Labour Laws India | श्रम कानूनों में किए सुधार से क्या खुलेंगे उत्तर प्रदेश में रोजगार के द्वार?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा की गयी श्रम कानूनों में सुधार की पहल...

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Bole India: Labour Laws India
प्रतीकात्मक चित्र

Labour Laws India | कोरोना के इस संकटकाल में बहुत कुछ बदल रहा है। आज हर व्यक्ति इस बदलाव के अनुसार खुदको ढालने में लगा हुआ है। इस बदलाव का असर आर्थिक व्यवस्थाओं पर ज्यादा पड़ने वाला है। करोड़ों लोगों के भरण-पोषण व रोजगार की चुनौतियाँ अब बढ़ने वाली हैं। अनवरत रूप से जारी मजदूरों के पलायन से ये बात समझी जा सकती है कि आने वाले दिनों में बेरोजगारी की कितनी विकट समस्या उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में उद्योग जगत के समर्थन के बिना सरकार के लिए इन चुनौतियों से निपटना आसान नहीं होगा।

इसी समस्या से निपटने के लिये राज्य सरकारें ऐसी नीतियां बनाने में लगीं हुईं हैं जिनसे अपने गृह राज्य आए इन प्रवासी मजदूरों को रोजगार दिया जा सके और बेरोजगारी की समस्या न खड़ी हो। हाल ही में उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों ने श्रम कानूनों में बदलाव किए हैं।

इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की और कहा कि वह न केवल देशभर में फैले राज्य के सभी प्रवासी मजदूरों को वापस ले आएंगे, बल्कि उन्हें रोजगार भी दिलाएंगे। उत्तर प्रदेश में इसी के चलते पिछले दिनों ही श्रम कानूनों को तीन वर्षों तक के लिए निलंबित करने का फैसला लिया गया है। अनुमान के मुताबिक कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के चलते दो करोड़ ऐसे श्रमिक उत्तर प्रदेश पहुंचेंगे जिनके लिए रोजगार के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था करनी होगी।

उत्तर प्रदेश के प्रशासन की सूझ- बूझ देख अब और भी प्रदेश इन श्रम कानूनों (Labour Laws India) को अपने यहाँ भी कुछ सालों तक के लिए खत्म करने के पक्ष में सामने आ गए हैं। उत्तर प्रदेश के साथ मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों को भी ये समझ आ चुका है कि बिना श्रम कानूनों में बदलाव किए करोड़ों विस्थापित लोगों को रोजगार नहीं दिया जा सकेगा।

श्रम कानूनों में सुधार यानी औद्योगिक निवेश को बढ़ावा

उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहाँ लाखों की संख्या में मजदूर पहुंच चुके हैं और प्रतिदिन 50 से अधिक ट्रेनें इन मजदूरों को यहाँ पहुंचाने का कार्य कर रहीं हैं। उत्तर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में भी कमोबेश यही स्थिति है। जहाँ भारी संख्या में मजदूर अपने गृह राज्य लौट रहे, ऐसे में श्रम कानूनों (Labour Laws India) को तीन साल तक स्थगित करना समय की मांग थी। कांग्रेस नेतृत्व इस बदलाव की आलोचना कर रही है जबकि पंजाब और राजस्थान में उसी की सरकारों द्वारा इन श्रम कानूनों में बदलाव किया गया है।

मायावती, प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव जैसे नेताओं ने ट्विटर पर हमला बोल दिया, लेकिन उन्होंने यह जानने की ज़रूरत नहीं महसूस की कि ऐसा करने की आवश्यकता क्यों हुई? श्रम कानूनों में बदलाव इसलिए करना पड़ा ताकि अधिक-से-अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा सके।

चीन में स्थापित करीब सौ कंपनियां उत्तर प्रदेश में अपना कारोबार स्थापित करने की इच्छुक दिख रहीं हैं। वहाँ से जो इंडस्ट्री आ रही हैं उन्हें ताइवान और बांग्लादेश जैसे देशों की तुलना में भारत में ज्यादा अच्छा माहौल मिलता दिख रहा है। वहीं MSME के छोटे उद्यमी भी लोगों को अपने यहाँ रोजगार दे पाएं इसलिए भी इन कानूनों में परिवर्तन करना जायज़ है। इन कानूनों में न्यूनतम 15,000 रूपए प्रतिमाह की मजदूरी और सुरक्षा नियमों से कोई समझौता नहीं किया गया है व अन्य नियमों में उन्हें तीन सालों तक छूट देने का प्रावधान किया गया है।

श्रम सुधारों (Labour Laws India) की आवश्यकता इसलिए भी उत्तर प्रदेश में पड़ी जिससे मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए औद्योगिक निवेश को अपने यहाँ भुनाया जा सके और प्रदेश को प्रगति के पथ पर दौड़ाया जा सके। अब इन श्रम कानूनों में बदलाव से देश के विभिन्न राज्यों से लौटे कुशल कामगारों को आसानी से अपने ही गृहराज्य में रोजगार मिलने में कोई अड़चन नहीं आएगी।

नए उद्योगों को आसानी से इन राज्यों में स्किल्ड श्रमिक उपलब्ध हो पाएंगे और उन्हें इसके लिए कानूनी दांव-पेचों में भी नहीं उलझना पड़ेगा। बाहर से आने वाले कामगारों की स्किल मैपिंग इसीलिए सेवायोजन विभाग द्वारा की जा रही है। विभिन्न राज्यों से ये प्रवासी वर्षों बाद किसी क्षेत्र विशेष में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद ही अपने गृहराज्य पहुंचे हैं, ऐसे में उनके हुनर के अनुसार इन्हें काम देने पर विचार किया जा रहा है।

परिणामस्वरूप जिलेवार आँकड़े जुटाएँ जा रहें हैं जिससे शासन को पता हो कि किस जिले में कितने ड्राइवर, कारपेंटर व बुनकर आदि हैं। प्रस्तावित श्रम सुधारों से नए उद्योग लगेंगे जिनसे रोजगार और राजस्व में भी वृद्धि होने की पूरी संभावना है।

श्रम कानूनों में सुधार था वक्त की ज़रूरत

कुछ अव्यावहारिक अर्थशास्त्री और समाज विज्ञानी नेताओं ने राज्यों द्वारा किए गए श्रम कानूनों (Labour Laws India) में सुधार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। श्रमिकों की सुरक्षा का सवाल ही तभी बनता है जब लोगों को रोजगार मिल सके। वहीं अगर श्रम कानूनों के कारण ही रोजगार न उत्पन्न हो पाएं तो ऐसे में इन कानूनों का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है।

गौरतलब है कि प्रवासी श्रमिकों को मौजूदा श्रम कानूनों (Labour Laws India) के तहत कोई संरक्षण का लाभ नहीं मिलता था। अतः श्रम कानूनों ने भारत में बिगाड़ का ही काम किया है। अब नयें बदलावों की बात की जाए तो विनिर्माण और उत्पादन में कार्यरत उद्योगों के लिए 1000 दिनों तक के लिए छूट देने का फैसला किया गया है। शर्तों में साफ है कि कारखाना अधिनियम 1948 की धारा 62 के अनुसार सभी श्रमिकों के नाम व विवरण इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपस्थिति रजिस्टर पर दर्ज किए जाएंगे।

किसी भी श्रमिक को राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी से कम का भुगतान नहीं किया जाएगा। श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान तय समय सीमा में केवल उनके बैंक खातों में किया जाएगा। श्रमिकों के कार्य की अवधि पहले की ही तरह यथावत आठ घंटे ही रहेगी।

काम के दौरान होने वाले किसी भी दुर्घटना में मृत्यु या दिव्यांगता होने पर क्षतिपूर्ती का भुगतान कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 के अधिनियम संख्या 8 के अनुसार किया जाएगा। इसके साथ ही बच्चों एवं महिलाओं के रोजगार से संबंधित विभिन्न श्रम कानूनों के प्रावधान पहले की तरह मान्य होंगे। उद्योग जगत काफी लम्बे समय से श्रम कानूनों में बदलाव करने की मांग कर रहा था इसलिए विपक्षी दलों और श्रम संगठनों को इन सुधारों के सकारात्मक पहलुओं पर भी विचार करना चाहिए और वक्त की ज़रूरत के लिहाज से ये देखना चाहिए कि कैसे अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया हो और देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हो।

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