सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर कहते हैं कि लॉकडाउन में चरणबद्ध ढंग से ढील दी जायेगी । 17 मई के बाद भी हालात के मुताबिक फैसला किया जाएगा। बगैर लक्षण के भी वायरस की मौजूदगी मिलने से सामाजिक दूरी बनाए रखना ही बचाव का एकमात्र उपाय है। वन एवं पर्यावरण मंत्री के रूप में जावड़ेकर प्रदूषण घटने से खुश तो हैं, लेकिन आगाह करते हैं, हालात हमेशा ऐसे ही नहीं रहने वाले। महामारी से निपटने के लिए किए जा रहे उपायों पर उन्होंने अमर उजाला के शरद गुप्ता से विस्तृत बातचीत की। सारी दुनिया कोरोना के अनअपेक्षित संकट से जूझ रही है अमेरिका, सिंगापुर तथा कई देशो में भी कई चरणों में लॉकडाउन रहा। कुछ राज्यों में लगा, कुछ में नहीं। पर भारत ने कोरोना को काबू करने में दूसरे देशों के मुकाबले काफी ज्यादा सफलता पाई है। हमारे विशेषज्ञ समूह समन्वय रख रोज समीक्षा करते हैं, फिर कदम उठाया जाता है। चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन लगा और इसी तरह उठा भी रहे हैं। आर्थिक गतिविधियां सुनिश्चित कर रहे हैं। कोरोना फैलने में किसी एक वर्ग, जाति या मजहब के लोगों को दोष देना ठीक नहीं है।
धार्मिक स्थल हो, बाजार हो या शराब की दुकान, सोशल डिस्टेंसिंग रखना सबसे ज्यादा जरूरी है। इस नए कांसेप्ट का प्रचार-प्रसार सबसे ज्यादा जरूरी है। रोग के लक्षण नजर नहीं आने से भी खतरा बढ़ा है। न खांसी आती है, न छींक या बुखार, फिर भी वायरस है। ऐसे में अनजाने में ही रोग फैल रहा है। इसलिए सामाजिक दूरी ही बचा सकती है। लोगों में कोरोना के प्रति सजग हो गए है। 90 प्रतिशत लोगों ने लॉकडाउन का पूरा पालन किया है। लोगो मास्क तथा रुमाल से मुँह ढक रहे है। सैनिटाइजर नहीं है तो साबुन से कई बार हाथ धो रहे हैं। थोड़ी समस्या समाजिक दूरी बनाये रखने की है। अगर लोग भीड़ वाली जगह पर एक दूसरे से 5-6 फुट की दूरी बनाए रखें तो कोरोना को आसानी से हराया जा सकता है। दुनिया की तुलना में हम बेहतर स्थिति में है । अमेरिका में 70000 मौतें और 12 लाख से ज्यादा रोगी हैं। 25000 से ज्यादा मौतें ब्रिटेन, इटली, स्पेन और फ्रांस में हुईं। 10000 के करीब बेल्जियम, जर्मनी और ब्राजील में हुई हैं।
इनके मुकाबले भारत में स्थिति किसी हद तक नियंत्रण में है। प्रधानमंत्री मोदी जी दिसंबर से ही कोरोना से लड़ने की तैयारी कर रहे थे। हर कैबिनेट मीटिंग में कहते थे कि बहुत बड़ा संकट आने वाला है। इसीलिए आज देश में 800 कोविड-19 अस्पताल हैं। दो लाख से ज्यादा आइसोलेशन बेड हो गए, 15000 से ज्यादा आईसीयू बेड हो गए। आज केवल 80-90 लोग ऑक्सीजन पर हैं, महज साठ लोग वेंटिलेटर पर। शुरू में मास्क आयात किए, फिर खुद बनाने शुरू किए।आज हम अपनी जरूरत के मास्क खुद बना रहे हैं। शुरू में वेंटिलेटर आयात करने पड़े अब 36 हजार वेंटिलेटर बन रहे हैं। इसी तरह पीपीई किट में भी आत्मनिर्भर हो गए हैं। सबसे बड़ी वजह लोगों को प्रधानमंत्री में विश्वास है। उन्हें लगता है, मोदीजी हमारे लिए काम कर रहे हैं, हमारी व हमारे परिवार की जिंदगी बचा रहे हैं। उन्हें भरोसा है, लॉकडाउन के बाद हमारी रोजी-रोटी की भी चिंता प्रधानमंत्री कर रहे हैं। धीरे-धीरे हालात सामान्य होने की ओर बढ़ रहे हैं।