क्या है आयुर्वेदिक सर्जरी का आदेश, जिसका IMA कर रहा विरोध

सरकार द्वारा आयुर्वेद (Ayurveda) के पोस्टग्रेजुएट डॉक्टरों को सर्जरी (Ayurveda surgery) करने की इजाजत देने के बाद से ही लगातार एलोपैथिक डॉक्टरों की संस्था आईएमए (IMA) इस फैसले के विरोध में है. सवाल उठता है कि इस फैसले में ऐसा क्या है कि इसका विरोध हो रहा है?

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भारत सरकार (Govt OF India) ने 20 नवंबर के अपने गजट नोटिफिकेशन के जरिए चिकित्सा के क्षेत्र में आयुर्वेद (Ayurveda) को और बढ़ावा देने के लिए आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टरों को सर्जरी (Ayurveda Surgery) करने की परमिशन देने का फैसला लिया था। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) लगातार इस फैसले के विरोध में है।

एलोपैथिक डॉक्टरों की आपत्तियां?

आईएमए (IMA) का कहना है कि चिकित्सा पद्धतियों के बीच में एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिये। IMA के मुताबिक CCIM खुद के प्राचीन लेखों से सर्जरी की अलग शिक्षण प्रक्रियाएं तैयार करे और सर्जरी के लिए मॉडर्न मेडिसिन के तहत आने वाले विषयों पर दावा न करे। साथ ही आईएमए ने आरोप लगाए कि CCIM की नीतियों में अपने छात्रों के लिए मॉडर्न मेडिसिन से जुड़ी किताबें मुहैया कराकर इलाज के दोनों तरीकों को मिलाने की कोशिश हो रही है। IMA ने यह भी कहा कि सर्जरी आधुनिक मेडिकल साइंस का हिस्सा है और इसे आयुर्वेद के साथ मुख्यधारा में नहीं लाया जा सकता।

ये है नया फैसला

भारत सरकार ने 20 नवंबर के अपने नोटिफिकेशन के जरिये आयुर्वेदिक डॉक्टरों को 58 तरह की सर्जरी करने की इजाजत दी है। यानी देश के आयुर्वेदिक पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर भी एलोपैथिक डॉक्टरों की तरह ऑपरेशन कर सकेंगे। इन 58 तरह की सर्जरी में हड्डी रोग, आंखों की सर्जरी, कान-गला और दांत की सर्जरी, स्किन ग्राफ्टिंग, ट्यूमर की सर्जरी, हाइड्रोसील, अल्सर, पेट की सर्जरी शामिल हैं।

आयुष मंत्रालय का स्पष्टीकरण

आयुर्वेदिक पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टरों को सर्जरी करने की परमिशन देने के आदेश के आईएमए के विरोध के बाद आयुष मंत्रालय ने स्पष्टीकरण जारी किया था। मंत्रालय ने अपने स्पष्टीकरण में कहा था कि यह कोई नया आदेश नहीं है। इसकी घोषणा साल 2016 में ही कर दी गई थी। साथ ही आयुष मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि आयुर्वेदक डॉक्टर सिर्फ 58 सर्जरी ही कर सकते हैं, उसके अलावा और कोई सर्जरी नहीं।

2500 साल पुरानी सुश्रुत संहिता में है जिक्र

वहीं आयुर्वेद में सर्जरी के इतिहास की बात करें तो महर्षि सुश्रुत को सर्जरी का जनक माना जाता है। जब पश्चिमी देश सभ्यता के संकट से झूझ रहे थे तब ही 2500 साल पहले सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता (Sushruta Samhita) में सर्जरी के 100 से ज्यादा तरीके लिख दिए। इतना ही नहीं देश के एलोपैथिक चिकित्सक भी महर्षि सुश्रुत को ही सर्जरी का जनक मानते हैं। मॉडर्न सर्जरी की किताबों तक में महर्षि सुश्रुत को ‘फादर ऑफ सर्जरी’ माना जाता है।

कई वर्षों से थी मांग

अगर आयुर्वेदिक कोर्सेस की बात करें तो आयुर्वेदिक डॉक्टरों के पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स में भारत सरकार द्वारा मंजूर 58 सर्जरी की पढ़ाई पिछले कई दशकों से बतौर उनके पाठ्क्रम में शामिल है। इतना ही नहीं आयुर्वेदिक पोस्ट ग्रेजुएट्स के पाठ्यक्रम में इन सर्जरी की पढ़ाई शामिल होने के बाद भी सरकारों ने आयुर्वेदिक डॉक्टरों को उनके अधिकारों से वंचित रख कर सर्जरी की अनुमति नहीं दी थी, जिसकी पिछले कई वर्षों से आयुर्वेद चिकित्सक मांग कर रहे थे।

गौरतलब है कि कोरोना महामारी के वैश्विक संकट के दौरान भारत के सदियों पुराने आयुर्वेद को दुनिया भर में अपनाया गया है। भारत सरकार ने कोविड-19 से लड़ने के प्रयासों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक संघटकों के उपयोग की सफल रणनीति बनाई है और दुनिया के कई देशों को आयुर्वेदिक दवाइयों और मसालों का निर्यात किया है। आयुर्वेद मार्केट से संबंधित प्रसिद्ध मैक्सिमाइज मार्केट रिसर्च के मुताबिक, भारत में आयुर्वेदिक दवाइयों का बाजार आकार वर्ष 2019 में करीब 4.5 अरब डॉलर मूल्य का था, जो वर्ष 2026 तक बढ़कर 14.9 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। देश और दुनिया में आयुर्वेद का बाजार निश्चित रूप से बढ़ रहा है, लेकिन कई ऐसी चुनौतियां हैं, जो इस बाजार को ऐलोपैथिक बाजार जैसी ऊंचाइयों से रोकते हुए दिखाई दे रही हैं। ये चुनौतियां आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था से संबंधित हैं।

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