प्रयागराज बहुत सारी बातों के लिए जाना जाता है। प्रयागराज में महाकुंभ लगता है। प्रयागराज में ही गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों नदियां मिलती हैं। इसके अलावा प्रयागराज गहरे बाजी के लिए भी प्रसिद्ध है। गहरे बाजी एक प्राचीन परंपरा है, जिसमें घोड़े हवा की रफ्तार से दौड़ते हैं। वर्ष 1980 से पहले इसका आयोजन परेड मैदान से शिवकुटी तक होता था और बाद में चेतन लाइन स्थित सेना के कार्यालयों के कारण इसको रोक दिया गया। इस गहरे बाजी में हजारा, तीन पैरा, दिल्ली का सुरंग, दूसरा सुरंग रुस्तम, सज्जा नाम के घोड़े दौड़ा करते थे।
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इन सभी घोड़ों में सबसे प्रसिद्ध घोड़ा था, दिल्ली का सुरंग। इसका नाम दिल्ली का सुरंग इसलिए रखा गया क्योंकि यह हवा को चीरता हुआ दौड़ता था। यह घोड़ा मालवीय नगर, मुट्ठीगंज के गोपाल महाराज का था। इस घोड़े की प्रसिद्धि दूर-दूर तक थी। वर्ष 1980 से 1992 के बीच वाराणसी में पद्म विभूषण तबला सम्राट पंडित किशन महाराज ने कई बार सुप्रभा रेस कराई थी। तबला सम्राट को गहरेबाजी में काफी दिलचस्पी थी और बारिश में ही दिल्ली का सुरंग नाम के घोड़े ने जीत हासिल की थी। ये रेस दिसंबर के महीने में हुई थी जो 20 किमी की थी। इसमें दिल्ली, मिर्जापुर, लखनऊ, वाराणसी जौनपुर के घोड़े भी शामिल थे। गहरे बाजी की तैयारी 4 महीने पहले ही शुरू हो जाती थी और इसमें प्रत्येक घोड़े की देखरेख के लिए 2 लोग लगाए जाते थे। प्रत्येक घोड़े को 1 दिन में ₹100 की घास ₹100 का चना, ढाई सौ ग्राम देसी घी, एक मक्खन की टिक्की, 4 लीटर दूध तथा 500 ग्राम बादाम खिलाये जाते थे।