”राम लला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे” यह वह नारा है जो कई सालों की तपस्या के बाद अब सत्य होने वाला है। लेकिन टेंट से भव्य मंदिर में श्री राम लला के पहुंचने की राह इतनी आसान नही थी। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर के महीने में विवादित जमीन हिंदू पक्ष को दे दी थी। जिस दिन शिलान्यास का कार्यक्रम होगा उस दिन दुनिया की नजरें हमारे देश पर होंगी लेकिन मंदिर का बनना एक दुर्गम कार्य था। कुछ लोग ऐसे थे जो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से पहले कहते थे कि सुप्रीम कोर्ट जो निर्णय देगा हम उसके समर्थन में रहेंगे लेकिन वही नेता आज सुप्रीम कोर्ट की मुखालफत कर रहे हैं। आज हम राम मंदिर से जुड़े कुछ ऐसे ही बिंदुओं पर चर्चा करेंगे।
राम मंदिर के लिए जिन्होंने किया अपना सर्वस्व न्यौछार
राम मंदिर का निर्माण अगले कुछ सालों में होने वाला है। 5 अगस्त को इस मंदिर का शिलान्यास होगा। जिसमें प्रधानमंत्री समेत कुछ महत्वपूर्ण लोग शामिल होंगे। लेकिन जिन लोगों ने भगवान श्री राम के इस मंदिर की नींव तैयार करने का काम किया उनमें से बहुत से इस दुनिया में नहीं हैं और जो हैं वह शायद सक्रिय राजनीति में नहीं हैं। अशोक सिंघल, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी कल्याण सिंह, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, प्रवीण तोगड़िया, विष्णु हरि डालमिया। यह सभी वह नेता हैं जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी और जिनके कारण ही विवादित ढांचे को गिराया गया था।
- अशोक सिंघल विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष थे। इस राम मंदिर में उनके योगदान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है 9 नवंबर 2019 को जो सुप्रीम कोर्ट ने फैसला हिंदुओं के पक्ष में दिया तब सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था, ”अशोक सिंघल को भारत रत्न देना चाहिए।”
- लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक राम रथ चलाया था। जिसके द्वारा पूरे देश के हिंदुओं को एकत्रित किया गया। 6 दिसंबर 1992 को लालकृष्ण आडवाणी ने बयान दिया था कि आज कारसेवा का आखरी दिन है!
- उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का भी इस आंदोलन में बहुत बड़ा योगदान रहा है। अपने एक भाषण में जिक्र करते हुए बताते हैं कि जब मुझे गृह मंत्रालय का फोन आया और गृह मंत्रालय ने मुझसे पूछा कि आपको पता नहीं है कारसेवक गुंबद पर चढ़ गये हैं। मैंने कहा था मुझे पता है और मुझे आपसे एक बात ज्यादा पता है कि कारसेवक गुम्मद पर चढ़ ही नहीं गए हैं बल्कि उन्होंने ने गुंबद को तोड़ना भी शुरू कर दिया है।
- साध्वी ऋतंभरा के बयानों से सभी कोई परिचित हैं। साध्वी ऋतंभरा ने इस पूरे आंदोलन में आकर्षक भूमिका निभाई और ऐसे नारे दिए जिसने कारसेवकों में एक अलग ही जोश भर दिया। अपने भाषणों में साध्वी ऋतम्भरा राममन्दिर विरोधियों को बाबर की औलादें कहकर पुकारती थी।
धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाने वाले असल में खुद हैं धर्मांध
बहुत सारे लोग इस देश में ऐसे हैं जो भारत के प्रधानमंत्री को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ा रहे हैं। यह कह रहे हैं कि वह भारत के प्रधानमंत्री हैं इसीलिए उन्हें अयोध्या जाकर भूमि पूजन नहीं करना चाहिए। यह बात कहने वाले नेता हैं असदुद्दीन ओवैसी। जिनकी पार्टी का नाम है, ”ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन या एआईएमआईएम” और इसका हिंदी अर्थ होता है ”अखिल भारतीय मुस्लिम संघ।” दोनों ओवैसी भाइयों के भाषणों को सुनकर कोई व्यक्ति समझ सकता है कि धर्मांध कौन है? और धर्मनिरपेक्ष कौन है?
धर्म निरपेक्षता की सारी बातें आकर केवल बहुसंख्यको पर रुक जाती हैं, अल्पसंख्यक कभी धर्मनिरपेक्षता नहीं दिखाते। अगर धर्मनिरपेक्षता दिखानी ही थी तो उस दिन दिखाई जाती जब पहली बार राम मंदिर बनाने की बात कही गई थी। लेकिन उस वक्त विरोधियों ने भगवान राम को पार्टी बनाकर कोर्ट में खड़ा कर दिया। भविष्य में बनने वाला राम मंदिर केवल और केवल पूर्वजों के संघर्ष का प्रतिफल है न की किसी की उदारता का परिणाम।
प्रधानमंत्री के अयोध्या जाने का पक्ष
कुछ लोगों का यह मानना है कि प्रधानमंत्री को अयोद्धा इसलिए जाना चाहिए क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी आज तक हिंदू हैं और वे हिंदुओं के सभी त्योहारों को पूरी भव्यता के साथ मनाते हैं। इसीलिए एक भारतीय नागरिक और एक धर्म से हिंदू होने के कारण भारत का संविधान उन्हें आज्ञा देता है कि वह अपने धर्म के पालन के लिए किसी भी प्रकार की धार्मिक अनुष्ठान में भाग ले सकते हैं। यदि भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए जा सकते हैं तो निश्चित रूप से प्रधानमंत्री का अयोध्या दौरा संवैधानिक है।
राम मंदिर विरोधियों पर समय पड़ा भारी
1990 से 2000 तक के समय में उत्तर प्रदेश में हिंदू अपनी हिंदुत्व की भावना से ओतप्रोत हो चुका था और यह मान चुका था अयोध्या में केवल और केवल राम मंदिर बनकर रहेगा। लेकिन उस समय उत्तर प्रदेश की सत्ता पर मुलायम सिंह यादव काबिज थे और मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए
मुलायम सिंह ने कहा था कि मेरे रहते हुए बाबरी मस्जिद पर एक परिंदा भी पर नहीं मार सकता। अक्टूबर 1990 में हिंदू साधु-संतों ने पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़कर मस्जिद की ओर बढ़ने का प्रयास किया। पुलिस ने फायरिंग की जिसमें पांच कारसेवक दुनिया से चल बसे। 2 नवंबर 1990 को एक बार फिर पुलिस ने फायरिंग की जिसमें 12 कारसेवकों ने अपनी जान गंवा दी।
एक इंटरव्यू में मुलायम सिंह यादव ने कहा था, “मुझे मस्जिद बचाने के लिए गोली चलवाने का कोई भी मलाल नहीं है। उस समय मेरे सामने इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था।” लेकिन वक्त की मार देखिए साधु-संतों पर गोली चलवाने वाले मुलायम सिंह यादव राजनैतिक रूप से अलग-थलग पड़े हैं और उन्हें पार्टी से अलग-थलग करने वाला कोई और नहीं बल्कि उनका ही खून अखिलेश यादव है। दूसरे नेता हैं लालू प्रसाद यादव, जिन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सोमनाथ से अयोध्या तक जाने वाले रामरथ को रोका। 23 अक्टूबर 1990 को बिहार के समस्तीपुर जिले में लालू प्रसाद यादव ने भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण के लिए जा रहे इस रथ को रोका था। लालू प्रसाद यादव की पार्टी का इस समय वजूद बिहार में न के बराबर है। वास्तव में बिहार में भ्रष्टाचार गुंडागर्दी और अपराधों के जनक कहे जाने वाले लालू प्रसाद यादव को आज उनके कर्मों का फल भुगतना पड़ रहा है।
अजब संयोग देखिए कि इन दोनों नेताओं ने ही इंटरव्यू के दौरान यह कहा था कि मैंने देश की रक्षा के लिए और देश के संविधान को बचाने के लिए राम रथ को रुकवाया था और राम भक्तों पर गोली चलवाई थी। लेकिन लालू प्रसाद यादव समय के गाल में समा चुके हैं और नियति का चक्र देखिए कि जिस राम के रथ को उन्होंने रोका संविधान की दुहाई देकर आज उसी संविधान और कानून के तहत जेल में बंद हैं।
अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर में न जाने कितने लोगों का बलिदान छिपा हुआ है। न जाने कितने लोग ऐसे हैं जिनका नाम आज भी इस आंदोलन में नहीं लिया जाता लेकिन कहीं ना कहीं उनका भी इस आंदोलन में योगदान रहा है। अयोध्या में बनने वाला राम मंदिर केवल एक मंदिर नहीं है बल्कि यह मंदिर 498 सालों की गुलामी के बाद यह प्रदर्शित करेगा कि सनातन परंपराओं को किस तरह से दबाया गया था, किस तरह इसको कुचलने का प्रयास किया गया, लेकिन अंततः विजय सत्य की हुई, विजय धर्म की हुई। बहुत जल्द वो दिन भी आपके सामने आएगा जब गगन को छूता हुआ भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर अयोध्या की भूमि पर खड़ा होगा। और उसके बराबर में खड़े होंगे भगवान श्री राम।