देश के दूसरे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन आज ही के दिन वर्ष 1966 में तस्कंड में हुआ था। पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद 9 जून 1964 को शास्त्री प्रधानमंत्री बने थे। शास्त्री ने ही ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था। वो करीब 18 महीने तक प्रधानमंत्री रहे। उनके नेतृत्व में ही भारत ने 1965 की जंग में पाकिस्तान को शिकस्त दी थी।
आज देश जिस तरह से Corona संकट से लड़ रहा है ठीक उसी तरह आज से 6 दसक पहले भी देश के सामने ऐसी चुनौती अाई थी और उस समय देश के प्रधानमंत्री शास्त्री जी हुआ करते थे और उनके एक बातों पर पूरे देश ने सप्ताह में एक दिन खाना त्याग दिया था ।
क्या था पूरा मामला
1964 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के बाद निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनके प्रधान मंत्री बनने के साथ ही देश में अनाज का संकट हो गया और अमेरिका ने अपने कुछ शर्तों के साथ भारत को अनाज देने की कोशिश की लेकिन स्वाभिमानी लाल बहादुर शास्त्री को यह बातें नागवार गुजरी और शास्त्री जी ने अमेरिका के प्रस्ताव को सिरे से ख़ारिज कर दिया।
अमेरिका के प्रस्ताव को ख़ारिज करने के बाद देश के प्रधानमंत्री ने अपने परिवार वालों के साथ एक दिन का उपवास रखा जिसके बाद उन्हें लगा कि इससे देश में अनाज को बजाया जा सकता हैं और तभी उन्होंने इस बात की अपील देशवासियों से की।
देशवासियों से अपील करते हुए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था कि – ”हमें भारत का स्वाभिमान बनाए रखने के लिए देश के पास उपलब्ध अनाज से ही काम चलाना होगा. हम किसी भी देश के आगे हाथ नहीं फैला सकते. यदि हमने किसी देश द्वारा अनाज देने की पेशकश स्वीकार की तो यह देश के स्वाभिमान पर गहरी चोट होगी। इसलिए देशवासियों को सप्ताह में एक वक्त का उपवास करना चाहिए। इससे देश इतना अनाज बचा लेगा कि अगली फसल आने तक देश में अनाज की उपलब्धता बनी रहेगी।”
देशवासियों से आह्वान करते हुए देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कहा कि – देश वासियों अपने पेट पर रस्सी बांधो, साग-सब्जी ज्यादा खाओ, सप्ताह में एक दिन एक वक्त उपवास करो, देश को अपना मान दो।”
इस आह्वाहन के बाद देश के लोगों पर बहुत बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा । देश के लोगों ने बिना हिचक और झिजक के प्रधानमंत्री के आदेश को अपने आंखों पर रखा। देश के लोगों ने प्रधानमंत्री के निवेदन पर और देश के स्वाभिमान को बचाने के लिए सप्ताह में एक दिन अन्नं त्याग दिया। शहर हो या गांव, युवा हो या बुजुर्ग, बच्चे हो या महिला सभी सप्ताह में एक दिन भूखे रहते और देश में चल रहे अनाज यज्ञ में अपना आहुति देते।
प्रधानमंत्री के आग्रह के बाद देश के किसी लोगों ने किसी तरह की कोई शिकायत नहीं की और तो और देश के वैसे लोग भी इस यज्ञ में हिस्सा लेने लगे जिनके पास पहले से ही अनाज का अभाव था। लाल बहादुर शास्त्री के कुशल नेतृत्व और देश के लोगों के प्रति उनकी पकड़ का ही देन था कि अनाज संकट होने के बावजूद भी भारत को किसी भी अन्य राष्ट्र के सामने अनाज के लिए हाथ नहीं फैलाना पड़ा क्युकी उनके आह्वाहन के बाद देश के लोगों ने उनके फ़ैसले का स्वागत करते हुए ख़ाली पेट रह कर अगले फसल होने तक स्वाभीमान से जिया।