एक ही सिक्के के दो पहलू हैं कांग्रेस और कश्मीर की स्थानीय पार्टियां

गुपकार गठबंधन और कांग्रेस के बड़बोले नेताओं को यह बात जल्द समझ आ जाये तो अच्छा है कि यह देश किसी भी कीमत पर अनुच्छेद 370 की वापसी के लिए सहमत नहीं हो सकता क्योंकि उसने अलगाववाद, अन्याय और आतंक के बीज बोने के अलावा और कुछ नहीं किया था। ऐसे नेताओं को देश कभी भी माफ नहीं कर सकता जो भारत की ओर आँख उठाने वाले चीन और पाकिस्तान की खुली तरफदारी करते पाए जाते हैं।

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कश्मीर आधारित राजनीतिक गुटों की ओर से अनुच्छेद 370 की वापसी को लेकर बनाए गए गुपकार गठबंधन का हश्र भी बिल्कुल वैसा ही होने वाला है जैसा कि आतंकपरस्त हुर्रियत कांफ्रेंस का हुआ है। गुपकार गठबंधन में सम्मिलित पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारुक अब्दुल्ला के आये दिन आते राष्ट्र विरोधी बयानों और पाक-चीन की भाषा बोलने से देश में काफी रोष उत्पन्न हो उठा है।

ऐसे में महबूबा मुफ्ती के तिरंगे झंडे संबंधी बयान को लेकर उनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज करने की भी बात कही जा रही है। उन्होंने कहा था कि जबतक जम्मू-कश्मीर पर बीते साल पांच अगस्त को संविधान में किये गए बदलावों को वापस नहीं लिया जाता, तब तक उन्हें चुनाव लड़ने और तिरंगा थामने में कोई दिलचस्पी नहीं है। गुपकार गठबंधन के अध्यक्ष के रूप में फारुक अब्दुल्ला का पहले चीन को कश्मीर दे देने की बात कहना और फिर उनका यह कहना कि वो बीजेपी विरोधी हैं लेकिन देश विरोधी नहीं, देश-दुनिया की आँखों में धूल झोंकने के अलावा और कुछ नहीं है।

आखिर विरोध में खड़े होकर चीन की मदद लेने या भारतीय ध्वज को न उठाने की बातें करने वाले भला किस मुँह से यह कह सकते हैं की वे राष्ट्रविरोधी नहीं? वहीं, चीन द्वारा भारत में अतिक्रमणकारी रवैये पर एक शब्द भी बोलने को तैयार नहीं राहुल गांधी का यह बयान बड़ा बेतुका है कि देश तो सेना के साथ खड़ा है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी चीन के खिलाफ कब खड़े होंगे? क्या राहुल ये कहना चाह रहे हैं कि सेना प्रधानमंत्री के समर्थन के बगैर ही मोर्चे पर डटी है? महबूबा मुफ्ती, फारुक अब्दुल्ला और राहुल गांधी जैसे सरीखे नेताओं को न सही, कम से कम उनके सहयोगियों को तो इतनी राजनीतिक समझ होनी ही चाहिए कि उनके बेतुके बयानों से सिर्फ पाकिस्तान और चीन का ही हित सधता है।

पाक-चीन कर रहे भारत के खिलाफ हमले की साज़िश

चीन की खराब नियत का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि पहले भारत के हिस्से पर अतिक्रमण कर लेने के दुस्साहस के बाद अब वो सैन्य स्तर पर तमाम बातचीत के बाद भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। ऐसे में भारत को भी इस पर विचार करना होगा कि चीन के साथ हुए विभिन्न समझौतों के प्रति किस सीमा तक प्रतिबद्धता जताई जा सकती है? यह भला कैसे हो सकता है कि एक तरफ चीन हर तरह समझौतों को धता बताए और भारत खुद को उनसे बंधा हुआ रखे? ऐसे में चीन के कपट को देखते हुए यह आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य था कि देश का राजनीतिक वर्ग एक स्वर में उसे चेताए। इसी कारण देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लद्दाख सीमा पर स्थिति को चुनौतीपूर्ण बताते हुए जब यह अपील की कि सभी सांसदों को एकजुट होकर सेना का मनोबल बढ़ाना चाहिए तब कांग्रेस ने सदन का बहिष्कार करना ज़रूरी समझा। आखिर कांग्रेस इस तरह के बहिष्कार से देश-दुनिया को क्या दिखाना चाहती है?

आंतरिक विद्रोह से जूझ रही पाकिस्तान की इमरान सरकार अपने देश का ध्यान बांटने के लिए कश्मीर में बड़े हमलों की साज़िश रच रही है। फिलहाल खुफिया सूचनाओं के आधार पर सीमा पर बड़े पैमाने पर घुसपैठ और घाटी में आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए सुरक्षा बालों को अलर्ट किया गया है। पाकिस्तान तुर्की से एक खास तरह के रडार सिस्टम लेने की भी तैयारी कर रही जो न केवल आतंकियों को घुसपैठ करने में मदद कर सकता है बल्कि पाकिस्तानी सेना को दोबारा भारत द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाई से बचाने में भी मददगार साबित हो सकेगी। ये सिस्टम ऑटोमैटिक तरीके से बड़े इलाके को स्कैन कर सकता है। इसके प्रयोग से दूरबीन और कैमरे की मदद से निगरानी करने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वहीं, पाकिस्तान चीन से भी बड़े पैमाने पर हथियार खरीद रहा। आतंकियों को भी चीनी हथियार दिए जा रहे हैं। कश्मीर के मसले पर भारत की सधी रणनीति के कारण पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर केवल तुर्की, चीन और मलेशिया जैसे देशों के ही भरोसे है।

राष्ट्रीय भावनाओं से बेपरवाह कांग्रेस

कांग्रेस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीसीपी के बीच वर्ष 2008 में हुआ एक समझौता पिछले दिनों खासा चर्चा में आया था। गौरतलब है कि सीसीपी का न केवल चीनी सरकार पर पूरा नियंत्रण है बल्कि वही समग्र देश का संचालन भी करती है। अभी तक कांग्रेस ने इस समझौते का ब्योरा देना भी ज़रूरी नहीं समझा है। इस समझौते की पूरी कवायद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और चीन के तत्कालीन उप-राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मौजूदगी में हुई थी। तब कांग्रेस की ओर से इस समझौते पर पार्टी के तत्कालीन महासचिव राहुल गांधी ने हस्ताक्षर किये तो सीसीपी की ओर से एक सदस्य ने। आज ये सवाल कांग्रेस से पूछा जाना चाहिए कि आखिर वे क्यों इस समझौते के ब्योरे को साझा करने से हिचक रहे हैं? इस बीच कांग्रेसी नेतृत्व वाले राजीव गांधी फाउंडेशन की ओर से चीन से चंदा लेने का मामला भी सुर्खियों में रहाI ये बात समझ के परे है कि आखिर कांग्रेस को ऐसी क्या ज़रूरत पड़ गई कि उसने चीन से चंदा लेना ज़रूरी समझा जो भारत से 1962 में युद्ध लड़ने के साथ ही पिछले सात दशकों से भारत को अस्थिर बनाने की साज़िश रचता आ रहा है।

चीन से जुड़े सवाल तब और भी प्रासंगिक हो गए जब बीते दिनों लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सेना ने दुस्साहस दिखाते हुए एलएसी पर हमला किया और हमारे 20 सैनिकों को अपनी शहादत देनी पड़ी। तब राहुल गांधी देश और उसकी सेना के साथ खड़े होने की जगह, वे प्रधानमंत्री मोदी को कमज़ोर साबित करने में लग गए। अकादमिक और मीडिया जगत में अपने दरबारियों की मदद से गांधी परिवार ने भारत को एक किस्म की राजशाही में बदल दिया है। परिवार से इतर के महान नेताओं के योगदान को किनारे लगाने के तमाम प्रयास किये गए। हालत यहाँ तक पहुंच गये हैं कि प्रत्येक बड़ी सरकारी योजना, सरकारी इमारत, राष्ट्रीय संस्थान, विश्वविद्यालय और यहाँ तक कि खेल से जुड़े आयोजनों का नामकरण भी केवल परिवार के सदस्यों के नाम पर होने लगा। आज ये इतनी शर्मनाक स्तर पर आ चुका है कि भारत के दक्षिणतम बिंदु को इंदिरा पॉइंट और हिमालय में एक पहाड़ी को राजीव पीक नाम दिया गया।

राष्ट्रविरोधी राजनीति

हमारे देश के बहादुर जवानों के गलवन घाटी में हुए बलिदान के बावजूद कांग्रेस पार्टी का चीन के खिलाफ मुखर न होने को अवश्य ही चीनी चंदे, एमओयू और नेहरु-गांधी परिवार द्वारा चीनियों के लिए बिछाई गई लाल कालीन के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। आखिर कांग्रेस और उसके नेतागण राष्ट्रीय भावनाओं के विपरीत क्यों जा रहे? आज प्रत्येक भारतीय को कांग्रेस से यह प्रश्न पूछना ही चाहिए। वहीं, कश्मीर को अपनी जागीर समझ रहे फारुक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को सच्चाई से अवगत करवाना आज बेहद ज़रूरी हो चुका है कि ये बदला हुआ हिंदुस्तान है जो अपनी गलतियां दोहराता नहीं, बल्कि उनसे सबक लेकर दुश्मन को सबक सिखाने में यकीन रखता है। गुपकार गठबंधन के नेताओं और कांग्रेस के बड़बोले नेताओं को यह बात जितनी जल्दी समझ आ जाये तो अच्छा है कि यह देश किसी भी कीमत पर अनुच्छेद 370 की वापसी के लिए सहमत नहीं हो सकता क्योंकि उसने अलगाव, अन्याय और आतंक के बीज बोने के अलावा और कुछ नहीं किया था। ऐसे नेताओं को देश कभी भी माफ नहीं कर सकता जो भारत की ओर आँख उठाने वाले चीन और पाकिस्तान की खुली तरफदारी करते पाए जाते हैं।

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