हम सभी जानते हैं कि भारतीय राजनीति में आजकल अपराधियों का बोलबाला हो चुका है। भारत के बहुत से विधायक और सांसद तथा मंत्री पर विभिन्न थानों में अलग-अलग धाराओं में मुकदमे दर्ज हैं। मुकदमे होने के बाद भी विभिन्न राजनीतिक दलों में उनका स्वागत किया जाता है। इसी मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। कानपुर के बिकरू कांड मामले में एसएचओ विनय कुमार तिवारी और एसआई केके शर्मा की जमानत याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने यह टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि यह प्रत्यक्ष प्रमाण है कि इन आरोपियों को पुलिस कार्रवाई के बारे में पहले से जानकारी थी और उन्होंने स्पष्ट रूप से इसका खुलासा गैंगस्टर को किया है।
गैंगस्टर विकास दुबे के खिलाफ पुलिस कार्रवाई के बारे में सूचना कथित तौर पर लीक करने के लिए एसएचओ विनय कुमार तिवारी और एसआई केके शर्मा को गिरफ्तार किया गया था। इस सूचना के लीक होने से तीन जुलाई, 2020 को बिकरू गांव में पुलिस पर घात लगाकर हमला किया गया जिसमें आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे।
अदालत ने कहा, “यह चिंताजनक रुख देखने में आया है कि एक या दूसरी राजनीतिक पार्टी सगंठित अपराध में शामिल गैंगस्टरों और अपराधियों का अपने यहां स्वागत करती हैं और उन्हें संरक्षण देने एवं बचाने की कोशिश करती हैं, ऐसे में उनकी राबिनहुड जैसी छवि बनाती हैं। उन्हें चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया जाता है और कभी कभी वे चुनाव जीत भी जाते हैं। इस रुख पर जितनी जल्दी हो सके, अंकुश लगाने की जरूरत है।” अदालत ने कहा, “सभी राजनीतिक दलों को साथ बैठकर यह निर्णय करने की जरूरत है कि गैंगस्टरों और अपराधियों को राजनीति में आने से हतोत्साहित किया जाए और कोई भी पार्टी उन्हें टिकट ना दे।”
अपराधी सिर्फ अपराधी होता है
अदालत ने कहा, “राजनीतिक दलों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि “मेरा अपराधी” और “उसका अपराधी” या “मेरा आदमी” और “उसका आदमी” जैसी कोई अवधारणा नहीं हो सकती क्योंकि गैंगस्टर केवल गैंगस्टर होता है और एक दिन ये गैंगस्टर और अपराधी “भस्मासुर” बन जाएंगे और इस देश को इतनी गंभीर चोट पहुंचाएंगे जिसे ठीक नहीं किया जा सकेगा।” अदालत ने कहा, “यहां ऐसे पुलिसकर्मी हैं भले ही उनकी संख्या बहुत कम है जो अपनी निष्ठा अपने विभाग से कहीं अधिक ऐसे गैंगस्टरों के प्रति दिखाते हैं और इसका कारण वे अच्छी तरह से जानते हैं। इन आरोपियों के कृत्य ने न केवल गैंगस्टरों को सचेत किया, बल्कि उन्हें जवाबी हमले के लिए कमर कसने की भी सहूलियत दी जिससे यह मुठभेड़ हुई जिसमें आठ पुलिसकर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ी।”