बालासाहेब ठाकरे, बिना राजनीति में कदम रखे पूरे महाराष्ट्र को हिलाकर रख देने के लिए ये एक नाम ही काफी हुआ करता था। राममंदिर का वर्चस्व बचाने के लिए लाखों शिवसैनिकों की भीड़ जुटाने की बात हो या कट्टर इस्लामिक संगठनो को खुली चुनौती देने की, बालासाहेब ठाकरे के दिल में हिंदुओं के लिए अलग जगह दी। ठाकरे साहब को लेकर खास बात यह थी कि वह सरकार के फैसले के बिना खुद न्याय करने का दम रखते थे।
This Vedio is an example of fake nationalism.
"Party Ki Andhbhakti"#kangnaRanaut pic.twitter.com/aZFEchrCAj
— Union Of Bharat (@UnionOfBharat) September 4, 2020
अगर आज बालासाहेब ठाकरे महाराष्ट्र में होते तो न पालघर में साधु संतों की हत्या में लिप्त दोषियों के खिलाफ कार्यवाही में देरी हो रही होती और न ही सुशांत सिंह राजपूत के लिए आवाज उठाने वाली कंगना रनौत के लिए सरकार का ऐसा रवैया होता। जो जूते आज कंगना की तस्वीर पर पड़ रहे हैं वो संजय राउत के पोस्टर्स पर पड़ रहे होते।
ये बताने की जरुरत नहीं है कि बालासाहेब के दौर में सरकार के अंदर उनका कितना खौफ हुआ करता था। जिन संतों की हत्या को हुए 6 महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है, अगर बालासाहेब ठाकरे जिंदा होते तो दोषियों के खिलाफ सरकार काफी पहले कार्यवाही कर चुकी होती। हालांकि अब समय बदल चुका है।
समय के साथ बालासाहेब ठाकरे की पार्टी शिवसेना की तस्वीर भी अब बदल चुकी है। बालासाहेब को लेकर लोगों को मन में पार्टी की छवि की परिभाषा वही है, बस किरदार बदल चुके हैं। जिस बालासाहेब ने जिंदा रहते कांग्रेस और सोनिया गांधी की नाक में दम किए रखा, उसी पार्टी के साथ उद्धव ठाकरे सत्ता में विराजमान हैं। ठाकरे कांग्रेस के सबसे बड़े विरोधी थे। उन्होंने सोनिया गांधी के सामने झुकना कभी मुलाज़िब नहीं समझा। लेकिन आज खून पसीनें से सींची गयी बालासाहेब की पार्टी उसी कांग्रेस के इशारों पर नाच रही है। अगर बालासाहेब ठाकरे जिंदा होते तो क्या आज भी शिवसेना की तस्वीर इसी तरह की होती?