दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की आने वाली किताब सियासी गलियारों में घमासान मचा कर रख दी है। जबसे चर्चा में ये किताब आई है तब से कांग्रेस पार्टी में चिंता भी चल रही है। कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने इसपर सफाई देते हुए कहा कि पूर्व राष्ट्रपति की नई किताब को पूरी तरह पढ़े बिना किसी भी प्रकार की टिप्पणी करना सही नहीं है। पूर्व केंद्रीय मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने कहा कि किताब का अभी तक विमोचन नहीं हुआ है और समझना होगा कि मुखर्जी ने किस परिप्रेक्ष्य में ये बातें लिखी हैं।
आपको बता दे कि, पूर्व केंद्रीय मंत्री एम. वीरप्पा मोइली मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का हिस्सा थे। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘जब तक पूरी तरह किताब को नहीं पढ़ते हैं, मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं।’ प्रकाशक ‘रूपा बुक्स’ ने शुक्रवार को घोषणा की कि जनवरी 2021 में ‘द प्रेसीडेंशियल ईयर्स’ (The Presidential Years) का वैश्विक स्तर पर विमोचन किया जाएगा। गौरतलब है कि, पूर्व राष्ट्रपति पांच दशकों से ज्यादा समय तक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे।
वहीं, मुखर्जी ने पार्टी नेताओं के इन विचारों का जोरदार खंडन किया है कि अगर वह 2004 में प्रधानमंत्री बनते तो 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी हार को टाल देती। रूपा की तरफ से जारी किताब के कुछ अंश में उन्होंने लिखा है, “मैं इस विचार को नहीं मानता, मेरा मानना है कि मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद पार्टी नेतृत्व ने राजनीतिक फोकस खो दिया। सोनिया गांधी जहां पार्टी मामलों को देखने में विफल हो गईं, वहीं सदन से लंबे समय तक अनुपस्थित रहने से डॉ. सिंह ने अन्य सांसदों से व्यक्तिगत संपर्क खो दिया।”
प्रकाशक से मिली जानकारी के अनुसार, इस किताब में बंगाल के एक सुदूर गांव में लैंप की रोशनी में पलने-बढ़ने से लेकर राष्ट्रपति भवन में भारत के प्रथम नागरिक के तौर पर उनकी यात्रा का वर्णन है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने भी सफाई देते हुए कहा कि टिप्पणी करने से पहले किताब को पूरी तरह पढ़ने की जरूरत है। खुर्शीद ने ने कहा, “इतना व्यापक अनुभव वाला कोई व्यक्ति अगर कुछ लिखता है तो पूरा पढ़ने की जरूरत है कि किस परिप्रेक्ष्य में ऐसा लिखा गया है।”
किताब के कुछ अंश
“अगर मैं प्रधानमंत्री बनता तो 2014 में कांग्रेस की नहीं होती ऐसी हालत’
इस किताब में मुखर्जी लिखते हैं, ‘कुछ पार्टी सदस्यों का यह मानना था कि अगर 2004 में वह प्रधानमंत्री बनते तो 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस करारी हार वाली स्थिति में नहीं आती। हालांकि इस राय से मैं इत्तेफाक नहीं रखता। मैं यह मानता हूं कि मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद पार्टी नेतृत्व ने राजनीतिक दिशा खो दी। सोनिया गांधी पार्टी के मामलों को संभालने में असमर्थ थीं, तो मनमोहन सिंह की सदन से लंबी अनुपस्थिति से सांसदों के साथ किसी भी व्यक्तिगत संपर्क पर विराम लग गया।”
‘मनमोहन सिंह बारे में दो टूक’
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, “मेरा मानना है कि शासन करने का नैतिक अधिकार प्रधानमंत्री के साथ निहित होता है। देश की संपूर्ण शासन व्यवस्था प्रधानमंत्री और उनके प्रशासन के कामकाज का प्रतिबिंब होती है। डॉक्टर सिंह गठबंधन को बचाने में व्यस्त रहे जिसका शासन पर असर हुआ, जबकि नरेंद्र मोदी अपने पहले कार्यकाल में शासन की अधिनायकवादी शैली को अपनाए हुए प्रतीत हुए जो सरकार, विधायिका और न्यायपालिका के बीच तल्ख रिश्तों के जरिए दिखाई दी।”