‘निर्दोषों को छोड़ क्या कोई गद्दार मिटा है दंगों में?
क्या कभी कोई मजहब का ठेकेदार मिटा है दंगों में?’
भारत देश हमेशा से ही अलग-अलग धर्मों का निवास स्थान रहा है। हिंदू, मुस्लिम,सिख,ईसाई,पारसी,जैन,बौद्ध जैसे धर्म के मानने वाले लोग यहां पर बहुत खुशी से रहते हैं और कभी भी ये एहसास नहीं होने देते कि उनके धर्म अलग-अलग हैं। हालांकि समय समय पर पहुंच सारे विवाद देश की एकता को चुनौती देने का काम करते हैं। वर्तमान में एक नाबालिक की पिटाई के बाद भारत का माहौल सांप्रदायिक हो गया है। दरअसल अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का आरोप है कि हमारे धर्म के एक बच्चे को डासना के मंदिर में पानी पीने के लिए मारा गया। इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। डासना के मंदिर में जिस व्यक्ति ने उस नाबालिग की पिटाई की उन्होंने बताया कि इस मंदिर में कई बार चोरियां हो चुकी हैं। दूसरे संप्रदाय के लोग यहां पर आते हैं और महिलाओं के साथ बुरा व्यवहार करते हैं। उन्होंने बताया कि हमारे आराध्य देवी-देवताओं की मूर्तियों के साथ भी अश्लील हरकतें करते हुए इन लोगों को कई बार पकड़ा गया है।
यह मामला धीरे-धीरे शांत हुआ लेकिन उसके बाद डासना मंदिर के महंत नरसिंहानंद सरस्वती का एक ऐसा वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक धर्म विशेष के ईश्वर के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए दिखाई दे रहे थे। अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को जैसे ही यह पूरा मामला पता चला वैसे ही अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी से विधायक अमानतुल्लाह खान ने अपने ट्विटर पर एक पोस्ट किया जिसमें उन्होंने लिखा कि नरसिंह आनंद सरस्वती की गर्दन काट देनी चाहिए। हालांकि उन्होंने बाद में यह भी लिखा कि भारत का संविधान उन्हें यह करने की इजाजत नहीं देता इसीलिए मैं नरसिंहानंद के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा रहा हूं। वास्तव में यदि नरसिंह आनंद के द्वारा कुछ ऐसी बातें कही गई हैं जो धर्म विशेष के खिलाफ हैं तो नरसिंहानंद के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। क्योंकि भारत संविधान से चलने वाला देश है, धार्मिक किताबों से चलने वाला कट्टरपंथी राष्ट्र नहीं है।
अमानतुल्लाह खान ने कहा कि हर एक मस्जिद से हुकूमत-ए-हिन्द को मेमोरेंडम की शक्ल में एक चिट्ठी दी जाएगी। वीडियो में उसके साथ कई अन्य मुल्ला-मौलवी और मुस्लिम नेता दिखे, जो लगातार ‘नारा-ए-तकबीर’ और ‘अल्लाहु अकबर’ की नारेबाजी कर रहे थे। उसने बताया कि दिल्ली के तमाम इमाम उसके साथ हैं। उसने कहा कि सब ने मिलकर जुमे के दिन नमाज में एहतेजाजी खुत्बा का फैसला लिया है। ‘दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड’ के अध्यक्ष ने इस दौरान एक शेर भी पढ़ा-
“मोहम्मद की मोहब्बत आन-ए-मिल्लत, शान-ए-मिल्लत है,
मोहम्मद की मोहब्बत रूह-ए-मिल्लत, जान-ए-मिल्लत है।
मोहम्मद से मोहब्बत दीन-ए-हक़ की शर्त-ए-अव्वल है,
इसी में हो अगर खामी, तो सब कुछ नामुकम्मल है।”
लगातार यह भी देखा गया कि नरसिंहानंद को सजा देने के लिए लोग केवल संवैधानिक तरीके से मांग ही नहीं कर रहे थे अपितु कुछ ऐसे पोस्टर्स भी शहरों में लगाए गए जो निश्चित रूप से एक सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि जब संवैधानिक प्रक्रियाओं के द्वारा चुने गए अमानतुल्लाह खान जैसे लोग संविधान की धज्जियां उड़ाते फिरेंगे? तो फिर इस देश के संविधान का पालन कौन करेगा?
दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल करके यह कहा था कि कुरान की कुछ आयतें वर्तमान में हिंसा को बढ़ावा देने वाली है, और इनके द्वारा विद्यार्थियों को मिसगाइड किया जा रहा है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट इस अर्जी पर विचार करके कुरान से इन आयतों को हटाए। लेकिन देश का माहौल खराब होता उससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने वसीम रिजवी की इस याचिका को खारिज करते हुए उन पर 50 हजार का जुर्माना लगा दिया। जब सुप्रीम कोर्ट भारत के प्रत्येक समुदाय की भावनाओं का सम्मान करते हुए वसीम रिजवी की याचिका पर जुर्माना लगा चुका है उनकी याचिका को खारिज कर चुका है?
तो उसके बाद भी उनकी गर्दन कलम करने के लिए सड़कों पर सड़कों पर नारे लगाना, क्या एक सभ्य और संवैधानिक देश की पहचान है? विचार कीजिए……