को वापस लेने की मांग के बीच किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया था। लेकिन इस बंद का असर मिला जुला रहा। दिल्ली और अन्य राज्यों में रोज़ की तरह बाजार खुले दिखाई दिए। साथ ही कई लोगों ने इस बंद का पूर्ण रूप से बहिष्कार किया।

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केंद्र सरकार के कृषि कानून के खिलाफ देशभर में हो रहे आंदोलन की आग कम होने का नाम नहीं ले रही है। कृषि कानून को वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली की सभी सीमाओं पर डटें हजारों किसान केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं। इसी कड़ी में पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा समेत कई बड़े राज्यों के किसानों की ओर से मंगलवार को एक दिन का भारत बंद का आह्वान किया गया था। हर किसी की नजर इस बात पर थी कि क्या किसानों की ओर से हो रहे इस आंदोलन को आम जनता का समर्थन मिलेगा या नहीं? लेकिन मंगलवार को इसके विपरीत ही देखने को मिला। कृषि कानून के विरोध में भारत बंद का असर लगभग असफल रहा।

मंगवार की सुबह से ही कई बड़े शहरों के बाजारों में आम दिन की तरह रौनक देखने को मिली। ग्रामीण इलाकों में कुछ घंटों की बंदी के बाद बाजारों में दुकानदार और लोग फिर से सक्रिय हो गए जबकि शहरी क्षेत्रों में चाय-पान की दुकानों से लेकर मॉल व बड़ी दुकानें सुबह से ही खुली रहीं। असफल रहे भारत बंद के बाद राजनैतिक पार्टियों की हालत कैसी रही इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुकानों को बंद कराने के लिए सपा, बसपा, कांग्रेस, बहुजन मुक्ति मोर्चा, भीम आर्मी व आप पार्टी तथा अन्य राजनैतिक पार्टियों को सड़कों पर उतरकर भारत बंद के लिए लोगों का समर्थन मांगना पड़ा। ऐसे में साफ है कि जिस तरह से केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन की आड़ में विपक्ष की राजनीति जारी है उसके साथ आमजन खड़े दिखाई नहीं दे रहे।

मिला-जुला रहा बंद का असर

बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ मंगलवार की सुबह 11 बजे से दोपहर तीन बजे तक देशव्यापी बंद का आह्वान किया था। लेकिन देशभर की गतिविधियों पर इस बंद का असर कुछ खास तरह का देखने को नहीं मिला। हालांकि कुछ राज्यों में परिवहन सेवाएं जरूर प्रभावित हुईं लेकिन प्रशासन की मुस्तैदी ने अगले पल में ही माहौल को ज्यों का त्यों कर दिया। पुलिस प्रशासन ने सुबह से ही उन बड़े स्थलों पर चौकसी की जहां प्रदर्शन की आड़ में कुछ आसामाजिक तत्व असंवैधानिक गतिविधियों को अंजाम दे सकते थे।

दिल्ली के बाजारों ने किया बंद का बहिष्कार

किसानों के द्वारा बुलाए गए इस बंद का सबसे ज्यादा असर दिल्ली में देखने को मिलने वाला था। क्योंकि सभी किसान पिछले कुछ समय से दिल्ली की सीमाओं में घुसने की प्रयास कर रहे हैं। दूसरी तरफ इस बंद का समर्थन दिल्ली सरकार पहले ही कर चुकी थी। लेकिन दिल्ली के लगभग सभी मार्केट एसोसिएशन इस बंद के साथ खड़ी नजर नहीं आई। ‘भारत बंद’ के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में सुरक्षा के कड़े इंतजामों के बीच दिल्ली के सभी छोटे-बड़े बाज़ार खुले नजर आए। राष्ट्रीय राजधानी और देश के अन्य हिस्सों में परिवहन सेवाएं सामान्य रही तथा बाजार भी पूरे दिन खुले। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की तमाम कोशिशों के बावजूद दिल्ली की आम जनता ने भी भारत बंद का पूर्ण बहिष्कार किया।

कई नेताओं को किया नजरबंद

मंगलवार को भारत बंद का आह्वान किसानों द्वारा किया गया था लेकिन इस बंद पर राजनीति किस तरह से हुई इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पुलिस प्रशासन को कई जिलों और शहरों में राजनैतिक पार्टियों के नेताओं को गिरफ्तार और नजरबंद करना पड़ा। भारत बंद का समर्थन कर रही समाजवादी पार्टी (सपा) के कार्यकर्ताओं की प्रदेश के विभिन्न जिलों में पुलिस के साथ तीखी झड़प हुई। जिसके चलते पुलिस ने पार्टी कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज भी किया। कुछ स्थानों पर सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को घर में नजरबंद भी किया गया। वहीं दिल्ली की तस्वीर भी कुछ इसी तरह की रही। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता सुबह से ही सड़कों पर भाजपा के खिलाफ नारेबाजी करते रहे। हैरान करने वाली बात ये रही कि पार्टी के कार्यकर्ताओं की हौसला अफजाही करने के लिए सड़कों पर आम आदमी पार्टी के कई विधायक और बड़े नेता भी सड़कों पर मौजूद रहे।

किसानों से ज्यादा राजनीतिक पार्टी रहीं सक्रिय

भारत बंद का आह्वान किसानों ने केंद्र के खिलाफ किया था लेकिन इस आंदोलन की तरह ही भारत बंद भी राजनीतिक पार्टियों का हथियार बना। यूं तो भारत बंद किसानों का था लेकिन किसानों से ज्यादा राजनीतिक पार्टियां भारत बंद को लेकर सक्रिय नजर आयीं। सपा, कांग्रेस और खास कर आम आदमी पार्टी ने भारत बंद की आड़ में केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन तो किया ही लेकिन साथ ही गुंडागर्दी के जरिए दिल्ली की आम जनता को खासा परेशान भी किया। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जबरन मार्केट में जाकर दुकानें बंद कराने की कोशिश की। इसके अलावा सड़कों पर उतरकर अन्य राजनीतिक पार्टियों ने दफ्तर जाने वाले लोगों को रोककर परेशान किया। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के प्रवेश द्वार पर आवाजाही को लेकर आम जनता परेशान रही। भारत बंद का खामियाजा उन्हें भी भुगतना पड़ा जो कि एक दिन की परीक्षा के लिए कई वर्षों से मेहनत कर रहे थे। हैरान करने वाली बात ये थी कि इस प्रदर्शन में किसानों से ज्यादा राजनीतिक पार्टी के नेता और कार्यकर्ता मौजूद रहे।

क्यों बुलाना पड़ा भारत बंद?

इस भारत बंद का आह्वान किसानों ने केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए 3 कृषि कानूनों के खिलाफ किया था। किसानों की मांग है कि सरकार कृषि कानून को वापस ले जिसके चलते पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के किसान पिछले 13 दिनों से दिल्ली के बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार के साथ किसान संगठनों की 5 बार बातचीत भी हो चुकी है लेकिन हर बार ये वार्तालाप बेनतीजा ही रही। इसी को लेकर किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का फैसला लिया था।

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