पेंडिंग केस निपटाने के लिए उच्चतम न्यायालय के इतिहास में यह पहला अवसर है जब मामलों की सुनवाई की जिम्मेदारी एकल न्यायाधीश को सौंपी जा रही है। अब तक सुप्रीम कोर्ट में एकल जज पीठ का प्रावधान नहीं था। यहां डिवीजन बेंच यानी कम से कम दो जजों की बेंच ही होती रही है। सिंगल जज बेंच जमानत के मामलों में स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) और सभी तरह के ट्रांसफर केसों की सुनवाई करेगी। सिंगल जज बेंच सात साल तक की सजा के मामलों में जमानत या अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। अभी तक ऐसे मामलों में दो जजों की बेंच सुनवाई करती थी। पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने नियमों में बदलाव कर सिंगल जज बेंच को मंजूरी दी थी। लेकिन यह व्यवस्था अब लागू की जाएगी।
ये नई व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट में काम की रफ्तार को बढ़ाने के लिए की गई है। सुप्रीम कोर्ट में ये कदम केसों की अधिकता के चलते उठाया गया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में 1970 के दशक तक सिंगल जज की बेंच का चलन था। यहां तक कि 24 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की चुनाव याचिका पर फैसला भी सुप्रीम कोर्ट के एकल जज ने सुनाया था। इसके बाद नियमों में संशोधन कर अदालत में कम से कम दो जजों का पीठ का नियम बनाया गया। लेकिन 17 सितंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के 2013 के नियमों में संशोधन कर एकल पीठ के गठन का नियम बनाया गया। अब CJI एस ए बोबडे ने बुधवार 13 मई से सिंगल जज की बेंच की शुरुआत का फैसला किया है।
जानकारों के मुताबिक 1970 के दशक में छुट्टियों के समय ही जरूरी मामलों में अंतरिम आदेश के लिए सिंगल जज की बेंच बैठती थी। और बाद में दो या तीन जजों की बेंच नियमित सुनवाई करती थी। 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस कृष्णा अय्यर ने भी इंदिरा गांधी मामले में इस तरह फैसला दिया था। और अयोग्यता पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद देश में इमरजेंसी लग गयी थी। अब इस तरह सुप्रीम कोर्ट में सिंगल जज की नियमित बेंच का गठन कोर्ट के इतिहास में पहली बार किया गया है। कानून मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल जुलाई तक सुप्रीम कोर्ट में 11.5 लाख केस पेंडिंग थे। कोरोना संकट की वजह से सुप्रीम कोर्ट बहुत ज्यादा जरूरी मामलों की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कर रहा है।