बिहार । नब्बे का दशक बिहार की गौरव-गाथा पर किसी काले धब्बे से कम नहीं था। बिहार जहानाबाद जिला पूरे देश में हो रहे नरसंहारों के लिए जाना जाता था। 17 साल से भी ज्यादा समय होने के बावजूद सेनारी गांव के लोग उस काली रात को आज भी भूल नहीं पाते हैं। सेनारी नरसंहार की 21वीं बरसी पर संजय शर्मा और राकेश शर्मा दो वैसे व्यक्ति भी मौजूद थे जो रुह कंपा देने वाले उस कांड के साक्षी थे। भेंड़-बकरियों की तरह जब नौजवानों की गर्दन काटी जा रही थी तो ये दोनों बेबसी-से अपनी गर्दन कटने का इंतजार कर रहे थे। राकेश शर्मा ने बताया कि दर्जनों की संख्या में हमलावरो ने गांव से पकड़कर लाये गए युवकों को कसकर पकड़ रखा था और उनमें से एक ग्रुप धारदार हथियार से एक-एक कर युवकों की गर्दन काटकर एक तरफ गिरा रहा था। हमलावरों की हरकत से यह प्रतीत हो रहा था कि सभी ने शराब पी रखी थी। संजय शर्मा और राकेश शर्मा ने बताया कि अंधेरा नहीं होता और उन लोगों ने शराब नहीं पी रखी होती तो शायद वे भी चिरनिद्रा में सो गए होते।
दरअसल 1980 के फरवरी महीने में जहानाबाद के पिछड़े और दलित बहुल परसबिगहा गांव को चारों ओर से घेरकर आग लगाने और जान बचाकर भाग रहे बीस लोगों को गोलियों से भून देने के बाद जहानाबाद में जातीय और उग्रवादी हिंसा की जो चिंगारी निकली वो अगले देढ़ दशक तक पूरे इलाके के सामाजिक शांति को जलाकर राख करती रही। 1980 के दशक से शुरु हुए नरसंहारों के दौर से 2005 तक नीतीश कुमार की सरकार के अभ्युदय के बीच जहानाबाद और अरवल में नक्सली जातीय वर्चस्व को ले हुए ख़ूनी संघर्ष में छोटी-बड़ी तक़रीबन 4 दर्जन नरसंहार की वारदाते हुई जिसमें तक़रीबन साढ़े तीन सौ बेगुनाह लोगों के ख़ून से दोनों जिले की धरती लाल होती रही। पड़ोस के गया जिला के मियांपुर गांव में 35 और बारा गांव में 36 लोगों का कत्लेआम किया गया। इन नरसंहारों के दौर ने सभी जिला के समग्र आर्थिक विकास पर भी इसका बुरा असर पड़ा।