आईआईटी ने नई तकनीकी का किया विकास, इलेक्ट्रॉनिक कचरा होगा रि-साइकिल

आईआईटी दिल्ली के द्वारा एक नई तकनीक का ईजाद किया गया है और यह तकनीक आत्मनिर्भर भारत और स्मार्ट सिटीज को ध्यान में रख कर किया गया है।

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इलेक्ट्रॉनिक कचरा भारत के साथ-साथ पूरे विश्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर रिपोर्ट 2020 की माने तो 2019 में वैश्विक स्तर पर 53.7 मिलियन मीट्रिक टन कचरे का उत्पादन हुआ था, लेकिन हैरानी की बात यह है कि 2030 में इसका उत्पादन 74.7 मिलियन मीट्रिक टन होने की उम्मीद है, और यह संपूर्ण विश्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगा। इसी गंभीर चुनौती को देखते हुए देश की सबसे प्रतिष्ठि संस्थान आईआईटी ने एक नई तकनीक का ईजाद किया है। इस तकनीक के माध्यम से ई-कचरे का कुशल प्रबंधन किया जा सकेगा, साथ ही रिसाइकिल करके उसका फिर से इस्तेमाल करना संभव होगा। आईआईटी दिल्ली के अनुसार इस तकनीक का ईजाद विकसित स्मार्ट सिटीज, स्वच्छ भारत अभियान और आत्मनिर्भर भारत को ध्यान में रखकर किया गया है।

क्या है यह तकनीक

दिल्ली आईआईटी में बने नए तकनीक को वहां के प्रोफेसर के.के.पंत ने शोधकर्ताओं के साथ मिलकर विकसित किया है। के के पंत ने तकनीक के बारे में जानकारी देते हुए कहा है कि नए तकनीक का उपयोग कर देश में मेटल रिकवरी और एनर्जी प्रोडक्शन किया जा सकता है। आपको बता दे कि आईआईटी दिल्ली द्वारा बनाए गए नए तकनीक में कुल तीन प्रक्रियाएं है। नए तकनीक का ईजाद करने के बाद मीडिया से बात करते हुए के के पंत ने कहा कि अगर अब e-waste पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले कुछ समय में e-waste से बहुत बड़ा पहाड़ बन जाएगा, लेकिन इस नए तकनीक के उपयोग से इससे बचा जा सकता है। प्रोफेसर के अनुसार नए तकनीक से सभी तरह के कचरे को रिसाइकिल किया जा सकता है।

आपको बता दे कि भारत इलेक्ट्रॉनिक कचरे का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत ने 2019 में अकेले 3.23 मिलियन मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट का उत्पादन किया था। इन सबके बीच चिंता की बात यह है कि ई- वेस्ट में बहुत सारे जहरीली गैसे पाई जाती है जो कि स्वास्थ के साथ साथ पर्यावरण के लिए भी नुक़सान दायक है।

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