प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गोद लिए गए इस गांव में कोरोना संक्रमण का निशान नहीं

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प्रतीकात्मक चित्र

2014 का लोकसभा चुनाव जीतने और प्रधानमंत्री बनने के बाद वाराणसी के सांसद नरेंद्र मोदी ने ज़िले के जयापुर गांव को सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया था। जिसका मक़सद इस गांव को आदर्श गांव बनाना था। गांव में पिछले 20 दिनों में 35 लोग मुंबई, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात से आए हैं। ये सभी लोग इन दिनों होम क्वारैंटीन पर हैं। जयापुर गांव के ग्राम प्रधान श्रीनारायण पटेल का बेटा राहुल इस निगरानी समिति का सदस्य है, उस समिति में राहुल की जिम्मेदारी गाँव में कोरोना न हो इसकी देखरेख करना तथा लोगों को मुंह बांधे रखने से लेकर बाहर से आने वालों को क्वारैंटीन करने तक शामिल है।

चूंकि बनारस धीरे-धीरे पूर्वांचल का कोरोना संक्रमितों का हॉटस्पॉट बनता जा रहा है, इसलिए निगरानी समिति का काम बढ़ गया है। लेकिन अब तक गांव कोरोना संक्रमण से बचा हुआ है। निगरानी समिति के युवा सदस्य राहुल सिंह पटेल ने बताया कि हम लोग गांव में जो भी प्रवासी मजदूर आ रहे हैं। उन्हें पहले थर्मल स्क्रीनिंग सेंटर ले जाते हैं। वहां उनकी जांच कराने के बाद उन्हें क्वारैंटीन करने की व्यवस्था करते हैं। इसके बाद हमारी समिति के सदस्य चुपचाप इस बात पर नजर रखते है कि क्वारैंटीन व्यक्ति कहीं गांव में बाहर तो नहीं घूम रहा। क्यूंकि बाहर घूमने से कोरोना संक्रमण के फैलने का खतरा अधिक है।

निगरानी समिति लोगों के घर जाकर भी लोगों को इसकी जानकारी देती है कि कोरोना के संक्रमण को फ़ैलने से रोकने के लिए क्या क्या सावधानी बरतनी चाहिए। समिति द्वारा विशेष ध्यान रखा जाता है कि जिन मजदूरों के पास होम क्वारैंटीन रहने की जगह नहीं है तो इस स्थिति में वह प्रशासन की मदद से उसकी व्यवस्था भी करते हैं। गांव के ही आम लोग इस समिति के सदस्य है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी के गोद लिए जयापुर गांव में 35 लोगों के होम क्वारैंटीन होने के बावजूद अभी तक एक भी पॉजिटिव केस नहीं मिला है।

भिवंडी से नासिक तक पैदल और फिर ट्रक से गांव पहुंचे गौतम को लगता है कि प्रशासन को उनके जैसे प्रवासी मजदूरों को घर के बदले स्कूलों में ही क्वारैंटीन रखना चाहिए। वहां टॉयलेट-बाथरूम की व्यवस्था ठीक रहती है। होम क्वारैंटीन रहने वालों को कई बार घर में बच्चों के चलते दूरी बनाए रखने में मुश्किल आती है। वे बताते हैं, ‘मेरे तीन बच्चे हैं। गांव आने के बाद से ही क्वारैंटीन हूं। तीनों बच्चों को नजर के सामने देखता हूं, तो उन्हें गले लगाने का मन करता है। पर कोरोना वायरस के डर से बच्चों को पास तक आने से मना कर देता हूं’।

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