सामान्य वर्ग के लिए बना आरक्षण अभिशाप, अब आरक्षण के नियमों में फ़ेरबदल की जरूरत

आरक्षण के असली लाभ को समाज तक पहुँचाने के लिये अभी भी काफी कदम उठाये जाने जरूरी हैं। सरकार को ऐसे नियमों की सूची तैयार करनी होगी जिससे आरक्षण का लाभ उन्हें मिल सके, जो इसके असली हक़दार हैं। जिन्हें इसकी जरूरत है। सिर्फ़ जाति के आधार पर समाज के लोगो से दोहरे किस्म का व्यवहार समाज के लिए जहर है।

0
419
student

मौजूदा हालात में देश के विकास के मार्ग में जितना बड़ा रोड़ा जनसंख्या वृद्धि है उतना ही बड़ा रोड़ा आरक्षण भी है। वैसे तो देश में जातिगत आरक्षण की शुरुआत समाज के पिछड़े और निर्धन दलितों के उत्थान के लिये हुई थी। लेकिन यहाँ पर सवाल ये है कि क्या समाज मे पिछड़े और निर्धन होने का प्रमाण पत्र सिर्फ़ दलित वर्ग के पास है..? क्या समाज की अन्य उच्च जातियों में गरीबी नहीं हैं…या क्या उनके पास संसाधन की कमी नहीं है? आखिर जाति के हिसाब से किसी को पिछड़ा हुआ और विरक्त कैसे माना जा सकता है?

जातिगत आरक्षण आज से तक़रीबन 70 वर्ष पूर्व आजादी के समय देश की जरूरत थी। लेकिन अब देश के हालात बदल चुके हैं। अब सिर्फ दलित ही पिछड़े नही रह गए हैं। सामान्य वर्ग के लोग भी आर्थिक बदहाली को झेल रहे हैं। दलित भी अब आर्थिक रूप से सशक्त होते दिख रहे हैं। इसके बावजुद भी वो जातिगत आरक्षण का लाभ लेते नजर आ रहे हैं। जिसकी उन्हें आवश्यकता भी नहीं है। वहीं समाज के सामान्य वर्ग के निर्धनों को आरक्षण की काफी जरूरत है, फिर भी वो आरक्षण के लाभ से कोसो दूर हैं।

समय बदला तो परिस्थितियां भी बदली, अब आरक्षण के नियमों में बदलाव की जरूरत

समय के साथ ही अब परिस्थितियां भी बदली हैं। अतः अभी के अनुसार जो जरूरी है वह किया जाना चाहिए। अब समय आ गया है कि देश के विकास और प्रगति के लिए जातिगत आरक्षण को हटा दिया जाना चाहिए, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब यह नीति नासूर बनकर देश और समाज के लिए अभिशाप बन जाएगी।

राजनीति जाति के आधार पर समाज को बांटने का काम कर रही है। आरक्षण अब देश के लिए एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है। सोचने का विषय है कि जातिगत आरक्षण की नीति देश को विकास की ओर ले जा रही है या फिर पतन की ओर। क्योंकि आरक्षण के चलते योग्य उम्मीदवार का चयन न होकर अयोग्य उम्मीदवार का चयन हो जाता है। प्रायः ऐसा ही होता है कि जिस वर्ग के लिए जो आरक्षण है उसे उस आरक्षण का लाभ देने के लिए यदि उस वर्ग विशेष में योग्य उम्मीदवार नहीं है तो अयोग्य उम्मीदवार को चुन लिया जाता है, भले ही वो उस पद के लिए बिल्कुल अयोग्य हो।

जातिगत आरक्षण देश के विकास के मार्ग का रोड़ा है

अब समय आ गया है कि देश के सारे बुद्धिजीवी, जनता और सरकार इस पर विचार मंथन करे कि इस प्रकार की आरक्षण नीति के कारण हमारा देश उन्नति की जगह कहीं अवनति की ओर तो नहीं जा रहा है? जातिगत आधार पर आरक्षण के बजाय आर्थिक रूप से लाचार व कमजोर व्यक्तियों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने पर विचार किया जाना चाहिए।

यह भी किसी से छिपा नहीं है कि हर जाति और वर्ग में गरीब लोग पाये जाते हैं, जिनके पास मूलभूत सुविधाएं नहीं होती हैं। वे अपने बच्चों को समाज के अन्य सक्षम लोगों के अनुसार शिक्षा प्रदान करने में लाचारी महसूस करते हैं। अतः गरीब बच्चों को अच्छी शिक्षा हेतु हर तरह से आर्थिक मदद दी जानी चाहिए जिससे वे औरों के मुकाबले खड़े हो सकें और अपनी योग्यता को साबित कर सकें।

आरक्षण में सुधार लाने का रास्ता आसान नहीं

हालांकि आरक्षण हटाना इतना आसान भी नहीं है क्योंकि यह लम्बे समय से चला आ रहा है, लेकिन यह भी सही है कि हर समस्या के साथ समाधान हमेशा मौजूद रहता है, बस जरूरत है उचित प्रयास करने की। इसके लिए वोट बैंक की राजनीति करने वालों को अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर देश के हित में सोचना होगा। यह भी सही है कि बदलाव लाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है परन्तु उज्जवल और प्रगतिशील भविष्य के लिए यह बदलाव बहुत जरूरी है।

हालाँकि सरकार द्वारा अब आरक्षण व्यवस्था में सुधार की तरफ ध्यान दिया जा रहा है। सामान्य वर्ग के भी आर्थिक रूप से कमजोर लोगो को 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ दिया जाना इस बात का संकेत है। लेकिन ये प्रयास अभी काफी नही है। आरक्षण के असली लाभ को समाज तक पहुँचाने के लिये अभी भी काफी कदम उठाये जाना जरूरी हैं। सरकार को ऐसे नियमों की सूची तैयार करनी होगी जिससे आरक्षण का लाभ उन्हें मिल सके, जो इसके असली हक़दार हैं। जिन्हें इसकी जरूरत है। सिर्फ़ जाति के आधार पर समाज के लोगो से दोहरे किस्म का व्यवहार समाज के लिए जहर है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here