भारत का मुकुट कहे जाने वाले कश्मीर के इतिहास से हम सभी वाकिफ है। किस तरह से सैनिकों पर पत्थर फेंकना और देश को गाली देना कश्मीर में आम हो गया था। ये हम सभी जानते हैं… हिंदुस्तान जिंदाबाद बोलने वाले एक एक व्यक्ति को आतंकियों की मदद से मौत के घाट उतार दिया जाता था। लेकिन ज़ब से कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया गया है तबसे राज्य में शांति और विकास की गंगा बहने लगी है। अब्दुल समद (70 वर्ष) ने कश्मीर के ताज़ा हालात बयान करते हुए दैनिक जागरण से कहा कि आज के हालात देखकर मैं कई बार महसूस करता हूं कि सच वह है जो आज है। मैं रायशुमारी के नारे लगानी वाली भीड़ में भी शामिल रहा हूं। बंदूक उठाने वालों को भी करीब से देखा है। मैं उस भीड़ में रहा जो यहां निजाम ए मुस्तफा का नारा लगाती हुई गलियों में घूमती थी। मैंने कभी वोट नहीं दिया। आज मुझे लगता है कि मैं ख्वाब में जी रहा था। हकीकत वही है जो आज मेरी आंखों के सामने है।
शाहिद नाम के एक युवक ने कहा कि बाहर से आने वालों के लिए कश्मीर सिर्फ डल झील, लाल चौक, गुलमर्ग, पहलगाम है। और भीतर आएं तो न तो विकास और न ही रोजगार मिला है। पाकिस्तान ने हमें गुमराह कर हमारे हाथों में बंदूक दी, हमें खूनी बनाया है। पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को मैंने नहीं देखा। यही सुना है कि उन्होंने रायशुमारी का वादा किया था और उस पर सियासत होती रही। यहां विकास चाहिए, नौकरियां चाहिए, वह कब मिलेंगी, टीवी और अखबार में बयान नहीं चाहिए। अगर उन्होंने अपना वादा पूरा नहीं किया तो मैं यही कहूंगा कि सरकार कश्मीरियों को तरक्की, खुशहाली के नाम पर बेवकूफ बना रही है। मुझे अमन, खुशहाली के माहौल में जीना है, उसका वादा किया है वह दो। मुझे तलाशी अभियान के नाम पर घर से बाहर नहीं निकाला जाना चाहिए।
सामाजिक कार्यकर्ता सलीम रेशी ने बताया कि आप कश्मीर को एक टैक्सी चालक, एक हाउसबोट मालिक या होटल मालिक के नजरिए से मत देखिए। आप बाजारों में भीड़ को भी मत देखिए। आप चंद दिनों तक आम कश्मीरी बनकर कश्मीर में रहिए। आपको सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे। कश्मीर की सियासत, माहौल और कश्मीरी बहुत बदल चुका है। 370 के हटने का उसे बहुत गुस्सा है, लेकिन वह यह जानता है कि यह अब नहीं लौटेगी। रही बात तिरंगे की तो आम कश्मीरी ने कब यहां इस झंडे का विरोध किया। इसका विरोध करने वाले आज जेल में हैं। कश्मीरियों ने आजादी, रायशुमारी की सियासत खूब झेली है। दो साल बहुत होते हैं, खैर, अब गेंद पूरी तरह केंद्र सरकार के पाले में है।