हिंसा की आड़ में किसान अपनी ही मिट्टी के दूसरे लालों के लिए उग्र कैसे हो सकते हैं?

26 जनवरी के दिन जिस तरह से किसानों में आंदोलन की आड़ में देश की गरिमा को ठेस पहुंचाई उसके बाद अब किसान संगठन कई तरह के सवालों के घेरे में आ गए हैं। दिल्ली में ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद अब किसानों के लिए आंदोलन करना आने वाले समय में कठिन होता चला जायेगा।

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26 जनवरी 2021 के दिन जहां पूरा देश अपना 72वां गणतंत्र दिवस मना रहा था तो वहीं उसी दौरान किसानों के आंदोलन की आड़ में कुछ असामाजिक तत्वों ने एक बार फिर देश की आन को पैरों तले रौंदते हुए पूरे विश्व के सामने देश की छवि को एक बार फिर धूमल कर दिया। जिस तरह से आंदोलन का सहारा लेकर किसानों ने दिल्ली की सड़कों पर बवाल मचाया, सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया और उपद्रवियों ने देश की स्वतंत्रता का प्रतीक माने जाने वाले लाल किले पर तिरंगे की गरीमा को तार तार करते हुए कब्जा किया, उसने विदेशी मीडियो को भारत की छवि खराब करने का मौका तो दिया ही साथ ही पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को भी जश्न मनाने का एक सुनहरा मौका दे दिया।

ट्रैक्टर रैली कर रहे किसानों ने समय से पहले ही रैली का आगाज कर दिया था। यहां तक तो ठीक था लेकिन अचानक ही दिल्ली की संसद तक पहुंचने की कवायद करते किसानों ने अपने आंदोलन को उग्र कर दिया। सैकड़ों पुलिसकर्मियों पर खुले आम तलवारे और लाठियां चलाई गईं। कुछ किसानों ने तो दिल्ली के आई.टी.ओ पर पुलिसकर्मियों को ट्रैक्टर से कुचलने की कोशिश भी की। कुल मिला कर जिस तरह से किसानों ने 26 जनवरी के दिन देश के गौरव को अर्श से फर्श पर लाकर प्रदर्शन किया उसने किसानों और उनके नेताओं को कई तरह के सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। पूरा देश अपनी मांगो को लेकर दिल्ली की सड़कों पर आए किसानों से एक ही सवाल पूछ रहा है कि आखिर देश की राजधानी दिल्ली में हिंसा फैलाने का जिम्मेदार कौन है? लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराने के पीछे किसकी साज़िश है? ऐसे कई सवाल आज उठ खड़े हुए है जिसने आंदोलन कर रहें किसानों और उनकी मांगो पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।

कैसे किसानों को रोक नहीं पाई दिल्ली पुलिस?

किसानों की इस ट्रैक्टर रैली की अनुमति दिल्ली पुलिस ने ही दी थी। रूट भी दिल्ली पुलिस की ओर से तय किए गए थे। ऐसे में जिस तरह से दिल्ली की सड़कों पर हिंसा हुई, उसका जिम्मेदार दिल्ली पुलिस की लापरवाही को भी ठहराया जा सकता है। केंद्र सरकार के कृषि क़ानूनों के खिलाफ पिछले 62 दिनों से प्रदर्शन कर रहें किसानों का ट्रैक्टर रैली निकालने के पीछे की मंशा पहले से ही साफ थी। आईबी भी दिल्ली पुलिस को आंदोलन की आड़ में होने वाली हिंसा का पहले ही इनपुट दे चुका था। आईबी स्पष्ट कर चुका था कि किसान हिंसा फैलाने के इरादे से ही दिल्ली में घुस रहे हैं। उसके बावजूद आखिर दिल्ली पुलिस किसानों को लाल किले तक पहुंचने से कैसे नहीं रोक पाई।

क्या किसान नेता लेंगे हिंसा की ज़िम्मेदारी?

ट्रैक्टर रैली से पहले किसान नेता खासकर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत ने इस बार की पूरी ज़िम्मेदारी ली थी कि ये रैली पूरी तरह से शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न होगी। रैली के दौरान किसी भी तरह की कोई हिंसा देखने को नहीं मिलेगी। यही कारण था कि दिल्ली पुलिस ने किसानों रोड मैप तय कर के इस रैली के आयोजन की अनुमति दी थी। लेकिन 26 जनवरी को तस्वीर इसके विपरीत देखने को मिली। दिल्ली के आई.टी.ओ और लाल किले पर ही नहीं बल्कि टीकरी बॉर्डर, सिंधू बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों ने जमकर उत्पात मचाया। ऐसे में क्या अब इस हिंसा की जिम्मेदारी राकेश टिकैत और अन्य किसान संगठनों को नहीं लेनी चाहिए।

देश से माफी मांगे किसान

गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में पुलिसकर्मियों को जान से मारने की कोशिश, तोड़फोड, लाल किले पर कब्जा, तिरंगे का अपमान, अराजकता और गुंडागर्दी सब कुछ हुई। सरकार के साथ 6 दौर की वार्ता के बाद ही इस ट्रैक्टर रैली को अनुमति दी गई थी। किसान नेताओं के आश्वासन और बातचीत के आधार पर ही दिल्ली पुलिस ने ट्रैक्टर परेड की इजाज़त दी थी। लेकिन किसान नेताओं ने दिल्ली पुलिस और देश की जनता का विश्वास पूरी तरह से तोड़ दिया। किसानों ने ना तो दिल्ली पुलिस की गाईडलाइन्स का पालन किया और ना देश की सुरक्षा से जुड़े नियमों का। ऐसे में अपनी मांगो को पीछे रख किसान नेताओं को आगे आकर देश से माफी मांगनी चाहिए और इस हिंसा में लिप्त दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।

अब किसानों के लिए आसान नही होगा आंदोलन करना

दिल्ली में हुई इस हिंसा के बाद अब किसानों के लिए आगे का आंदोलन बिलकुल भी आसान नहीं रहने वाला। पिछले 62 दिनों में जिस तरह से किसानों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल कर अपनी मांगों की रखा था उसकी तारीफ हर कोई कर रहा था। लगभग हर राज्य के लोग किसानों के साथ खड़े दिखाई दे रहे थे। लेकिन कल ही घटना ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है। किसानों का समर्थन कर रहे लोग अब सरकार से कृषि कानूनों को लागू किये रखने की बात कर रहे है। दूसरी तरह किसान संगठन और उनके नेता दिल्ली में हुई हिंसा से पल्ला झाड़ रहे है। जिस वजह से अब किसानों में गुटबाजी भी देखने को मिल रही है। उत्तर प्रदेश के किसान संगठनों ने इस हिंसा को स्वीकार करने से मना कर दिया है और स्पष्ट कर दिया है कि वह इस तरह के आंदोलन का साथ नहीं देंगे। प्रशासन और सरकार भी 26 जनवरी की घटना के बाद किसानों को।दूसरा कोई मौका नहीं देगी। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि अब आने वाले दिनों में किसानों के लिए आंदोलन करना कठिन होने वाला है।

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