जब भी किसी के घर में शादी होती है या कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है। तो वहां पर लोग 21,51,101,501,2001 रूपये शगुन के तौर पर भेंट करते हैं। लेकिन आप सभी लोग नहीं जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है?कहीं रिपोर्ट में यह बात कही जाती है कि पुराने समय में शगुन के तौर पर 20 आना देने की परंपरा थी जिसका अर्थ होता था 1 रुपया 25 पैसे , यानी रुपया। एक रुपए में 16 आने होते थे, इसीलिए 50 पैसे को अठन्नी कहते थे और 25 पैसे को चवन्नी…यानी कि पुराने समय में भी रुपयों को कुछ बढ़ाकर देने की परंपरा थी।
वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों का मानना है कि जीरो यानि कि शून्य का एक मतलब यह भी होता था कि लेन-देन का व्यवहार ख़त्म…इसलिए भी शून्य से बचते थे। एक ज़माने में बीस आने का दान “महादान” कहलाता था। हिन्दू धर्म में इसके रेगार्डिंग एक बात और प्रचलित है वो यह कि शगुन देते समय मूल धन (Principal Amount) जैसे कि 500 रूपये वो हम आपकी ज़रूरतों के लिए आपको दे रहे हैं और जो एक रूपया हम अलग से जो आपको दे रहे हैं उसे आप सही (बुरे) वक़्त के लिए बचा कर रखें या कहीं बचा कर रखें या फिर दान करके अपने अच्छे कर्मों को इकट्ठा कर लें….
कहते हैं जब दो अलग सभ्यता एक दूसरे के साथ रहने लगती है तो एक दूसरे के संस्कार और कुछ अपनाये जा सकने वाले रीति-रीवाज़ों को भी अपना लेती है यही कारण है कि ‘हिन्दू धर्म की यह दानशीलता भारतीय मुसलमानों’ में भी पायी जाती है। शगुन के यह रुपये मुसलमान भी वैसे ही शुभ अवसरों पर देते हैं जिस तरह से हिंदू दान देते हैं।