किसान आंदोलन को पूरे हुए 100 दिन, क्या किसानों के ही दुश्मन बन बैठे हैं किसान?

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किसानों के आंदोलन को 100 दिन बीत चुके हैं लगातार किसान नेताओं का कहना है कि सरकार जल्द से जल्द इन कृषि गानों को वापस ले, अन्यथा हम पूरे देश में ट्रैक्टर रैली निकालेंगे, वहीं दूसरी तरफ सरकार का कहना है कि हम हर प्रकार का संभव प्रयास कर रहे हैं कि किसानों को इन कानूनों के फायदे बता सके हैं लेकिन किसान नेता चाहते हैं केवल कृषि कानूनों को खत्म करने की मांग पर अड़े हुए हैं ऐसे में समझौता कैसे हो सकता है? लेकिन अब बताया जा रहा है कि किसानों का आंदोलन अब उन्हीं के लोगों पर भारी पड़ रहा है। किसानों के नाम पर शुरू हुए इस आंदोलन ने हरियाणा की इंडस्ट्री को बर्बाद कर दिया है। सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला टेक्सटाइल सेंटर आज आंसू बहाने की कगार पर आ चुका है। प्रदेश में आंदोलन का माहौल होने के कारण व्यापारी पानीपत नहीं आ रहे हैं। ट्रांसपोर्टर्स ने अपनी सप्लाई बंद कर दी है, कंबल की फैक्ट्री आप बंद हो चुकी हैं बहादुरगढ़ की फुटवियर इंडस्ट्री पर भी ताला लग चुका है सोनीपत में हजारों लोग अब पलायन कर चुके हैं।

बताया जा रहा है कुछ समय पहले किसानों के नेता राकेश टिकैत ने कहा था कि हम अपने अधिकारों के लिए अपनी एक फसल की कुर्बानी भी दे देंगे लेकिन अब यह कुर्बानी हरियाणा में खुलेआम देखी जा रही है। किसान अपनी ही सब्जी की फसल को अपने क्षेत्र में तबाह कर रहे हैं इसका एक कारण तो यह है कि वे आंदोलन का समर्थन करना चाहते हैं लेकिन वही दूसरा कारण यह भी है कि उनकी यह फसल बिक ही नहीं रही है।

बॉर्डर के साथ लगते दिल्ली के गांव झाड़ोदा में सब्जी उत्पादकों को भी लाखों का नुकसान हुआ है। यहां पर करीब ढाई हजार एकड़ में गोभी की फसल की जाती है। बॉर्डर बंद होने के कारण लोग अपने खेतों के रास्ते से वाहनों का आवागमन करने के कारण सब्जी की फसल को नुकसान हो रहा है। किसान ओमप्रकाश डागर,बल्लू पंडित,प्रताप पंडित,अरविंद डागर,प्रकाश डागर,देवेंद्र डागर,काला साहब ने दैनिक जागरण को बताया कि आंदोलन की वजह से जब से बॉर्डर बंद हुए हैं उससे पहले गोभी 10 से 12 रूपये प्रति किलो बिकती थी परंतु अब 50 पैसे प्रति किलो में भी उनके ग्राहक नहीं मिल रहे हैं।

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