एक शायर जिसने, बिस्मिल के साथ आजादी के लिए दिया अपना सर्वोच्च बलिदान

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बहुत सारी क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। और उन्हीं बलिदानों के कारण आज भारत स्वतंत्र है। हमारे देश में मित्रता का बेहद ही महत्व है। भारतीय संस्कृति में भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की, कर्ण और दुर्योधन की, सुग्रीव और हनुमान की, राम और केवट की मित्रता का वर्णन होता है। वहीं आजादी के समय भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त और चंद्रशेखर आजाद की मित्रता भी उल्लेखनीय है। लेकिन इन सब में एक मित्रता और शामिल होती है जो मित्रता है राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान की। राम प्रसाद बिस्मिल जो कि जन्म से ब्राह्मण थे और अशफाक उल्ला खान जिनका जन्म पठान परिवार में हुआ था। लेकिन भारत माता की आजादी के लिए यह दोनों अलग-अलग कुल से आने वाले लोग भी परम मित्र बन गए।

प्रारंभिक जीवन

अशफाक 22 अक्टूबर 1900 को यूनाइटेड प्रोविंस यानी आज के उत्तर प्रदेश के जिले शाहजहांपुर में पैदा हुए थे। अशफाक अपने चार भाइयों में सबसे छोटे थे। अपनी युवावस्था में अशफाक उल्ला खान शायरी किया करते थे। जब भी कभी शायरी का जिक्र होता था तब कुछ लोग राम प्रसाद बिस्मिल का जिक्र करते थे। जिससे अशफाक उनसे मिलने की जिद पर अड़ गए।वहीं एक दिन राम प्रसाद बिस्मिल का नाम मैनपुरी केस से जुड़ गया। इसके बाद अशफाक उल्ला खान ने राम प्रसाद बिस्मिल से मिलने का निर्णय किया और आखिरकार अशफाक उल्ला खान और राम प्रसाद बिस्मिल मिल गए।

अहिंसा का रास्ता छोड़कर पकड़ी बंदूकों की राह

यह उस समय की बात है जब देश में महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन चल रहा था। इस आंदोलन के चलते राम प्रसाद बिस्मिल बनारस आए थे और वहीं पर जाकर अशफाक उल्ला खान ने रामप्रसाद से मुलाकात की तथा अपनी शायरी के विषय में बताया। उसके बाद आसपास के इलाके में अशफाक और राम प्रसाद की दोस्ती तथा उनकी शायरी प्रसिद्ध होती चली गई। एक समय था जब अशफाक उल्ला खान, मोहनदास करमचंद गांधी उर्फ़ महात्मा गांधी के प्रत्येक आंदोलन पर भरोसा करते थे। लेकिन कुछ समय पश्चात उनका यह भरोसा टूट गया। जब अशफाक को महात्मा गांधी पर बेहद ही विश्वास था तब उन्होंने नज्म कही थी जिसके शब्द थे,

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,
आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे

हटने के नहीं पीछे, डर कर कभी जुल्मों से
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे

बेशस्त्र नहीं है हम, बल है हमें चरखे का
चरखे से जमीं को हम, ता चर्ख गुंजा देंगे

परवा नहीं कुछ दम की, गम की नहीं, मातम की
है जान हथेली पर, एक दम में गवां देंगे

उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज न निकालेंगे
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे

दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं
खूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे

मुसाफ़िर जो अंडमान के तूने बनाए ज़ालिम
आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे

1922 में चौरी चौरा कांड होने के पश्चात महात्मा गांधी ने अपना आंदोलन वापस लिया और उसके बाद सारे क्रांतिकारी महात्मा गांधी की राह से विमुख हो गए। सभी ने आजादी के लिए बंदूकों का सहारा लेने का निर्णय किया। इन सभी युवाओं का मानना था कि अंग्रेज कम संख्या में होने के पश्चात भी भारत पर केवल इसलिए राज कर रहे हैं क्योंकि उनके पास अच्छे हथियार हैं। इसीलिए निर्णय किया गया कि अंग्रेजों का वह धन लूटा जाएगा जो वे भारत से ले जा रहे हैं और फिर उसका प्रयोग भारत की आजादी के लिए किया जाएगा।

ट्रेन का खजाना लूट कर, उड़ाई अंग्रेजों की नींद

बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की 8 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर में एक बैठक हुई और हथियारों के लिए रकम जुटाने के उद्देश्य से ट्रेन में ले जाए जाने वाले सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई गई। क्रांतिकारी जिस खजाने को हासिल करना चाहते थे, दरअसल वह अंग्रेजों ने भारतीयों से ही लूटा था। 9 अगस्त 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिडी, ठाकुर रोशन सिंह, सचिंद्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल मुकुंद और मन्मथ लाल गुप्त ने लखनऊ के नजदीक काकोरी में ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया।

दोस्त की गद्दारी कारण हुई अशफाक की फांसी

इस कांड के पश्चात चंद्रशेखर आजाद और अशफाक उल्ला खान फरार हो गए। वे अंग्रेजों के हाथ ना आ सके। बनारस में जाकर 10 महीने तक एक कंपनी में काम किया और विदेश जाकर भारत की आजादी के लिए धन जुटाने की व्यवस्था करने लगे। लेकिन एक गद्दार ने और अशफाक उल्ला खान के यार ने अंग्रेजों को अशफाक उल्ला खान की मौजूदगी की खबर दे दी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 19 दिसंबर 1927 को अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद की जेल में फांसी दे दी गई। हम अशफाक उल्ला खान जैसे अमर शहीद को शत शत नमन करते हैं!…

एक तरफ आज जहां पूरा देश हिंदू मुस्लिम की आग में जल रहा है। जहां मुस्लिम वादी नेता लगातार हिंदुत्व को भला बुरा कर रहे हैं। एक समय ऐसा था जहां अशफाक उल्ला खान जैसे मुस्लिमों ने भारत की आजादी के लिए जंग लड़ी और सदैव हिंदुओं का सम्मान किया। वही रामप्रसाद जैसे ब्राह्मण अशफाक उल्ला खान का पूरा सम्मान करते थे।

“ना तेरा है ना मेरा है यह हिंदुस्तान सबका है,
नहीं समझी गई यह बात तो नुकसान सबका है!”

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