नई दिल्ली | कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ रहे डॉक्टरों, मेडिकल वर्करों से लेकर आशा वर्करों तक को सुरक्षा देने के लिए कैबिनेट ने एक नया अध्यादेश लाने का फैसला किया है। इस नए अध्यादेश के मुताबिक मेडिकल स्टाफ पर हमला करने वाले को सात साल तक की सजा और पांच लाख तक के जुर्माने का प्रावधान लाया गया है। इंदौर समेत देश भर में स्वास्थ्यकर्मियों पर होने वाले हमले की खबरों ने सभी को झकझोर कर रख दिया था। अब इस तरह के हमलों के दोषियों के खिलाफ सरकार सख्ती से कार्रवाई करने का नक्शा बना रही है।
कैबिनेट ने अध्यादेश को मंज़ूर करते हुए यह तय किया गया है कि कोरोना वायरस के खिलाफ फ्रंटलाइन पर जंग लड़ रहे देश के मेडिकल स्टाफ के लाखों लोगों की सुरक्षा के लिए अध्यादेश के तहत मेडिकल स्टाफ के खिलाफ गंभीर हमलों को संज्ञेयनीय माना जाएगा। यानी की दोषियों के खिलाफ पुलिस बिना कोर्ट की इजाजत के कार्रवाई कर सकती है। साथ ही दोषियों को जमानत भी नहीं मिल पाएगी। साथ ही दोष साबित होने पर उन्हें छह महीने से लेकर सात साल तक की सजा दी जा सकती है और एक लाख से पांच लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
हमले के दौरान डॉक्टरों या हॉस्पिटल की प्रॉपर्टी को हुए नुकसान की भरपाई भी दोषियों से वसूली जाएगी। इस अध्यादेश के ज़रिए 123 साल पुराने कानून में संशोधन किया गया है। मेडिकल वर्करों के प्रोटेक्शन के लिए कैबिनेट ने आर्डिनेंस जारी करने का फैसला किया है। एपेडमिल डिसीज एक्ट 1897 में एमेंडमेंट को कैबिनेट ने एप्रूव किया है।