2014 के बाद सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण यानी प्राइवेटाइजेशन एक बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। 2014 और उसके बाद से लगातार 2019 में दूसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने वाले नरेंद्र मोदी की सरकार के आने के बाद निजीकरण शब्द ने जोर पकड़ लिया है। हालांकि सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण कोई नया वाक्य नहीं है। 1991 में भारत ने अपनी आर्थिक विचारधाराओं में कुछ बड़े नीतिगत बदलाव किए थे। आर्थिक दृष्टिकोण से यह अर्थव्यवस्था में ठहराव और धीमी वृद्धि का कारण बना। इन समस्याओं से निपटने के लिए, तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने सरकार के सामने कुछ बड़े आर्थिक सुधार पेश किए। जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के तौर पर देखा गया।
अर्थशास्त्र में निजीकरण का बहुत व्यापक अर्थ है। इसे कुछ इस तरह भी समझा जा सकता है कि, वह सब कुछ जो निजी पूंजी की शुरूआत से लेकर सरकारी स्वामित्व वाली संपत्तियों को निजी अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करने तक के लिए होता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में समझे तो भारत का राजकोषीय घाटा 6.45 लाख करोड़ रुपए का है। इसका मतलब ख़र्चा बहुत ज़्यादा और कमाई कम। ख़र्च और कमाई में 6.45 लाख करोड़ का अंतर। तो इससे निपटने के लिए सरकार अपनी कंपनियों का निजीकरण और विनिवेश करके पैसे जुटाती है।
निजीकरण का अर्थ
निजीकरण या जिसे प्राइवेटाइजेशन भी कहा जाता है, का अर्थ अलग-अलग चीजों से हो सकता है। इस प्रक्रिया के तहत सार्वजनिक क्षेत्र से कुछ को निजी क्षेत्र में स्थानांतरित करना होता है। निजीकरण के तहत सरकार अपनी कंपनी में 51 फीसदी या उससे ज़्यादा हिस्सा किसी कंपनी को बेचती है जिसके कारण कंपनी का मैनेजमेंट सरकार से हटकर ख़रीदार के पास चला जाता है। निजीकरण के साथ अकसर विनिवेश को भी जोड़ कर देखा जाता है। हालांकि विनिवेश और निजीकरण एक दूसरे से काफी अलग है। विनिवेश में सरकार अपनी कंपनियों के कुछ हिस्से को निजी क्षेत्र या किसी और सरकारी कंपनी को बेचती है।
निजीकरण के फायदे
- निजी कंपनियों को हमेशा सार्वजनिक कंपनियों की तुलना में बेहतर प्रोत्साहन मिलता है। उनकी आय कंपनी के प्रदर्शन से संबंधित होती है, जबकि सार्वजनिक कंपनियों में ऐसा प्रोत्साहन मौजूद नहीं है। इसलिए निजीकरण अर्थव्यवस्था को गति देने में सहायक होता है।
- निजीकरण से बाजार में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ाता है। यह उपभोक्ताओं के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा तथा आर्थिक दृष्टिकोण से भी निजीकरण काफी फायदेमंद साबित होगा।
- दूरसंचार और पेट्रोलियम जैसे अनेक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार समाप्त हो जाने से अधिक विकल्पों और सस्ते तथा बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं के चलते उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी।
- भारत सरकार का तर्क है कि सरकारी कंपनियों का निजीकरण आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया के तहत किया जा रहा है। ऐसे में आने वाले समय में इससे रोजगार के कई अवसर प्राप्त हो सकते हैं।
- सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण के बाद जनता को हर क्षेत्र में बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी।
निजीकरण भारत के लिए क्यों जरूरी?
पिछले दो दशकों में निजीकरण लगातार अपना वर्चस्व साबित कर रहा है। जहां-जहां निजी क्षेत्र ने कदम बढाए हैं लोगो की परेशानियां कम हुई हैं। लोग निजीकरण से संतुष्ट भी दिखाई दे रहे हैं। निजीकरण के बाद ज़िंदगी बेहतर हुई है सेवाएं उनको घर बैठे बैठे मिल रही हैं। निर्माण क्षेत्र, आवास, बैंक, दूरसंचार, मनोरंजन क्षेत्रों में आया बदलाव इसका जीता जागता उदाहरण है। बदलती सदी को देखते हुए सड़क, रेल, आधारभूत सरंचना के निर्माण में पी पी पी यानि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की आवश्यकता हो चली है। इस समय रेलवे जैसी सबसे बड़ी सरकारी सेवा के भी निजीकरण की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है। रेलवे के निजीकरण के बाद जन सुविधाओं के सामने आने वाली दिक्कतों का समाधान आसानी से किया जा सकेगा।
मोदी सरकार के प्राइवेटाइजेशन का कारण?
देश इस समय आर्थिक संकट से जूझ रहा है। युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। बैंकों की स्थिति भी इस समय अनुकूल नहीं है। यही कारण है कि केंद्र सरकार की ओर से लगातार तर्क दिया जा रहा है कि सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण होने के बाद सरकारी कंपनियों में कामकाज का तरीक़ा प्रोफेशनल हो जाएगा। निजीकरण के बाद काम-काज के तरीक़े में बदलाव होगा और कंपनी को प्राइवेट हाथों में बेचने से जो पैसा आएगा उसे जनता के लिए बेहतर सेवाएं मुहैया करवाने में लगाया जा सकेगा।
क्या मोदी सरकार को मिलेगा इसका फायदा
जिस तरह से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण लगातार वित्तीय संबधित फैसले ले रही हैं उसे देखने के बाद एक बात तो साफ है कि रेलवे स्टेशन और रेलगाड़ियों से लेकर हवाईअड्डों, कंटेनर कॉर्पोरेशन, शिपिंग कॉर्पोरेशन, हाइवे परियोजनाओं, एअर इंडिया, भारत पेट्रोलियम तक सबका निजीकरण होने वाला है। निजीकरण के बाद नियंत्रण करने वाले हाथ पूरी तरह से बदल जाएंगे। मोदी सरकार इस बात से बिलकुल परहेज नहीं कर सकती कि 2016 में की गई नोटबंदी और लागू की गई जीएसटी के कारण भी आर्थिक सुस्ती आई है। ऐसे में सरकारी कंपनियों का निजीकरण अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में केंद्र सरकार के लिए एक कारगार उपाय साबित हो सकता है। सार्वजनिक क्षेत्रों का निजी हाथों में जाने से उनके बेहतर इस्तेमाल और उनकी बेहतर सेवा से व्यवस्थागत लाभ होगा, जो कि निजीकरण का असली मकसद है।