दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंकने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी के हाथ से सत्ता की चाबी एक बार फिर निकल गयी। गृहमंत्री अमित शाह, पीएम नरेंद्र मोदी, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और करीब 250 सांसद भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को रोक नहीं पाए। इस बार दिल्ली का चुनाव राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दे पर लड़ा गया। भाजपा ने जहां राष्ट्रवाद को तवज्जो दी तो वहीं आम आदमी ने अपने काम पर वोट मांगे। जिसके चलते दिल्ली की जनता ने भाजपा के राष्ट्रवाद को दरकिनार कर अरविंद केजरीवाल के विकास पर लगातार तीसरी बार मोहर लगाई। 16 फरवरी को अरविंद केजरीवाल 62 विधायकों के साथ लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।
इसी के साथ भाजपा का दिल्ली में वनवास अब 22 साल से बढ़कर 27 साल का हो गया है। विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की हैट्रिक लगाने और भाजपा की बड़ी हार के एक नहीं कई कारण हैं। लगातार पांचवे राज्य की सत्ता का हाथ से जाना दर्शाता है कि जनता अब हर विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर वोट नहीं देने वाली। दिल्ली की तस्वीर भी कुछ इसी तरह की रही। भाजपा का वोट प्रतिशत इस बार बढ़ा जरूर लेकिन कुछ गलतियों की वजह से भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में अपना वर्चस्व लहरा नहीं पाई। आज हम आपको दिल्ली में भाजपा को मिली हार के पीछे 5 प्रमुख कारणों के बारे में बताते हैं।
सीएम का चेहरा घोषित न करना
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपने काम के दम पर प्रचंड बहुमत हासिल किया लेकिन अगर आप पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने में कामयाब रही है तो उसका बड़ा श्रेय अरविंद केजरीवाल को भी जाता है। पिछले 5 सालों में शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी की समस्या को हल करने वाले अरविंद केजरीवाल के नाम पर ही लोगों ने आप पार्टी को वोट दिया। जबकि भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री का चेहरा ही रहा। चुनाव के आखिरी तक भाजपा अपना मुख्यमंत्री चेहरा जनता के बीच नहीं ला पायी। जिसे अंत तक केजरीवाल ने बड़ा मुद्दा बनाये रखा। आम आदमी पार्टी ने अपना पूरा चुनावी कैंपेन अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर ही केंद्रित रखा। जबकि भाजपा को वोट देने के लिए जनता को कोई चेहरा मिला ही नहीं।
राष्ट्रवाद और आक्रामकता
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के इस चुनाव की शुरुआत से ही विकास के मुद्दों को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया जबकि भाजपा ने राष्ट्रवाद के रास्ते को चुना। भाजपा ने अपना पूरा चुनावी कैंपेन शाहीन बाग और नागरिकता कानून पर केंद्रित कर वोटरों के ध्रुवीकरण की कोशिश की लेकिन चुनाव नतीजे बताते हैं कि भाजपा की यह रणनीति बुरी तरह विफल साबित हुई।
केजरीवाल की फ्री योजनाएं
भारतीय जनता पार्टी को इस चुनाव में जिस चीज़ से सबसे बड़ा खतरा था, अंत में वही हुआ। केजरीवाल की फ्री योजनाओं का भाजपा के पास कोई तोड़ नहीं रहा। आम आदमी पार्टी की फ्री बिजली, फ्री पानी और मोहल्ला क्लिनिक जैसी योजनाओं के सामने भाजपा की कोई योजना नहीं ला पायी जिसका खामियाजा उन्हें बुरी तरह से भुगतना पड़ा।
पार्टी की भीतरी गुटबाजी
2017 में नगर निगम चुनाव के दौरान ही पार्टी की भीतरी गुटबाज़ी सामने आने लगी थी। टिकट बंटवारे को लेकर भी पार्टी के कार्यकर्ता कुछ खास संतुष्ट नहीं थे। इसका असर विधानसभा चुनाव पर भी पड़ा। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी अकेले लड़ते नजर आए। टिकट बंटवारे को लेकर भी पार्टी में अंत तक खींचतान रही। कार्यकर्ताओं ने अपनी ही पार्टी पर बाहरी नेताओं को टिकट देने का आरोप लगाया।
पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ना
पिछले 5 राज्यों में भाजपा के चुनाव हारने का सबसे बड़ा कारण राज्यों के चुनाव को भी पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ना था। दिल्ली के साथ भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। दिल्ली चुनाव में भाजपा अपने पूरी चुनावी कैंपेन में आम आदमी पार्टी के कामों की काट के लिए मोदी सरकार के कामों को गिनाती रही लेकिन चुनावी नतीजे बताते हैं कि दिल्ली की जनता ने इसको बुरी तरह नाकार दिया।