कैलाश मानसरोवर भारत के सबसे बड़े और पवित्र तीर्थ स्थल में से एक है। भारत से कैलाश मानसरोवर तक जाने का रास्ता लद्दाख से होकर गुजरता है लेकिन 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में भारत ने लद्दाख के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों में कई पोस्टों को खो दिया था। जिसके बाद कैलाश मानसरोवर की यात्रा चुशूल सेक्टर के कैलाश रेंज के पास से होकर गुजरने लगी। लेकिन 29-30 अगस्त को पैंगोंग झील के दक्षिणी क्षेत्र में चीनी सैनिकों के साथ हुई झड़प के बाद भारत ने कैलाश रेंज और कैलाश मानसरोवर के पूरे क्षेत्र को अपने कब्ज़े में कर लिया है।
1962 के युद्ध से पहले चुशुल सेक्टर का कई किलोमीटर का दायरा भारत के पास था। चुशुल सेक्टर के अंतर्गत आने वाले इस क्षेत्र की गुरंग हिल, मगर हिल, मुखपरी और रेचिन-ला दर्रा सभी कैलाश रेंज का हिस्सा है। लेकिन 1962 में रेजांगला और चुशुल की लड़ाई के बाद दोनों देश की सेनाएं इसके पीछे चली गई थीं और इस इलाके को पूरी तरह खाली कर दिया गया था।
पहले कैलाश पर्वत की यात्रा का सफर चुशुल से करीब 150 किलोमीटर दूर डेमचोक से होकर गुजरता था। 1962 के बाद से ही इस रूट को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था। लेकिन अचानक चीन ने कैलाश रेंज की पहाड़ियों को अपने कब्ज़े में लेने की पहल शुरू कर दी। हालांकि इस बार भारतीय सेना पूरी तरह से तैयार बैठी थी। भारतीय सेना ने रेचिन-ला दर्रे के करीब अपनी पूरी एक टैंक ब्रिगेड तैनात कर दी है।
बताते चले ही तिब्बत को अपने कब्जे में लेने के बाद भारत ने कैलाश मानसरोवर झील को भी अपने कब्जे में ले लिया था। चीन हर साल कैलाश मानसरोवर आने वाले भारतीयों को वीजा देता है। भारत के यात्री सिक्किम के नाथूला दर्रे और दूसरा उत्तराखंड के लिपूलेख दर्रे दो रूट्स से कैलाश जाते है। हाल ही में भारत ने उत्तराखंड के धारचूला से लिपूलेख तक के लिए एक नई सड़क बनाई है, जिससे कैलाश मानसरोवर तक पहुंचने का समय कम हो गया है। दूसरी तरफ भारत चुशुल सेक्टर की कई पोस्ट को भी अपने अधीन कर चुका है। यही कारण है कि चीन इस समय पूरी तरह से बौखलाया हुआ है और भारत के खिलाफ लद्दाख सीमा पर लगातार कार्यवाही करने पर उतारू है।