असदुद्दीन ओवैसी से लेकर हामिद अंसारी को है राष्ट्रवाद से परेशानी, वंदे मातरम और भारत माता की जय बोलने में भी लगता है डर, फिर कैसे भारतवासी?

एआईएमआईएम पार्टी के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी और उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी एक बार फिर राष्ट्रवाद के मुद्दे पर घिर गए है। हामिद अंसारी ने हाल ही में कोरोना की तुलना राष्ट्रवाद से की है जबकि ओवैसी और उनकी पार्टी के नेता अभी भी भारत माता की जय और वंदे मातरम से साफ इंकार कर रहे है।

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एआईएमआईएम पार्टी के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का नाम विपक्ष के उन चुनिंदा राजनेताओं में दर्ज है जिनके साथ केंद्र सरकार के नेता समेत पत्रकार भी बड़े अदब के साथ पेश आते है। ओवैसी को बिना रोक टोक के प्रधानमंत्री तक पर तीखी टिप्पणी और अपनी बात रखने का मौका दिया जाता है। जब ओवैसी पर बीजेपी-विरोधी वोटों को बांटने का आरोप लगता है तो राजनीतिक टिप्पणीकार सवालों की बौछार के साथ उनके पक्ष में खड़े हो जाते हैं लेकिन बात जब ओवैसी और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं के राष्ट्रवाद की आती है तो यही बुद्धिजीवी कुछ भी बोलने से पीछे हट जाते है। हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में जब ओवैसी की पार्टी ने पिछले कुछ राज्यों में हुए चुनावों से बेहतर प्रदर्शन किया तो हर किसी को यही लगा था कि ओवैसी की राजनीति यहां से पूरी तरह से बदल जाएगी। बरहाल ऐसा नहीं हुआ। असदुद्दीन ओवैसी एक बार फिर अपने बयान को लेकर सवालों के घेरे में खड़े हो गए है। हैरान करने वाली बात ये है कि इस बार उनके साथ देश के पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी भी है।

भारत में यूं तो राष्ट्रवाद पर बहस अकसर छिड़ी रहती है लेकिन इसकी शुरुआत असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी के बयानो के बाद ही होती है। उनकी पार्टी के कार्यकर्ता सभाओं के दौरान भारत माता की जय और वंदे मातृम का जयघोष करने से साफ इंकार कर देते है। अब सवाल ये है कि जिस भारत माता की जय और वंदे मातरम के जयघोष को स्वतंत्रता के समय देश की अखण्डता का प्रतीक माना जाता था उससे एआईएमआईएम पार्टी को क्या परेशानी है? क्या इसके बाद असदुद्दीन ओवैसी के राष्ट्रवाद पर सवाल उठना लाजमी नहीं है?

भारत माता की जय कितना सही?

भारत माता की जय का उद्दोष कितना सही और कितना गलत है इस सवाल का जवाब शायद ही किसी के पास हो लेकिन एक बात स्पष्ट है कि इस शब्द से केवल राष्ट्रविरोधियों को ही परेशानी होती है। स्वतंत्रता से पहले और बाद में हुए अनोकों युद्ध के दौरान हिंदू-मुस्लिम, सिख, ईसाई और आजादी के सभी दीवाने भारत माता की जय बोलने में गर्व महसूस करते थे। विकिपीडिया पर भी स्पष्ट शब्दों में इस बात का उल्लेख किया गया है कि भारत माता की जय की वंदना करने वाली यह उक्ति स्वत्रंता संग्राम के सेनानियों में नए उत्साह का संचार करती थी। लेकिन धर्म के कुछ ठेकेदारों से अब इसे चुनावी वोट बैंक तक ही सीमित कर दिया है।

असदुद्दीन ओवैसी को परेशानी क्यों?

भारत माता की जय और वंदे मातरम को लेकर एआईएमआईएम सांसद अकसर विवादों में घिरे रहते है। कुछ वर्षों पहले ओवैसी ने महाराष्ट्र के लातूर में कहा था कि मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा चाहे मेरे गले पर चाकू चला दीजिए। भले ही संविधान में भारत माता की जय ना बोलना गैरकानूनी ना माना जाता हो लेकिन इस तरह के बयान ओवैसी की राष्ट्रविरोधी मानसिकता को दर्शाने के लिए काफी है।

मुस्लिमों के लिए मुसीबत बने ओवैसी?

एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी सीधे तौर पर भारतीय मुसलमानों के एक ही लीडर हैं। इस समय भारतीय मुसलमानों का राष्ट्रीय स्तर का कोई नेता है। ऐसे में ओवैसी का हर बयान भारतीय मुस्लिमों की छवि पर पूरी तरह से अपनी छाप छोड़ता है। भारतीय मुस्लिमों की राष्ट्र के प्रति अखण्डता और देश प्रेम आज तक किसी से छिपा नहीं है। भारत में रहने वाले करोड़ों मुस्लिम भारत माता की जय और वंदे मातरम बोलने से भी नहीं कतराते लेकिन कहीं ना कहीं ओवैसी के बयानों और राष्ट्रवाद को लेकर मानसिकता के बाद ऐसा प्रतीत होने लगा है कि वह खुद के साथ देश के करोड़ों मुस्लिमों के लिए नई मुसीबत खड़ी करते जा रहें है।

हामिद अंसारी भी ज्यादा पीछे नहीं

उप राष्ट्रपति के पद पर देश की सेवा करने वाले हामिद अंसारी भी अब ओवैसी की भाषा बोलने पर उतारू हो गए है। ऐसा हम नहीं कर रहें बल्कि हाल ही में दिए जाने वाले उनके बयान इस बात की व्याख्या करने के लिए काफी है। दरअसल, एक वर्चुअल कार्यक्रम में हामिद अंसारी ने कहा था कि “कोरोना महामारी संकट से पहले ही भारतीय समाज दो अन्य महामारियों- ‘धार्मिक कट्टरता’ और ‘आक्रामक राष्ट्रवाद’ का शिकार हो चुका था।” अंसारी यहीं नहीं रुके, उन्होनें आगे कहा इन दोनों के मुक़ाबले ‘देश प्रेम’ ज़्यादा सकारात्मक अवधारणा है क्योंकि यह सैन्य और सांस्कृतिक रूप से रक्षात्मक है।”

हामिद अंसारी और ओवैसी तू डाल डाल मैं पात पात की नीति अपनाएं हुए है। सोशल मीडिया पर हामिद अंसारी के इस बयान की आलोचना हो रही है। हालांकि अंसारी के लिए यह नई बात नहीं। इससे पहले भी वह राष्‍ट्रवाद और धार्मिक कट्टरता से जुड़े बयान दे चुके है। आज से 3 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने हर सिनेमा घर मे वंदे मातरम हर फिल्म से पहले अनिवार्य कर दिया था। अदालतें समाज का हिस्‍सा हैं। तो अदालतें जो कहती हैं वह कई बार समाज के माहौल का प्रतिबिंब होता है। तब उन्होंने कहा था ‘मैं इसे असुरक्षा की भावना कहूंगा… दिन-रात अपना राष्‍ट्रवाद दिखाने की बात फिजूल है… मैं एक भारतीय हूं और इतना काफी है।’ यह बात उन्‍होंने बतौर उप राष्‍ट्रपति आखिरी दिन कही थी। ऐसे में सवाल ये है कि ओवैसी और हामिद अंसारी को राष्ट्रवाद से किस तरह की परेशानी है? भले ही कानून में भारत माता की जय और वंदे मातरम का उद्गोश अनिवार्य ना हो लेकिन भारतवासी होने के नाते हर शख्स का कर्तव्य है कि वह इस उक्ति के संवाद के संचार को पूरी एकता और अखंडता के साथ करें।

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