देश को आर्थिक संकट से बचाना है तो, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को करना होगा दुरुस्त

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कोरोना संक्रमण से ग्रामीण भारत का फिलहाल काफी हद तक अछूते बने रहना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। भारत के शहर जहाँ एक के बाद एक कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्र अपनी ग्रामीण सामूहिक संस्कृति, सरकारी नीतियों व प्रशासनिक अधिकारियों के मिले-जुले प्रयासों से अभी तक इस महामारी की चपेट में नहीं आए हैं। अब ग्रामीण भारत की अगली चुनौती इस संक्रमण को नियंत्रित रखने के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था (Indian economy) को इस लॉकडाउन के बीच भी कमज़ोर न पड़ने देना होगा। देखा जाए तो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बसने वाली आबादी लगभग 66 फीसद है जिसमें से करीब 25 फीसद आबादी गरीबी रेखा से नीचे है।

कोरोना काल में जारी किए गए लॉकडाउन के कारण भारत के औद्योगिक शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ ज़बरदस्त पलायन हुआ है। इससे न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था (Indian economy) पर दबाव बढ़ा है बल्कि अब गाँव का अर्थतंत्र भी नई करवट लेता नज़र आ रहा। केंद्र व राज्य सरकारें कोरोना महामारी के खिलाफ आर्थिक जंग में किसानों की बड़ी भूमिका बनती देख रहे हैं। ऐसे में भारत के आर्थिक तंत्र को मज़बूती देने के लिए सरकारें किसानों को सशक्त बनाने में कोई कोर-कसर नहीं बाकी रखना चाहतीं। प्रशासन भी अपनी ज़िम्मेदारी का अच्छे से निर्वाहन तभी कर सकता है जब कृषि की नवीनतम तकनीक के साथ खेती को लाभकारी व रोजगारपरक बनाने हेतु कृषक को जागरूक किया जाएगा।

ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था

आज ग्रामीण आबादी का तकरीबन 64 प्रतिशत किसान और खेतिहर मजदूर है और अपनी जीविका के लिए खेती पर निर्भर है। वहीं, बाकी के 36 प्रतिशत कामगार कुशल एवं अर्धकुशल मजदूरों के रूप में कार्य कर रहे हैं। कोरोना काल में लाखों लोगों द्वारा शहरों से अपने गाँवों की ओर कूच करने के कारण खेती पर और अधिक लोगों की निर्भरता हो सकती है जिससे प्रति व्यक्ति आय में और कमी देखने को मिल सकती है। ग्रामीण आबादी की जीविका के तीन मुख्य स्त्रोत होते हैं- पहला सरकार द्वारा घोषित विभिन्न राहत पैकेज जैसे महिला जनधन खातों में भेजे गये 500 रूपए और बृद्ध एवं कमज़ोर वर्गों के खातों में जमा कराई गई 1000 रूपए की राशि व इसके साथ अतिरिक्त राशन मुहैया कराया जाना। दूसरा स्त्रोत है मनरेगा से मिलने वाली मजदूरी। कोरोना संकट के बीच गाँवों में लोगों को रोज़गार दिलाने में मनरेगा अहम भूमिका निभा सकता है।

इसे देखते हुए सरकार ने मनरेगा के पारिश्रमिक में बढ़ोत्तरी कर इसे और मज़बूत कर दिया है। अब एक दिन की मजदूरी के एवज में उन्हें 201 रूपए दिए जाएंगे। इसके साथ ही सरकार ने मजदूरों को और सशक्त बनाने हेतु अब 150 दिनों का रोज़गार सुनिश्चित कराए जाने का फैसला किया है जिससे अधिक से अधिक लोगों को रोज़गार मुहैया कराया जा सके। अगर इस फैसले को मंज़ूरी मिल जाती है तो मनरेगा गाँवों में रोज़गार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मनरेगा के अलावा भी कई और प्रमुख योजनाएं हैं जो मुख्यतः किसानों के हित में सरकार द्वारा बनाई गईं हैं जैसे किसान सम्मान निधी, किसान दुर्घटना बिमा योजना, फसल बीमा योजना, पीएम बीमा योजना व किसान क्रेडिट कार्ड। आखिरी यानी तीसरा स्त्रोत है खेती एवं उससे जुड़ी गतिविधियां जैसे डेयरी, पोल्ट्री आदि। केंद्र व राज्य सरकारों को मिलकर इन तीनों स्त्रोतों के लिए कार्य योजना बनानी चाहिए जिससे ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था (Indian economy) में और धार लाई जा सके।

कोरोना संकट में खाद्य सुरक्षा

कोरोना संकट से उत्पन्न हालातों ने ये तो सिखा ही दिया है कि अब उत्पादन से लेकर उसकी बिक्री तक के लिए आधुनिक तरीके अपनाने होंगे। ऐसे में संभव है कि शहरों से लौटे युवा अब अपने गाँवों में रहकर ही अपनी पहचान बनाने का फैसला करें। अगर ऐसा हुआ तो गाँव की तस्वीर एवं अर्थव्यवस्था (Indian economy)दोनों बदल सकती हैं। कोरोना काल के इन मौजूदा हालातों में एक बात तो साफ है कि वैश्विक बाज़ार में लम्बे समय तक खाद्यान्न की मारामारी रहेगी। ऐसे में देश की खाद्य सुरक्षा को बरकरार रखने के साथ खाद्यान्न के निर्यात की मांग को पूरा करने का एक अच्छा अवसर भी है।

लॉकडाउन के समय भी भारत द्वारा 50 हज़ार टन गेहूं का निर्यात किया गया है। पूरी दुनिया में खाद्य उत्पादों की मांग तेज़ी से बढ़ रही है। कोरोना संकट में हर देश अपनी ज़रूरतों से अधिक मात्रा में खाद्य सुरक्षा के तौर पर स्टॉक रख लेना चाहता है। ऐसे में भारत को इस मौके को भुनाने में देरी नहीं करनी चाहिए। निर्यात मांग को पूरा करने से खेती की दिशा व दशा दोनों बदल सकती है। वहीं, खेती के साथ के उद्यमों में पशुधन, डेयरी, पॉल्ट्री, बागवानी पर भी समान ध्यान देना होगा। तभी ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं किसानों का उद्धार संभव है।

कृषि के मशीनीकरण का समय

चालू लॉकडाउन के समय कृषि के मशीनीकरण का यह सबसे उपयुक्त समय है। इसीके जरिए ही किसान अपनी लागत घटाने एवं समय से अपनी उपज मंडी तक पहुंचा सकते हैं। सरकार ने भी इस माहौल को समझते हुए ओला-उबर की तर्ज पर खेती के लिए उपयोगी ट्रैक्टर्स एवं ट्रकों को किसानों को किराए पर उपलब्ध कराने हेतु ऑनलाइन बुकिंग की व्यवस्था की है। इसके लिए ‘किसान रथ’ जैसे एप मुहैया कराए जाने का फैसला किया गया है। इसके साथ ही माइक्रो इरिगेशन में ड्रिप व स्प्रिंकलर जैसी सिंचाई की आधुनिक तकनीक के प्रसार हेतु केंद्र की ओर से पहले ही वित्तीय मदद मुहैया कराई जा रही है।

मंडियों का विकेंद्रीकरण

लॉकडाउन के कारण किसान सब्ज़ी, फल, फूल, दूध, मछली, पॉल्ट्री आदि की बिक्री सही से नहीं कर पा रहे हैं और उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ रहा। ऐसे में सरकार को चाहिए कि रकबे के आधार पर नुकसान का आकलन कर किसानों की आधी या पूरी भरपाई की व्यवस्था करे, जिससे उनकी जीविका चल सके व वे अगली फसल की व्यवस्था कर सकें। सब्ज़ी एवं फलों की बिक्री के लिए सरकार को फार्म गेट से खरीदने की व्यवस्था करनी चाहिए। मंडियों का विकेंद्रीकरण करके शहर में दस-बीस छोटी मंडियां स्थापित की जा सकतीं हैं। ताज़ा उदहारण चंडीगढ़ का है जिसने इसमें अच्छी पहल की है। इन छोटी मंडियों से फल-सब्ज़ी शहरों तक पहुँचाने वाले वेंडरों को चिन्हित कर कोरोना की जाँच के बाद परिचय पत्र सौंपा जाए। इसके साथ ही फलों एवं सब्ज़ियों को दूसरे राज्यों के बाज़ार में पहुंचाने के लिए किसान रथ एप का इस्तेमाल किया जा सकता है।

ग्रामीण भारत- देश का रक्षा कवच

एक तरफ जहाँ गाँव में मनरेगा को लेकर बदलाव के साथ इसे एक बड़ा गेम चेंजर माना जा रहा। वहीं, प्रशासन भी कोरोना संकट के बीच ग्रामीण अर्थव्यवस्था (Indian economy) को और मज़बूत बनाने की दिशा में प्रयासरत है। गाँवों में जैविक व सहफसली खेती के उत्पादन को बढ़ावा देना, फल-फूल, सब्ज़ी व औषधीय खेती के साथ पशुपालन, दुग्ध विकास, मत्स्य पालन, रेशम का विकास व मशरूम की खेती से गाँव के पूरे अर्थतंत्र को वक्त के साथ आज बदलने की ज़रूरत है। कोरोना महामारी के समय गाँव एवं खेती एक तरह से देश के रक्षा कवच बनकर उभरे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि गाँवों में भी शहरों की तरह सुविधाएं हों जिससे यहां से शहरों की ओर पलायन कम-से-कम हो।

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