किसानों की समस्या और कृषि में सुधार का मुद्दा देश का सबसे बड़ा और पुराना मुद्दा रहा है। 2014 में जब केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आई तो सरकार ने कृषि के सुधार हेतु कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने की बात कही थी। इसी तर्ज पर वर्तमान में मोदी सरकार ने संसद में तीन विधयकों को पारित कर दिया। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शायद ही कभी सोचा होगा कि कृषि क्षेत्र में बड़े बदलाव को लेकर उनका ये कदम उनके गले की सबसे बड़ी हड्डी बन जाएगा। केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए इन तीनो विधेयकों के खिलाफ देश के लगभग हर राज्य में व्यापक प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान समेत देश के कई बड़े राज्यों से किसान दिल्ली कूच कर चुके हैं। दिल्ली कूच कर चुके सभी किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। किसानों की मांग है कि सरकार इस कानून को वापस ले। हालांकि सरकार की ओर से फिलहाल इस कानून को वापस लेने की कोई बात सामने नहीं आ रही है।
केंद्र सरकार और किसान अब पूरी तरह से आमने सामने हैं। मोदी सरकार किसानों से कई बार कृषि बिल को लेकर बातचीत भी कर चुकी है। लेकिन किसान सरकार की किसी भी बात को सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। किसानों की मांग सिर्फ बिल को वापस लेने की है जो फिलहाल सरकार के लिए नामुमकिन नजर आ रहा है। ऐसे में अब सवाल ये है कि यहां से सरकार किसानों के रोष को शांत करने का रास्ता कैसे ढूंढेगी? सरकार को कुछ और विकल्प तलाशने की जरूरत है। जिनके जरिए कृषि कानूनों से संबंधित किसानों की समस्याओं को हल किया जा सकता है।
किसानों के विरोध का कारण?
कृषि बिल को वापस लेने की मांग के पीछे का कारण किसानों का भय है। दरअसल किसानों को लगता है कि इस बिल के आने के बाद निजीकरण को प्रोत्साहन मिलेगा और इससे होर्डर्स और बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा। किसानों की मांग ये भी है कि किसानों को लिखित में आश्वासन दिया जाए कि एमएसपी और कन्वेंशनल फूड ग्रेन खरीद सिस्टम खत्म नहीं होगा। केंद्र सरकार ने हाल ही में पराली जलाने पर किसान को 5 साल की जेल और 1 करोड़ रुपये के जुर्माने का प्रावधान भी रखा है। जिस कारण से किसानों में सरकार के इस कानून को लेकर भी रोष है और वह प्रदर्शन के जरिए सरकार से इस प्रावधान को खत्म करने की मांग कर रहे हैं।
सरकार के पास और क्या है विकल्प?
किसानों और सरकार के बीच लगातार हुई असफल बैठकों के बाद अब सवाल ये है कि सरकार के पास और क्या विकल्प है जिसके जरिए वह किसानों के इस प्रदर्शन को शांत कर सके?
MSP की गारंटी
सभी किसान प्रमुख कृषि उत्पादन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP की गारंटी देने वाले कानून की मांग कर रहे हैं। किसान एक तरह से उत्पादन के मूल्य की गारंटी चाहते हैं। लेकिन सरकार बेहतर मूल्य के सुधारों पर ध्यान दे रही है। दूसरी तरफ MSP की गारंटी देने से सरकार के सामने कुछ आर्थिक दिक्कतें पैदा हो सकती है। हालांकि सरकार MSP में थोड़ा सुधार कर इस प्रणाली को किसानों के साथ वार्ता में एक विकल्प के तौर पर रख सकती है। किसानों के लिए भी MSP की गारंटी देना उनकी सबसे बड़ी समस्या का हल माना जाएगा।
पराली जलाने के कानून पर रोक
केंद्र सरकार के खिलाफ किसानों के इस प्रदर्शन का कारण हाल ही में बनाया गया कानून है। बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से अक्टूबर में दिल्ली-एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग स्थापित करने के लिए एक अध्यादेश लाया गया था। जिसके तहत किसान को पराली जलाने पर 5 साल की जेल और 1 करोड़ रुपये के जुर्माने का प्रावधान रखा गया था। जिसने किसानों को और नाराज कर दिया। किसानों को अब ऐसा लगने लगा है कि केंद्र बलपूर्वक किसानों पर अपना अधिकार थोप रही है। ऐसे में सरकार किसानों की इस समस्या को हल करने के लिए एक सब्सिडी योजना ला सकती है। इसके तहत पराली को जलाने से रोकने के लिए प्रति क्विंटल धान खरीद के लिए सरकार किसानों के खातों में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर कर सकती है। जिसके चलते किसान प्रदूषण के खिलाफ कानून के प्रावधान से बाहर आ सकते है।
बिजली बिल में सुधार
किसानों की ओर से कृषि कानून के अलावा बिजली बिल 2020 को लेकर भी सरकार के खिलाफ भारी प्रदर्शन किया जा रहा है। दरअसल केंद्र सरकार ने 17 अप्रैल को लॉकडाउन के बीच बिजली संशोधन बिल 2020 का ड्राफ्ट जारी कर दिया था। किसानों ने तभी से इसका विरोध शुरू कर दिया था। किसानों का कहना है की इस बिल के बाद बिजली वितरण प्रणाली का निजीकरण हो जाएगा। जिसके बाद उपभोक्ताओं को मिलने वाली सब्सिडी अपने आप खत्म हो जाएगी। अगर केंद्र सरकार इस बिल में कुछ सुधार करती है तो किसानों का प्रदर्शन खत्म हो सकता है।
कब तक जारी रहेगा किसानों का प्रदर्शन?
दिल्ली की लगभग सभी सीमाओं पर डटे किसान पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि अगर सरकार ने उनकी मांगो को नहीं सुना तो वह अगले 6 महीने तक प्रदर्शन को जारी रख सकते हैं। इतना ही नहीं, किसानों के संगठनों का कहना है कि वह आने वाले समय मे दिल्ली को पूरी तरह से जाम कर सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो यह व्यापार अन्य गतिविधियां बुरी तरह से प्रभावित सकता है। दिल्ली के कई रुट पहले ही डाइवर्ट हैं। जिसकी वजह से दिल्ली की आम जनता को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा की अगर सरकार ने किसानों के लिए अन्य विकल्प नहीं तलाशे तो आने वाले समय मे दिल्ली की स्थिति और बिगड़ सकती है।