लॉकडाउन के बाद छोटे उद्योग कैसे सामना करें बड़े बाज़ार का?

सरकार को चाहिए कि वे छोटे उद्यमियों के लिए अच्छा माहौल बनाए जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें व खुदको बड़े बाजार में स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ पाएं।

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कोरोना काल के पहले से ही देश के छोटे उद्योग संकट का सामना कर रहे थे। मार्च 2019 में बैंकों द्वारा दिए गए कुल कर्ज में इनका हिस्सा करीब 5.58 प्रतिशत था जो फरवरी 2020 तक आते-आते घटकर 5.37 प्रतिशत रह गया। पिछले काफी सालों से छोटे उद्योग दबाव में अपना व्यापार (small industries) करने को मजबूर हैं। ऐसे में वो न तो कर्ज लेने की स्थिति में हैं और न ही बैंक उन्हें कर्ज देने की स्थिति में हैं।

वहीं, अब लॉकडाउन के कारण ये परेशानी और बढ़ गई है। देश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या आज दो लाख से भी अधिक हो चुकी है। इससे साफ है कि इस खतरनाक वायरस से उपजी महामारी से फिलहाल छुटकारा मिलने नही वाला लेकिन ये भी राहत भरी खबर है कि विकसित देशों से तुलना करने पर हमारे देश में इस वायरस से मरने वालों की संख्या काफी कम है। अब कोरोना संकट के बीच कारोबारी (small industries) गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए लॉकडाउन से बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है पर चुनौतियाँ जस-की-तस हैं।

देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार ने पिछले महीने 20 लाख करोड़ रूपए के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी जिसे अब आत्मनिर्भर भारत योजना भी कहा जाने लगा है। इस विशेष आर्थिक पैकेज में से सरकार ने छोटे उद्योगों की मदद करने के उद्देश्य से 3 लाख करोड़ रूपए का विशाल पैकेज बनाया है। इसके तहत उन्हें बिना गारंटी दिए बैंक से अतिरिक्त ऋण मिल सकेगा। इसके अतिरिक्त ऋण की गारंटी केंद्र सरकार देगी। सरकार द्वारा ये कदम छोटे उद्योगों (small industries) के हौसलों को बढ़ाने में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।

सरकार ने रेहड़ी-पटरी वालों को भी लॉकडाउन के बाद कारोबार वापस शुरू करने के लिए 10,000 रूपए तक के कर्ज को मंजूरी दे दी है लेकिन कर्ज लेने की सार्थकता भी तभी सिद्ध होती है जब बाजार में माल की मांग हो। मौजूदा हालातों में मांग बढ़ती भी नहीं दिख रही जिससे आने वाले समय में सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

हमें अपने गौरवमय इतिहास को याद करने की है ज़रूरत

नोटबंदी का उदाहरण हम सबके सामने है कि कैसे सरकार की साफ नीयत के बावजूद बैंक कर्मियों की मिली भगत से ये नीति असफल हो गई। ऐसी ही स्थिति छोटे उद्यमियों यानी MSME के लिए घोषित पैकेज से उत्पन्न हो सकती है। छोटे उद्योगों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन देने के साथ ही उन्हें सुविधा भी देनी होगी। केवल ऋण की सुविधा देकर हम उन्हें आगे नहीं बढ़ा सकते।

छोटे उद्यमियों को मांग का लालच और साथ में ऋण का समर्थन देने की आवश्यकता है। बाजार में छोटे उद्योगों के द्वारा बनाए गए माल की मांग न बढ़ने में विश्व व्यापार (small industries) संगठन एवं आयातों को दोषी माना जा सकता है। विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत बड़े विदेशी उद्योगों द्वारा भारत के बाज़ार में सस्ता माल उपलब्ध करवाया जा रहा है जैसे चीन में बने गणेश जी या बल्ब इत्यादि। इन बड़े विदेशी उद्योगों के आगे हमारे छोटे उद्योग (small industries) भला कैसे टिक पाएंगे?

देश के छोटे उद्योगों में उत्पादन लागत अधिक होती है इसलिए वे सस्ते आयातित सामानों के आगे ठहर नहीं पाते व बाज़ार से अपने आप ही कट जाते हैं। देश की जनता को इनके द्वारा उत्पादित माल भले ही थोड़े महंगे ही क्यों न हो पर खरीदने को मजबूर करना होगा।

हमें आयात कर बढ़ाने होंगे। वर्तमान में कुछ वस्तुओं पर हमने आयात कर कम लगाया हुआ है। सभी आयातित वस्तुओं पर अधिकतम सीमा तक आयात कर लगाने चाहिए। ज़रूरत पड़े तो हमें विश्व व्यापार संगठन से भी अलग हो जाना चाहिए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पहले ही इस संगठन को निष्प्राण कर दिया है। इस दिशा में हमें अपने गौरवमय इतिहास को याद करना चाहिए। खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर हम इस संगठन में जो ठहराव लाए थे वो आज भी जारी है।

अच्छे माहौल से छोटे उद्यमी भी आत्मनिर्भर बन सकेंगे

माइक्रो, स्माल, मीडियम इंटरप्राइजेज (MSME) की नई परिभाषा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी द्वारा बदल दी गई है। अब नई परिभाषा के अनुसार 250 करोड़ रूपए तक टर्नओवर वाली कंपनियाँ इस दायरे में आएंगी। वहीं, अब एनपीए में तब्दील हो चुकीं 2 लाख MSMEs को उबारने के लिए 20,000 करोड़ रूपए के अतिरिक्त फंड की मंजूरी दी गई है। इसके साथ ऐसी एमएसएमई जो अच्छा प्रदर्शन कर रहीं हैं उन्हें और मजबूत बनाने के लिए 50,000 करोड़ के फंड ऑफ फंड्स की भी मंजूरी मिल गई है।

इसी के साथ कहा जा सकता है कि कोरोना संकट के कारण हुए अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान की भरपाई के लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे इन कदमों की हमें सराहना करनी चाहिए। वहीं, सरकार को इस ओर भी अपना ध्यान देना चाहिए कि उद्यमी माल का ऐसे उत्पादन करें कि वे अपने माल को ऊंचे दाम पर बेचकर लाभ कमाएं और उस लाभ से कर्ज पर ब्याज एवं मूलधन अदा करें। जब बाजार में माल की उचित मांग ही नहीं होगी तब अतिरिक्त कर्ज लेना खुदको संकट में डालने जैसा होगा।

अगर बाजार में छोटे उद्योगों द्वारा बनाए माल की मांग होगी तो वे कैसे भी अपने उद्योग को आगे बढ़ाने में कामयाब होंगे। माल की बिकवाली हो तो वो खरीदार से एडवांस ले सकता है या अपने किसी रिश्तेदार से उधार ले सकेगा या बैंक ही ऐसे में अतिरिक्त ऋण देने को तैयार हो जाते हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वे छोटे उद्यमियों के लिए अच्छा माहौल बनाए जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें व खुदको बड़े बाजार में स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ पाएं।

एमएसएमई करेंगे देश के बेहतर कल का निर्माण

एमएसएमई सेक्टर को और मजबूती देने के लिए देश के बड़े उद्यमियों पर टैक्स बढ़ा देना चाहिएI छोटे व बड़े उद्योगों पर अलग-अलग दर से जीएसटी वसूल किए जाने की ज़रूरत है। तब छोटे उद्योगों (small industries) द्वारा बनाए गए उत्पादों की कीमत कम होगी जिससे उनकी बिक्री भी बढ़ेगी और वे बेहतर तरीके से खुदको बाजार में पेश कर पाएंगे। इस प्रकार वे खुदही अपने व्यापार के लिए आवश्यक पूंजी की व्यवस्था कर लेंगे व बैंक भी उन्हें और आगे बढ़ने के लिए ऋण भी सहजता से दे सकेगा।

अब लॉकडाउन से बाहर निकलने की कोशिश समय की मांग है। अगर जीविका के साधनों को बल नहीं मिलेगा तो आने वाले कल में ये समस्या एक विकराल रूप ले सकती है। ऐसे में सरकार को आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों में ढील देने की ज़रूरत है जिससे वे विकास की पटरी पर आ सकें और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देकर वे एक बेहतर कल का निर्माण कर पाएं।

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