कोरोना संक्रमण के चलते भारत के बहुत सारे लोग आयुर्वेद में इसका इलाज ढूंढ रहे हैं। जिस समय सारी दुनिया कोरोना से डरी हुई है, उस समय में प्रकृति ने भारत के लोगों को अपनी शरण में जगह दी है। छोटे-छोटे गांव और कस्बों में रहने वाले लोग कोरोना संक्रमण से बचने के लिए, नियमित रूप से गिलोय और तुलसी के द्वारा बनाए गए काढ़े का सेवन कर रहे हैं। इसी कारण पूरे देश में तुलसी और गिलोय के पौधे की डिमांड बढ़ गई है। नर्सरी में भी पेड़-पौधों की कमी बढ़ती जा रही है लेकिन इनकी डिमांड लगातार दोगुनी गति से बढ़ रही है।
जागरण की रिपोर्ट के अनुसार पहले की अपेक्षा तुलसी और गिलोय के पौधों की डिमांड 25% तक ज्यादा हो गई है। पहले एक तुलसी का पौधा 10 या 15 रूपये का मिल जाता था लेकिन अब कोरोना संक्रमण के चलते इस पौधे की कीमत 20 से 30 रूपये हो गई है। कई जगह तो ऐसा देखा जा रहा है कि इन पौधों की प्री बुकिंग शुरू हो चुकी है, यानि पौधे के बीज रोपण के समय ही लोग उसकी कीमत देकर उस पौधे को बुक करा रहे हैं। तुलसी के साथ-साथ गिलोय, पुदीना, एलोवेरा तथा मनी प्लांट जैसे पौधों की डिमांड भी बढ़ गई है।
निबंधन विभाग में राम नरेश यादव कहते हैं कि आयुष मंत्रालय की सलाह पर तुलसी के काढ़े का सेवन किया जा रहा है। इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का गुण है। देश के ग्रामीण हिस्सों में पहले से ही तुलसी के पत्तों को दवाई की तरह उपयोग किया जाता है। उन लोगों का यह मानना है कि तुलसी के पत्ते खाने से खांसी, सर्दी, जुखाम और बुखार के होने की आशंका खत्म हो जाती है। इस दौर में अब शहर के लोग भी सुबह की चाय की जगह तुलसी का काढ़ा ही पी रहे हैं।