भारतीय वायु सेना के पूर्व प्रमुख बीएस धनोआ ने राफेल लड़ाकू विमानों के भारत की धरती पर उतरने का स्वागत करने के साथ ही कहा कि उन्होंने राजनीतिक विवाद के बावजूद इसके खरीद के सौदे का बचाव इसलिए किया था कि वह नहीं चाहते थे कि इसका हाल भी बोफोर्स जैसा हो जाए। 1980 के दशक में बोफोर्स तोप खरीदने के लिए कथित रूप से रिश्वत दी गई थी और इसके बाद राजनीतिक असर के चलते रक्षा खरीद पर काफी प्रभाव पड़ा और नौकरशाह सैन्य खरीद पर निर्णय लेते हुए आशंकित रहते थे।
सेवानिवृत्त एयर चीफ मार्शल धनोआ ने कहा, “मैंने सौदे का बचाव इसलिए किया था क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि यह बोफोर्स के रास्ते पर जाए। हम रक्षा खरीद प्रक्रिया के राजनीतिकरण के खिलाफ थे। यह वायुसेना की क्षमता सवाल था। मैं भारतीय वायुसेना के लिए काफी खुश हूं, क्योंकि इसने (राफेल) वायुसेना को हमारे विरोधियों पर जबर्दस्त बढ़त दी है।”
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एयर चीफ मार्शल (सेवानिवृत्त) अरूप साहा ने अपना विचार रखते हुए कहा, “राफेल के बेड़े में शामिल होने से वायुसेना की क्षमता बढ़ेगी, लेकिन देश को कम से कम 126 राफेल विमानों की जरूरत है, जिसकी कल्पना पहले की गई थी। मेरे कार्यकाल में यह सौदा हुआ था। यह एक अच्छा विमान है। यह इस क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ (विमानों) में से एक है। यह हवाई क्षेत्र में शक्ति के मामले में वायु सेना की क्षमताओं को बढ़ाने जा रहा है। हमें इसी तरह के कम से कम 126 विमानों की जरूरत है।”
इसके अतिरिक्त एक अन्य पूर्व वायु सेना प्रमुख फली होमी मेजर ने कहा, “36 राफेल विमान भारत की हवाई ताकत को बढ़ाएंगे, लेकिन कम से कम दो और स्क्वाड्रन होने से देश की वायु प्रभुत्व क्षमता काफी मजबूत होगी।” गौरतलब है कि एनडीए सरकार ने 23 सितंबर, 2016 को फ्रांस की एयरोस्पेस कंपनी दसाल्ट एविएशन के साथ 36 लड़ाकू विमान खरीदने के लिए 59,000 करोड़ रुपये का सौदा किया था। इसके करीब चार साल बाद भारत को बुधवार को पांच राफेल लड़ाकू विमान मिले।
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