चीन से निकला कोरोना वायरस आज पूरी दुनिया में हाहाकार मचाए हुए है। महामारी बन चुकी ये बीमारी आज इतना विकराल रूप न ले पाती अगर चीन ने इसे शुरूआती स्तर पर छुपाने के बजाए इसको रोकने के लिए कारगर कदम उठाए होते। अगर आज इस वैश्विक संकट का कोई गुनहगार है तो वो कम्युनिस्ट चीनी सरकार है लेकिन अपने आर्थिक रसूख व आपूर्ति तंत्र पर पकड़ के चलते अमेरिका के अलावा कोई और देश उसकी आलोचना नहीं कर पा रहा है, अपने इसी रसूख के चलते ही कोविड-19 के मामले में चीन ने डब्ल्यूएचओ को भी गुमराह किया। इसीके चलते 14 जनवरी को डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि ‘चीन में सामने आई नई बीमारी के मामले में मनुष्य से मनुष्य में संक्रमण के संकेत नहीं दिखे हैं।‘ चीन की खुराफात 21 जनवरी को पकड़ में आई जब चीन से जुड़े इस संक्रमण के मामले थाईलैंड और ताइवान में भी सामने आए जबकि पहले मामले की बात करें तो वो तो वुहान से दो हफ्ते पहले ही उजागर हो गया था पर तब चीन ने इसे छुपाना ही बेहतर समझा था। सच्चाई पर पर्दा डालने और सच से पर्दा उठाने वालों को ठिकाने लगाने में चीन हमेशा से आगे रहा है। इसी के चलते चीन की पुलिस ने कोरोना के खिलाफ चेताने वाले 8 डॉक्टरों को अपनी गिरफ्त में ले लिया था। अपनी साम्यवादी संस्कृति, जवाबदेही की कमी और गोपनीयता के माहौल से चीन के हालात और भी खराब हो चले हैं। भला 21वीं सदी में भी क्या कोई इंसान खुदपे इतनी पाबंदियों की कल्पना कर सकता है जितना चीन में रह रहे लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
कमज़ोर होता अमेरिका
जहाँ तक अमेरिका के वैश्विक नेतृत्व का सवाल है तो उसे लेकर भी आजकल काफी गंभीर प्रश्न पूछे जा रहे हैं। कोविड-19 जैसे आज अमेरिकीयों की जानें ले रहा है उसका ज़िम्मेदार काफी हद तक अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की इस बीमारी को कमतर आंकना भी है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए द्वारा भी ट्रम्प प्रशासन को बार-बार अमेरिका को लॉकडाउन करने को कहा गया लेकिन ट्रम्प सरकार ने उनकी सलाह नहीं मानी। अब ट्रम्प पर ये आरोप लग रहे है कि उन्होंने अमेरिकियों की जान की परवाह किए जाने की जगह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के डूबने की चिंता की और लॉकडाउन को जितना हो सके टालने की कोशिश की। जब कोरोना वायरस यूरोपीय देशों में तबाही मचा रहा था तब ट्रम्प द्वारा कहा गया कि तापमान बढ़ने के बाद ये महामारी किसी चमत्कार की तरह गायब हो जाएगी। ट्रम्प सरकार इस वायरस की गंभीरता को समय रहते समझने में नाकाम सिद्ध हुई, इसीके चलते कुछ हफ्तों में ही अमेरिका में कोविड-19 से संक्रमित होकर मरने वालों का अम्बार लग गया। वहीं, जब अमेरिका ने कोरोना वायरस के मामले में दुनिया से सही जानकारी छुपाने व डब्ल्यूएचओ की चीन से मिलीभगत करने के आरोप लगाए और डब्ल्यूएचओ को मिल रही सहायता राशि बंद करने का कदम उठाया तो चीन डब्ल्यूएचओ के साथ आ गया और उसकी हरसंभव मदद करने को राज़ी नज़र आया। आज तमाम कमियों के बावजूद भी चीन वैश्विक नेतृत्व के लिए अपना एक मॉडल पेश कर रहा है और ऐसे में विश्व महाशक्ति का दंभ भरने वाले अमेरिका के नीति-निर्माताओं के लिए ये चिंता की बात है।
वैश्विक व्यवस्था के बदलते समीकरण
इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि कोरोना के बाद विश्व व्यवस्था में भी बहुत कुछ बदल जाएगा। जैसे इसकी शुरुआत भी होने लगी है तभी जो बात कूटनीतिक व वैश्विक कारोबार में चोरी-छुपे कहा जाया करती थी वो अब खुलकर सामने आने लगी है। जापान ने पहल करते हुए अप्रैल के पहले हफ्ते में ये घोषणा कर दी थी कि जो जापानी कम्पनियां अपना कारोबार चीन से समेट लेंगी उन्हें सरकार की तरफ से आर्थिक सहायता दी जाएगी। ऐसी जापानी कम्पनियां जो चीन से निकलकर जापान में अपना कारोबार स्थापित करेंगी उन्हें पीएम एबी शिंजो की सरकार 200 करोड़ डॉलर यानी करीब 15,000 करोड़ रूपए का फंड देगी। वहीं, जापान ने चीन से बाहर किसी अन्य देश में जाकर उत्पादन करने पर उन जापानी कम्पनियों को 21.5 करोड़ डॉलर की मदद का प्रस्ताव रखा है। इसी बीच यूएस इंडिया स्ट्रैटेजिक एंड पार्टनरशिप फोरम की बात मानें तो अमेरिका-चीन के मध्य छिड़े ट्रेड वॉर में चीन में उत्पादन करने वाली तकरीबन 200 अमेरिकी कम्पनियां पिछले साल ही भारत में निवेश की इच्छा जता चुकी हैं। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया और अन्य यूरोपीय देशों द्वारा भी आने वाले समय में कुछ ऐसा ही रुझान देखने में आ सकता है। ऐसे में भारत के नीति-निर्माताओं को कुछ ऐसी परियोजनाएं व अपने यहां कारोबार करने पर विशेष रियायतों को देने का प्रयास करना चाहिए जिससे ज़्यादा-से- ज़्यादा विदेशी कम्पनियों को भारत में निवेश करना फाएदा का सौदा लगे।
भारत के उद्योग जगत की फिक्र
लॉकडाउन के कारण ठप पड़ीं औद्योगिक इकाइयों एवं कारोबारी गतिविधियों को शुरू करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें प्रयत्नशील दिख रहीं हैं। सरकार उद्योग और व्यापार जगत के प्रतिनिधियों की समस्याएं, शंकाएं और अपेक्षाएं समझ रही है और अपना सकारात्मक रुख प्रदर्शित कर रही है। इसी के चलते पिछले दिनों केंद्र सरकार द्वारा उद्योग एवं व्यापार जगत के लिए जल्द ही सहायता पैकज घोषित करने का भी संकेत दिया गया है। केंद्र सरकार ये भी स्पष्ट कर चुकी है कि किसी औद्योगिक या व्यवसायिक परिसर में किसी कर्मचारी के कोरोना संक्रमित पाए जाने पर वहां के प्रबंधन को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा बल्कि यह निर्णय बाकायदा जाँच रिपोर्ट के आधार पर तय किया जाएगा। जीएसटी से संबंधित भी कुछ बिंदु हैं जिनपर सरकार द्वारा पुनर्विचार किया जा सकता है। लॉकडाउन के बाद असली चुनौती अपने घर जा चुके कर्मचारियों को वापस लाने, कच्चे माल की उपलब्धता और उत्पादित माल की खपत को लेकर है। फिलहाल सरकार ने 50 फीसद वर्कफोर्स के साथ कंपनियों को कार्य शुरू करने की इजाज़त दी है। ऐसा भी नहीं की औद्योगिक और व्यवसायिक इकाइयां कार्य शुरू नहीं करना चाहतीं पर उनकी भी कुछ जायज़ मांगे हैं जिनकी तरफ सरकार को ध्यान देना चाहिएI
दुनिया को राह दिखाए भारत
आम बजट 2020-21 में वित्त मंत्री द्वारा ये बता दिया गया था कि भारत अपनी तमाम रोज़मर्रा के उत्पादों की ज़रूरतों के लिए चीन पर अपनी निर्भरता ख़त्म करेगा। वहीं, अब कोरोना वायरस फैलाने का आरोप झेल रहे चीन की जैसे-जैसे दुनिया के कई देश खुलकर धज्जियां उड़ायेंगे वैसे-वैसे उम्मीद की जा सकती है कि भारत अपना सामर्थ्य दिखलाएगा और विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ेगा। ऐसा हो पाना मुश्किल तो है पर असंभव नहीं। कोविड-19 से निपटने के लिए जैसे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में दुनिया के शीर्ष देशों के समूह जी-16 की बैठक बुलाई गई वह अभूतपूर्व था क्योंकि ऐसा करिश्मा कभी भारत के अबतक के प्रधानमंत्रियों द्वारा नहीं दिखाया गया था। इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि केवल भारत ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तित्व से आज समूचा विश्व परिचित है। ऐसे में संभावनाओं को सच किया जा सकता है।