Covaxin में गाय के बछड़े का सिरम, विपक्ष के आरोपों को सरकार और कंपनी ने दिया करारा जवाब

भारत बायोटेक कंपनी के ऊपर विपक्षी दलों ने सवाल उठाया है कि कंपनी वैक्सीन बनाने में बछड़े के सिरम का उपयोग कर रही है।

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कोरोना महामारी पर काबू पाने के लिए देश में 21 जून से मुफ्त टीकाकरण शुरू करने की तैयारी जारी हैं। इस बीच, भारत बायोटेक कंपनी की कोरोना वैक्सीन Covaxin को बनाने में गाय के बछड़े के सीरम का इस्तेमाल किए जाने के मुद्दे पर बहस छिड़ गई है। विपक्षी दलों की ओर से तीखे सवाल उठाए जाने पर, भारत बायोटेक ने अपनी सफाई में कहा कि कोशिकाएं (सेल) विकसित करने में गाय के बछड़े के सीरम का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन Covaxin वैक्सीन के अंतिम फॉर्मूले में इसका इस्तेमाल नहीं किया गया। मामले को बढ़ता देख, भारत बायोटेक ने कहा कि बछड़े के सीरम का इस्तेमाल कोशिकाएं विकसित करने के लिए किया गया, लेकिन कोरोना वैक्सीन Covaxin के निर्माण के फाइनल फॉर्मूले में इसका इस्तेमाल नहीं किया गया। कंपनी ने कहा कि कोवाक्सिन में किसी तरह की अशुद्धि नहीं हैं।

कांग्रेस नेता ने किया दावा

कांग्रेस के नेशनल कॉर्डिनेटर गौरव पांधी ने बुधवार को Covaxin में गाय के बछड़े के सीरम का इस्तेमाल किए जाने का दावा किया था। पांधी ने एक आरटीआई के जवाब में मिले दस्तावेज को साझा किया, जिसमें Covaxin बनाने में गाय के बछड़े के सीरम का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी उम्र 20 दिन से भी कम होती है। उन्होंने दावा किया कि यह जवाब विकास पाटनी नाम के व्यक्ति की आरटीआई पर केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने दिया है। इसके बाद से विपक्ष ने मोदी सरकार पर हमला बोला।

कंपनी ने बताया

जब भी किसी वायरस को खत्म करने के लिए वैक्सीन तैयार होती है तो उसमें शुरुआती शोध के दौरान भैंस, घोड़े और बछड़े समेत कई अन्य जानवरों के सीरम का ही इस्तेमाल होता है। ऐसा सिर्फ कोरोना संक्रमण के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए तैयार की गई Covaxin के निर्माण के दौरान ही नहीं किया गया, बल्कि ऐसा मेडिकल साइंस में दशकों से चलता चला आ रहा है। Covaxin में बछड़े के सीरम को लेकर देश में शुरू हुए विवाद पर चिकित्सा जगत के वैज्ञानिक भी हैरान हैं।

कसौली के सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक और चंडीगढ़ पीजीआई में मेडिकल पैरासाइटोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राकेश सहगल कहते हैं, किसी भी वैक्सीन को बनाने के लिए कोशिकाओं को सबसे पहले उगाया जाता है, जिसको मेडिकल साइंस की भाषा में सेल्सलाइन कहते हैं। उनका कहना है जब कोशिकाओं को ग्रो करना होता है तो सीरम की आवश्यकता होती है। यह सीरम भैंस, घोड़े या बछड़े समेत कुछ अन्य जानवरों से लिए जा सकते हैं। उनका कहना है दरअसल जब कोशिकाओं को ग्रो करके उनको संक्रमित करना होता है तो ऐसा सीरम आवश्यक होता है जिसकी न्यूट्रीशन वैल्यू बहुत ज्यादा हो। इन जानवरों में इसकी मात्रा बहुत होती है यही वजह है कि इनके सीरम का इस्तेमाल मेडिकल साइंस में दशकों से होता चला आ रहा है।

आईसीएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक बताते हैं कि पोलियो और रेबीज के टीके में भी सीरम ऐसे ही जानवरों का लिया जाता है। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि Covaxin टीके में बछड़े के सीरम को लेकर हो रहा विवाद महज राजनीतिक है। उन्होंने इस पर कोई भी टिप्पणी करने से इंकर कर दिया। लेकिन उनका कहना है कि साइंस तो अपना काम करेगी ही। उन्होंने कहा कि मेडिकल साइंस में किसी भी वायरस को खत्म करने के लिए तैयार की जाने वाली वैक्सीन में जब तक हम कोशिकाओं को तैयार करके उनके अंदर संक्रमित वायरस नहीं डालेंगे और उसका असर नहीं देखेंगे, तब तक वैक्सीन का निर्माण हो ही नहीं सकता। कोशिकाओं का विकास करने के लिए हाई वैल्यू प्रोटीन सीरम की आवश्यकता होती है और यह हाई वैल्यू प्रोटीन सीरम घोड़ा, भैंस और बछड़े जैसे कई अन्य जानवरों से ही मिल सकता है। इसलिए इनका इस्तेमाल करके ही सबसे सुरक्षित वैक्सीन बनाई जाती है।

सरकार ने विपक्ष के आरोपों को किया खारिज

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि विपक्ष ने अब वैक्सीन पर भी राजनीति करना शुरू कर दिया है। Covaxin में नवजात बछड़े का सीरम होने का तथ्य तोड़ मरोड़ कर एवं अनुचित ढंग से पेश किया। मंत्रालय ने कहा कि नवजात बछड़े के सीरम का इस्तेमाल केवल वेरो कोशिकाएं तैयार करने और उनके विकास के लिए ही किया जाता है। गोवंश तथा अन्य पशुओं से मिलने वाला सीरम एक मानक संवर्धन संघटक है, जिसका इस्तेमाल पूरी दुनिया में वेरो कोशिकाओं के विकास के लिए किया जाता है।

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