आजादी के बाद यूं तो देश कई मामलों में काफी आगे निकल आया है। आजादी के पश्चात कई चीजों में बदलाव देखने को मिला लेकिन अगर सदियों बाद भी कुछ नहीं बदला तो वो थी किसानों की दुर्दशा। पिछले कुछ सालों में औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण कृषि योग्य क्षेत्रफल में निरंतर गिरावट देखने को मिली है। किसान अपने हक से लगातार वंचित रहें है। यही कारण है कि अब किसानों को सरकार के खिलाफ एक होकर सड़कों पर उतर आना पड़ा है। देशभर के कई राज्यों के हजारों किसान सरकार के कृषि बिल के खिलाफ सड़कों पर जमकर प्रदर्शन कर रहें है। पंजाब सरकार के अलावा सभी अन्य राजनैतिक दल इस समय एक तरफ दिखाई रहें है।
दरअसल किसानों का यह प्रदर्शन केंद्र सरकार के कृषि बिल के खिलाफ है। किसानों का कहना है कि ये बिल उनके हक में नहीं है। ऐसे में किसानों का सरकार के खिलाफ आवाज उठाना लाजमी है। लेकिन पिछले कुछ घंटो में जिस तरह का माहौल अन्य राज्यों खासकर पंजाब में बना है उसे देखने के बाद स्पष्ट होता दिखाई दे रहा है कि किसानों के इस प्रदर्शन को कहीं ना कहीं राजनैतिक संरक्षण जरूर मिला है। हरसिमरत कौर बादल का स्टैंड किसानों के साथ स्पष्ट है। इस मुद्दे से उन्हें केंद्र में वापस लौटने का मौका मिल गया है। दूसरी ओर कांग्रेस भी किसानों के खिलाफ राजनीति करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही।
किसानों का प्रदर्शन
पंजाब और हरियाणा के किसानों ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। गुरुवार की सुबह अचानक किसानों ने दिल्ली की ओर कूच कर दिया। किसानों को हरियाणा बॉर्डर पर जगह-जगह रोका गया। उग्र होते किसानों पर सीमा पर रोकने के लिए वॉटर कैनन का इस्तेमाल भी किया गया। कई जगाहों पर किसानों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई। जिस तरह से किसानों ने दिल्ली बॉर्डर में घुसने की कोशिश की उसे देखने के बाद ऐसा लग रहा था मानो यह प्रदर्शन लंबे समय तक खत्म नहीं होने वाला। किसानों की मांग है कि नए कानून में एमएसपी सुनिश्चित की जाए और मंडियां ना खत्म हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही इस कानून को लेकर किसानों की नाराजगी दूर कर चुके हैं लेकिन अब अचानक किसानों का यह रोष इस मुद्दे पर हो रही राजनीति की तरफ साफ इशारा कर रहा है।
क्या अन्नदाताओं के प्रदर्शन पर हो रही है राजनीति?
प्रदर्शनों में शामिल लोग बड़ी संख्या में रसद सामग्री और ओढने-पहनने का इंतजाम करके दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। जिसे देखने के बाद केंद्र का आरोप हैं कि इसके लिए प्रदर्शनकारी किसानों को पीछे से राजनीतिक दलों की ओर से पूरी मदद मुहैया करवाई जा रही है। लगातार उग्र होते जा रहे इस प्रदर्शन में भाजपा को छोड़ सभी अन्य दल आग में घी डालने का काम कर रहें है। अकाली दल, जो कुछ सप्ताह पहले तक अध्यादेशों का बचाव कर रहा था, अब प्रदर्शनकारी किसानों में शामिल हो गया है। विपक्ष किसानों के हित का समाधान करने की बजाय किसानों के प्रदर्शन को जारी रखने की कवायद में जुटा है। 2022 में पंजाब में चुनाव होने है। किसान हमेशा से हर पार्टी के कोर वोटर्स माने जाते है। ऐसे में कोई पार्टी किसानों को नाराज़ नहीं करना चाहती। लेकिन जब पूरा देश कोरोना महामारी से लड़ रहा है तो क्या ऐसे में इस से किसानों पर राजनीति करना किस हद तक उचित माना जा सकता है?
आखिर ये बवाल क्यों?
किसानों का ये विरोध सरकार के कृषि विधेयक को लेकर है। पंजाब, हरियाणा व राजस्थान के किसान 26 से 28 नवंबर तक के दिल्ली कूच पर निकले हैं। पंजाब और हरियाणा के किसान सरकार द्वारा पारित किए गए कृषि विधेयक को वापस लेने की मांग कर रहे है। किसान संगठनों का कहना है कि एमएसपी किसानों की आय का एकमात्र स्रोत है और ये नए क़ानून इसे ख़त्म कर देंगे। किसान चाहते है कि सरकार MSP को बहाल करें तो मंडियों को खत्म ना करने का भरोसा दे। दूसरी तरफ़ केंद्र और किसानों के बीच इस बिल को लेकर पिछले 3 महीनों में कई बार बातचीत हो चुकी है।
आम जनता को हो रही है परेशानी
एक तरह किसान और केंद्र कृषि बिल को लेकर आमने सामने है तो वहीं दूसरी तरफ आम जनता को इस प्रदर्शन से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और राजस्थान से आए किसानों को रोकने के लिए हरियाणा और दिल्ली सीमा पर बैरिकैटिंग की गई है। किसानों के ‘दिल्ली चलो मार्च’ के कारण हरियाणा को दिल्ली से जोड़ने वाली ज्यादातर सड़कों पर आम जन को जाम से जूझना पड़ रहा है। कई सीमाओं पर सुबह से ही गाड़ियों की लंबी कतारें देखने को मिल रही है। दफ्तर जाने वाले लोगों को अपने काम काज पर जाने के लिए कई घंटों के जाम का सामना करना पड़ रहा है।