चीन की सीमा से सटे लद्दाख के एक छोटे से गांव में हर एक घर में है भारतीय सेना का एक सदस्य

यहां रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि शिक्षा का अभाव यहां के लोगों को पीछे खींच रहा है। अगर यहां के नौजवानों को अच्छी शिक्षा मुहैया कराई जाए तो ये उच्च सैन्य अधिकारी के तौर पर उभर सकते हैं।

0
902

चीन की सीमा से सटा हुआ लद्दाख का एक छोटा सा गाँव चुशोत जहां के निवासी वर्षों से भारतीय सेनाओं को अपनी सेवाएं देते आ रहें हैं। यहां हर एक घर में कम से कम एक नौजवान भारतीय सेना का सदस्य है और जिनकी पोस्टिंग लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के समीपवर्ती इलाकों में हुई है। यहां की महिलाओं का कहना है कि अगर उन्हें अच्छी शिक्षा मिले तो वे भी अपना भविष्य बेहतर कर सकते हैं। पीढ़ियों से चुशोत गांव के लोग सेना को सेवाएं दे रहे हैं। यहां के लोग लद्दाख स्काउट, इन्फ्रेंट्री रेजीमेंट का हिस्सा भी हैं। कोमल, विनम्र लेकिन खतरनाक योद्धा युवकों ने पुरानी परंपरा को जारी रखा है। इस गांव के ज्यादातर लोग आर्मी को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। गांव में अधिकतर महिलाएं दिखती हैं, कुछ छोटे बच्चे भी नजर आते हैं। इस गांव में सेना में शामिल हुए लोग रहते हैं।

34 वर्षीय जारा बानो जिनके पति अपनी ड्यूटी निभाने के दौरान शहीद हो गए थे। उनके तीन भाई हैं जो सेना में हैं। उनका कहना है, ”मेरे दो बेटे हैं, जो शायद भारतीय सेना में शामिल हों। लड़कों के लिए यहां यही नियम है।” जारा बानो अपनी दोनों बच्चियों के करियर के प्रति स्पष्टता से नहीं सोच पा रही हैं। उन्होंने कहा, ‘मेरी दोनों बेटियां को भी अच्छी शिक्षा की जरूरत है। लेकिन हमारे यहां अच्छे स्कूल नहीं हैं। मैं उनके भविष्य के बारे में निश्चित नहीं हूं।’ यहां रहने वाले अन्य ग्रामीणों की भी यही चिंता है कि शिक्षा का अभाव यहां लोगों को पीछे खींच रहा है। महिला और पुरुष दोनों की चिंताएं शिक्षा को लेकर यहां एक सी हैं। जारा बानो के तीन भाई हैं। सभी लद्दाख स्काउट का हिस्सा हैं। सभी की तैनाती एलएसी के पास पूर्वी लद्दाख में हुई है। मौजूदा हालातों को देखते हुए उन्होंने कहा, ”हमें नहीं पता कि वे कैसे हैं! फोन के नेटवर्क यहां कम आते हैं। मौजूदा हालात में उन्हें फोन इस्तेमाल करने की इजाजत भी नहीं है।”

और पढ़ें: 15 जून को गलवान घाटी में हुई घटना से पहले ही चीन ने मार्शल आर्ट में माहिर सैनिकों को सीमा पर किया था तैनात

27 साल की रुकैया बानो ग्रेजुएशन करने गई थीं लेकिन ऐसे हालातों को देखते हुए उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। वह अभी फिलहाल नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन में काम करती हैं। सरकार के इस मिशन के जरिए महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि लड़कियां हाई स्कूल से ज्यादा नहीं पढ़ पा रही हैं। यहां लड़के भी सिर्फ 12वीं तक ही पढ़ते हैं, जिससे वे भारतीय सेना में शामिल हो सकें। यहां रहने वाली कम उम्र की महिलाएं आगे बढ़कर बात करती हैं, वहीं बुजुर्ग महिलाएं अपने बच्चों की बात करने में झिझकती हैं। सेना में शामिल होने वाले यहां के नौजवान जांबाज लोगों को अगर अच्छी शिक्षा मुहैया कराई जाए तो ये उच्च सैन्य अधिकारी के तौर पर उभर सकते हैं।

1971 में हुए भारत-पाकिस्तान की लड़ाई के हीरो रहे गुलाम मोहम्मद के दो बेटे हैं। वे चाहते हैं कि अगर यहां अच्छी शिक्षा मिले तो वे भी सैन्य अधिकारी हो सकते हैं। रिटायर्ड हवलदार गुलाम मोहम्मद ने कहा, ‘हमारे पास यहां अच्छी शिक्षा की कमी है। मैं चाहता हूं कि हमारी अगली पीढ़ी सेना में अधिकारी बने।’ भारतीय सेना में वर्षों से शामिल हो रहे हैं यहां के निवासी गुलाम मोहम्मद का एक बेटा इन दिनों गलवान घाटी के पास तैनात है, वहीं दूसरा बेटा दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर के पास चीन से जारी तनाव के बीच तैनात है। इस गांव में रहने वाले महिला और पुरुषों का संयुक्त रूप से मानना है कि अच्छी शिक्षा मिले तो यहां के लोगों का भविष्य बेहतर हो सकता है लेकिन 21वी सदी में भी अच्छे स्कूल और शिक्षा के अभाव के कारण ये आज तक आगे नहीं बढ़ पाये हैं।

Image Attribution: Crista Yazzie, U.S. Army / Public domain

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here