वैसे तो रोहिंग्या मुस्लमान को दुनिया का सबसे ज्यादा प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय माना जाता है। लेकिन इसके साथ ही रोहिंग्या को दुनिया के लिए बड़ा खतरा भी माना जाता है। रोहिंग्या से सबसे ज्यादा खतरा तो भारत को है, जहाँ पर अब तक तक़रीबन 40 हज़ार से भी ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान शरण ले चुके हैं। रोहिंग्या मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या ये है कि उन्हें कोई भी देश अपनी नागरिकता नहीं देना चाहता है। ऐसे में इन शरणार्थियों की मजबूरी का फायदा उठाकर आतंकी संगठन इन्हें बहकाकर आतंकी घटनाओं में शामिल करने का प्रयास कर सकते हैं। ऐसे इनपुट मिलने की वज़ह से भारत समेत दुनिया के अन्य देशों के लिए भी रोहिंग्या मुसलमान नासूर बनते जा रहे हैं।
रोहिंग्या मुसलमान कैसे अस्तित्व में आये और कैसे ये दुनिया के लिये आतंकवाद का नया गढ़ साबित होते जा रहे हैं, इसे समझने के लिये हमें रोहिंग्या मुसलमान के अस्तित्व की तह में जाना होगा। ऐसे में चलिए थोड़ा संक्षेप में रोहिंग्या मुसलमानों के इतिहास को समझने की कोशिश करते हैं।
रोहिंग्या मुसलमानों का अस्तित्व
रोहिंग्या मुसलमानों की सर्वाधिक संख्या म्यांमार देश मे है। म्यांमार में रोहिंग्या की आबादी 10 लाख के करीब है। इन्हें दुनिया की सर्वाधिक उपेक्षित और पीड़ित समुदाय के रूप में जाना जाता है। रोहिंग्या सुन्नी मुस्लिम हैं, जो बांग्लादेश के चटगांव में प्रचलित बांग्ला भाषा बोलते हैं। अपने ही देश में बेगाने हो चुके रोहिंग्या मुस्लिमों को कोई भी देश अपनाने को तैयार नहीं। म्यांमार खुद उन्हें अपना नागरिक नहीं मानता है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक करीब 10 लाख रोहिंग्या बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान सहित पूर्वी एशिया के कई देशों में शरण लिए हुए हैं।
500 सालो तक म्यांमार में रहने के बाद भी नहीं हासिल हुई नागरिकता
अगर बात करें रोहिंग्या समुदाय के इतिहास की तो रोहिंग्या समुदाय 15वीं सदी के शुरुआती दशक में म्यांमार के रखाइन इलाके में आकर बस गया था। लेकिन स्थानीय बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय ने उन्हें आज तक नहीं अपनाया है। ऐसे में म्यांमार में तकरीबन 500 सालो तक रहने के बाद भी रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार में नागरिकता नहीं मिल सकी है। लेकिन फिर भी रोहिंग्या मुसलमान वहाँ पर आराम से रह रहे थे।
रोहिंग्या मुसलमानों की मुसीबत तब शुरू हुई जब म्यांमार में सैन्य शासन लागू हुआ। म्यांमार में सैन्य शासन आने के बाद रोहिंग्या समुदाय के सामाजिक बहिष्कार को बाकायदा राजनीतिक फैसले का रूप दे दिया गया।
रोहिंग्या पर हिंसा के लिये म्यांमार की हो चुकी है विश्व भर में निंदा
साल 2012 में रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या के बाद रोहिंग्या और बौद्धों के बीच व्यापक दंगे भड़क गए। तब से म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा जारी है। वहाँ से लगातार रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर भेजे जाने का एक्शन लिया जाता रहा है। हालांकि म्यांमार की सरकार इससे इंकार करती रही है। साल 2017 में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगाए गए हैं। शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजी जा चुकीं म्यांमार की मौजूदा स्टेट काउंसलर आंग सान सू की भी रोहिंग्या समुदाय पर अत्याचारों को लेकर आलोचना होती रही है। उन पर अपने ही देश में व्यापक पैमाने पर हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन के प्रति आंखें मूंदे रखने का आरोप लगाया जाता रहा है। म्यांमार में रोहिंग्या बहुल क्षेत्र रखाइन प्रांत में तो पत्रकारों के जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। जिस पर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एम्नेस्टी इंटरनेशनल अपनी आपत्ति भी जाहिर कर चुका है।
हमदर्दी से ज्यादा आंतरिक सुरक्षा का सवाल
म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह जिस भी देश में शरण ले रहे हैं, वहां उन्हें हमदर्दी की बजाय आंतरिक सुरक्षा के खतरे के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन इसके पीछे भी वज़ह है। वज़ह ये है कि रोहिंग्या मुसलमान बहुत ही प्रताड़ित हैं और वो खुद को दुनिया से कटा हुआ महसूस करते हैं। ऐसे में बहुत से आतंकी संगठन उनकी इस मनोदशा का फायदा उठाकर उनसे आतंकी घटनाएं भी करवा सकते हैं। यहाँ तक कि कई आतंकी घटनाओं में रोहिंग्या मुसलमानों की संलिप्तता भी देखी जा चुकी है। ऐसे में कोई भी देश रोहिंग्या के साथ हमदर्दी दिखाकर खुद के लिये ही खतरा मोल नहीं लेना चाहता है। रोहिंग्या को म्यांमार से इसी वज़ह से बाहर किया जा रहा है। और इसी वजह से अन्य देश भी इन्हें शरण देने को राजी नहीं। भारत सरकार भी अपने यहां रह रहे करीब 40,000 रोहिंग्या मुसलमानों को आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा मानती है। भारत सरकार को ऐसे खुफिया इनपुट भी मिले हैं कि पाकिस्तान से ऑपरेट कर रहे टेरर ग्रुप इन्हें अपने चंगुल में लेने की साजिश में लग गए हैं। ऐसे में सरकार भारत में शरण ले चुके 40 हजार रोहिंग्या शरणार्थियों को देश की सुरक्षा में सेंध के तौर पर देख रही है।
भारत के लिये रोहिंग्या बड़ी चिंता का विषय
भारत सरकार के सामने 40 हजार रोंहिग्या मुस्लिमों की रोजी-रोटी से कहीं बड़ा सवाल देश की सुरक्षा का है, जो सर्वोपरि है। सरकार को रोटी, कपड़ा और मकान की दिक्कतों से जूझते रोहिंग्या आबादी के आतंकी संगठनों के झांसे में आसानी से आ जाने की आशंका है। अब तक भारत मे शामिल हो चुके तक़रीबन 40 हज़ार रोहिंग्या पहले ही देश के लिए मुसीबत बने हुए हैं। उनके लिए रोजी-रोटी का इंतज़ाम देश के लिए चिंता का विषय तो है ही, लेकिन उससे ज्यादा चिंता की बात देश के भीतर ही रह रहे इन रोहिंग्या मुसलमानों से देश की सुरक्षा का है।
रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर करने के लिये भारत सरकार ने उच्चतम न्यायालय में रोहिंग्या मुसलमानों को अवैध आप्रवासी बताते हुए उन्हें देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया है। सरकार ने कहा है कि म्यांमार के रोहिंग्या लोगों को देश में रहने की अनुमति देने से भारतीय नागरिकों के हित प्रभावित होंगे और तनाव पैदा होगा। इस मामले में गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी मुकेश मित्तल द्वारा न्यायालय को सौंपे लिखित जवाब में बताया जा चुका है कि, सरकार को देश के व्यापक हितों में निर्णय लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ रोहिंग्या मुसलमान, आंतकवादी समूहों से जुड़े हैं जो जम्मू, दिल्ली, हैदराबाद और मेवात क्षेत्र में अधिक सक्रिय हैं। इन क्षेत्रों में इनकी पहचान भी की गई है। सरकार ने ये भी आशंका जाहिर की है कि कट्टरपंथी रोहिंग्या भारत में बौद्धों के खिलाफ भी हिंसा फैला सकते हैं। खुफिया एजेंसियों का हवाला देते हुए सरकार ने कहा कि इनका संबंध पाकिस्तान और अन्य देशों में सक्रिय आतंकवादी संगठनों से है और ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकते हैं।
सभी प्रभावित देशों को मिलकर लेना चाहिए रोहिंग्या मुसलमानों के प्रवास पर फैसला
तक़रीबन 500 सालों से म्यांमार में रह रहे रोहिंग्या समुदाय को म्यांमार अपने देश से बाहर कर रहा है। बांग्लादेश इन्हें शरण देने को तैयार नहीं। भारत समेत अन्य एशियाई देशों में रहते हुए ये वहाँ की सुरक्षा में सेंध लगा सकते हैं, ऐसे में भारत भी रोहिंग्या को अपने यहाँ शरण दे नहीं सकता। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर रोहिंग्या मुसलमान जाएं तो जाएं कहाँ..? दुनिया का कोई भी देश इतनी आबादी वाले समुदाय को अपने हिस्से में शामिल करने को किसी भी हालत में तैयार नहीं है। ऐसे में बेहतर होगा कि रोहिंग्या से प्रभावित देश आपसी सहमति से इनके प्रवास के लिए कोई बीच का रास्ता निकालें।