भारतीय मूर्तिकला और भारतीय वास्तुकला से दुनिया परिचित है। अगर आप पुराने मंदिर और पुरानी मूर्तियों को देखें तो आपको पता चलेगा कि जो कलाएं आधुनिक लोग आधुनिक यंत्रों के द्वारा बनाते हैं। उससे भी अच्छी चित्रकारी हमारे पूर्वजों ने बिना आधुनिक यंत्रों के की थी। यही कारण था कि हजारों लोगों ने हमारे ऊपर आक्रमण कर हमारी वास्तुकला और हमारी चित्रकला को खंडित करने का प्रयास किया। आज भारत को अपनी भगवान शिव की एक मूर्ति वापस मिलने वाली है जिसकी चोरी 1998 में चित्तौड़गढ़ के घटेश्वर मंदिर से हुई थी। यह मूर्ति भगवान नटेश की है। यह मूर्ति नौवीं शताब्दी की बताई जा रही है।
भारतीय अधिकारियों के अनुसार जब उन्हें यह पता चला कि मूर्ति की तस्करी ब्रिटेन में हुई है, उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों को सतर्क कर दिया था। इसके लिए उन्होंने लंदन के एक प्राइवेट कलेक्टर से बात भी की थी। बाद में लंदन के प्राइवेट कलेक्टर ने ही इस मूर्ति को बरामद कर स्वेच्छा से 2005 में इसे भारतीय उच्चायोग को लौटा दिया था। भगवान शिव के इस दुर्लभ प्रतिमा को इंडिया हाउस में प्रदर्शनी में लगाया गया था। अगस्त 2017 में एएसआई विशेषज्ञों की एक टीम ने मूर्ति की जांच की और पुष्टि की कि यह वही मूर्ति है, जिसे बरोली गांव के घाटेश्वर मंदिर से चुराया गया था।
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इससे पहले कृष्ण की 17वीं शताब्दी की कांस्य मूर्ति और दूसरी शताब्दी में चूना पत्थर से बने स्तंभ को 15 अगस्त 2019 को अमेरिकी दूतावास द्वारा लौटाया गया था। इसके अलावा 15 अगस्त, 2018 को स्कॉटलैंड यार्ड द्वारा बुद्ध की 12 वीं शताब्दी की कांस्य प्रतिमा सौंपी गई थी। ब्रम्हा-ब्राह्मणी मूर्तिकला, जो गुजरात से चुराई गई थी, 2017 में एएसआई को वापस मिल गई। कुछ दिनों पहले पाकिस्तान के पश्चिमी राज्य में खुदाई के दौरान भगवान बुद्ध की मूर्ति मिली थी जिसे वहां के कट्टरपंथी लोगों ने तोड़ दिया था। इसी तरह राम जन्म भूमि ट्रस्ट की ओर से यह खबर आई थी कि अयोध्या में बनने वाले भगवान राम मंदिर के निर्माण के लिए जब भूमि को समतल किया जा रहा था तब वहां से कई शताब्दियों पुराने स्तंभ और मूर्तियां मिली थी।