जानिए 155 साल पहले की तरह क्यों लगेगा कुंभ मेला, इस बीमारी के कारण तब भी किया गया था सोशल डिस्टेंसिंग का पालन

एक बार फिर भारत का कुंभ मेला अब सोशल डिस्टेंसिंग के साथ लगाया जा रहा है। इससे पहले भी कई मौके ऐसे आए थे जब सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कुंभ मेले का आयोजन किया गया था उस समय पूरे विश्व पर प्लेग की महामारी का साया था।

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आप सभी जानते हैं कि पूरे विश्व समेत भारत पर कोरोना संक्रमण का साया है और इसी समय हरिद्वार में इस बार कुंभ का मेला लगना है। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है कि जब कुंभ के मेले में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाएगा। इससे पहले भी पांच मौके ऐसे आए थे,जब सोशल डिस्टेंसिंग के साथ कुंभ मेले का आयोजन किया गया था। 1844,1855,1866,1879 और 1891 का कुंभ का मेला भी इसी प्रकार की एक महामारी के बीच संपन्न हुआ था। 1844 में जब कुंभ का मेला ब्रिटिश सरकार के कार्यकाल में लगा था तो उन्होंने बाहरी लोगों के आने पर पाबन्दी लगा दी थी और ज्यादा सोशल डिस्टेंसिंग के साथ यह कुंभ का मेला संपन्न हुआ था।

155 साल पहले 1866 में हुए कुंभ के दौरान पहली बार सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया था। इस बात का जिक्र गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की एक पुस्तक में मिलता है जिसके अनुसार 1866 में संतों अखाड़ों ने भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया था। प्लेग महामारी के कारण ब्रिटिश सरकार ने उस समय खुले में शौच करने पर रोक लगा दी थी,जगह-जगह पर कूड़ेदान रखे गए थे घाटों पर गंदगी एकत्रित नहीं होने दी जा रही थी। वर्ष 1796 के बाद 1808, 1820,1832, 1844, 1855, 1866, 1879, 1891, 1903, 1915, 1927, 1938, 1950, 1961,1974, 1986, 1998, 2010 के बाद अब 2021 में कुंभ मेले का आयोजन हो रहा है।

बताया जाता है कि पिछली दो शताब्दियों में जब देश में प्लेग महामारी फैली तो कुंभ तथा अर्ध कुंभ मेलों में संक्रमण फैल गया और हजारों की संख्या में मौतें हुई। वर्ष 1844 में हरिद्वार कुंभ में संक्रमण फैला था इसके बाद तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने शक्ति की और कुंभ मेले में हरिद्वार आने वाले यात्रियों को रोकना प्रारंभ कर दिया। इसके बीच जब आस्था के सवाल को लेकर प्रश्न पूछे जाने लगे तो ब्रिटिश सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा और बाद में कुंभ मेले को महामारी के साए के बीच में ही संपन्न कराया गया।

यह बताया जाता है कि से 1892 में हरिद्वार हैजे की चपेट में पूरी तरह से आ चुका था। वही 1893 और 1897 को भी महामारी के कारण ही याद किया जाता है। बुधकर अपनी पुस्तक में वर्णन करते हैं कि 1708 में कुंभ में हरिद्वार में सन्यासियों और बैरागियों के बीच भयंकर युद्ध हो गया। जिसमें बहुत बड़ी संख्या में साधु संत मारे गए। 1819,1927,1938,1950 तथा 1986 के कुंभ वर्ष हरिद्वार के लिए निरापद रहे।

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