कोरोना महामारी ने एक तरफ जहाँ पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था और आम जनजीवन को अस्त व्यस्त कर दिया है तो वहीं भारत कई पहलुओं पर विजय रहा है। भले ही भारत में कोरोना मरीजों की संख्या 9 लाख के पार हो गई हो लेकिन मरीजों के ठीक होने की दर के मुकाबले में भी भारत काफी आगे है। इसके अलावा मार्च 2020 में देश में दस्तक देने वाले कोरोना वायरस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस सपने को पूरा कर दिया है जो नोटबंदी के दौरान नहीं पूरा हो पाया था।
दरअसल केंद्र ने 2016 ने नोटबंदी के दौरान इस बात के कयास लगाए थे कि भारत डिजिटल की दुनिया में एक नया कदम रखेगा। लेकिन नई करंसी के नोट आते ही जनता ने फिर से नगद में लेन-देन शुरू कर दिया। वहीं अब कोरोना के बाद लोगों ने एक बार फिर डिजिटल पेमेंट को तवज्जो देना शुरू कर दिया है। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि कोरोना के बाद से अब हर 4 में से 3 उपभोक्ता डिजिटल सुविधाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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कोरोना संकट के दौरान लोग सब्जी, फल, दूध और दूसरी रोजमर्रा की जरूरतों के सामानों का डिजिटल पेमेंट कर रहे हैं। न्यूज इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक कैपजेमिनी रिसर्च इंस्टीट्यूट के 11 देशों में किए गए एक हालिया सर्वे में बताया गया है कि 78 फीसदी लोग अगले 6 महीने तक इसी मोड से पेमेंट करते रहेंगे। यानि की भारत को डिजिटल बनाने में केंद्र सरकार के कदम में कोरोना महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2019 में खत्म हुए वित्त वर्ष के दौरान प्रति व्यक्ति औसतन डिजिटल पेमेंट 22.4 रुपयों पर पहुंच गया है। इसके अलावा आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, 2015 से अब तक देश में प्रति व्यक्ति डिजिटल पेमेंट पांच गुना हो गया है।