आजादी का वो नायक, चंद्रशेखर आजाद, जिसने एक लड़की की इज्‍जत बचाने के लिए अपने साथी पर चला दी गोली

आजादी के संग्राम में बहुत सारे युवकों ने अपने प्राणों का उत्सर्ग हमारे देश की आजादी के लिए किया है। निश्चित रूप से किसी भी युवक के प्राणों का मोल हम आने वाली सदियों तक नहीं चुका सकते। इन सभी क्रांतिकारियों में एक और नाम शामिल होता है वह नाम है चंद्रशेखर आजाद का। मध्यप्रदेश के छोटे से गांव में जन्म लेकर चंद्रशेखर आजाद ने भारत की आजादी की लड़ाई में जो योगदान दिया निश्चित रूप से वह सराहनीय है और सम्माननीय भी।

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भारत की आजादी के संग्राम में देश भर के लोगों ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया। कहीं युवा,कहीं महिलाएं तो कहीं वृद्धि बुजुर्ग भी इस जंग में अपना योगदान दे रहे थे कुछ लोग अहिंसा के पथ पर चलकर राष्ट्र की आजादी का स्वप्न देख रहे थे तो वहीं कुछ लोग अपने प्राणों को खतरे में डालकर देश की आजादी का स्वप्न गढ़ रहे थे। इन्हीं क्रांतिवीरों एक नाम शामिल होता है चंद्रशेखर आजाद का… चंद्रशेखर आजाद का जन्म उत्तर प्रदेश के झाबुआ नामक गांव में हुआ था। अपने माता पिता की एकमात्र संतान थे लेकिन आजादी के लिए ऐसे दीवाने थे कि छोटी सी उम्र में अपना घर छोड़ कर चले गए। एक बार जब महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन मे भाग लिया कांग्रेस पुलिस अधिकारी ने पीठ पर लाठियां बरसा दीं। और अग्रेंज ने आजाद से पूछा नाम क्या है? तो चंद्रशेखर आजाद ने कहा आजाद… पिता का नाम क्या है?स्वतंत्र… रहते कहां हो? जेल में… पुलिस अधिकारी ने उन्हें सजा दी और उसके बाद चंद्रशेखर आजाद ने प्रण लिया कि मरते दम तक में अंग्रेजों के हाथ नहीं आऊंगा!

महिलाओं का सम्मान करते थे आजाद

चंद्रशेखर आजाद और उनके साथियों ने एक जमीदार के घर डकैती की क्रांतिकारियों ने घर में घुसकर लूटपाट की इसी बीच किसी दल का एक साथी कामवासना में अंधा हो गया और उसने वहां पर मौजूद एक नौजवान लड़की से अभद्रता शुरू कर दी। चंद्रशेखर आजाद ने यह देखा तो उसे चेतावनी दी कि ऐसा न करे लेकिन उसने आजाद की बात नहीं मानी। चंद्रशेखर आजाद अपने सिद्धांत और कर्तव्यों से जुड़े हुए थे उनके सामने किसी महिला के साथ अभद्रता हो यह उन्हें बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं था। उन्‍होंने अपने उस साथी पर गोली चला दी। फिर उन्‍होंने उस युवती से इस अभद्रता की माफी मांगी और उस जगह से कुछ लिए बिना ही लौट गए। यानी दूसरी डकैती में भी हिंदुस्तानी रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों के हाथ कुछ नहीं लगा।

27 फरवरी को चंद्र शेखर आजाद अपने एक साथी सुखदेव राज के साथ मिलने आए। लेकिन किसी व्यक्ति ने चंद्रशेखर आजाद की मुंह पर ही कर दी और अंग्रेजों ने चंद्रशेखर आजाद को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में घेर लिया। काफी देर तक चंद्रशेखर आजाद और अंग्रेजों के बीच गोलीबारी चलती रही लेकिन जब चंद्रशेखर आजाद के पास अपनी माउजर में केवल एक गोली बची तो उन्होंने उस गोली को उन्होंने अपने माथे में उतार लिया और अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। वास्तव में मरते दम तक चंद्रशेखर आजाद “आजाद” ही रहे।

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