जानिए गन्ने की छाल से कैसे कम हो सकता है प्रदूषण, वैज्ञानिकों ने निकाला इको फ्रेंडली बर्तन बनाने का नया तरीका

वैज्ञानिकों ने शोध करके गन्ने की छाल से बर्तन बनाने का एक नया तरीका निकाला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लास्टिक से बने बर्तनों को समाप्त होने में लगभग 450 साल का समय लगता है। वहीं गन्ने की छाल तथा बांस से तैयार किए गए बर्तन के खत्म होने में 30 से 45 दिन लगते हैं।

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आप सभी जानते हैं कि हमारी वातावरण को प्लास्टिक ने किस तरह से प्रदूषित किया है? किस तरह से प्लास्टिक से बनी वस्तुयें हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो रही हैं और हमारे आने वाले भविष्य के लिए भी बड़ी समस्या खड़ी कर रहे हैं? हम आपको बता दें अमेरिकी वैज्ञानिकों ने काफी सालों की खोज के बाद प्लास्टिक प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए एक नया तरीका निकाला है।यह तरीका है गन्ने की छाल और बांस की मदद से बर्तन तैयार करने का जो इस्तेमाल के बाद कम समय में आसानी से नष्ट हो जाते हैं। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार प्लास्टिक से बने बर्तनों को समाप्त करने में लगभग 450 साल का समय लगता है । वही प्राकृतिक रूप से बनाए गए बर्तनों को सर ने में केवल 30 से 45 दिन लगते हैं। 60 दिन बीते बीते इनका अस्तित्व पूरी तरह से मिट्टी में मिल जाता है । आप सभी जानते हैं कि प्लास्टिक के बर्तन में खाना खाने से हमारे स्वास्थ्य को काफी नुकसान होता है। इसीलिए डॉक्टर भी यह कहते हैं कि प्लास्टिक की थैलियों में कभी भी खाना पैक नहीं करना चाहिए।

हम आपको बता दें भारत वासियों की संस्कृति इतनी वृहद और इतनी पुरानी है कि विश्व के लोग भी इसकी ओर आकर्षित होते हैं। लेकिन हमारे यहां के तथाकथित शिक्षित लोग इस संस्कृति में कमियां निकालते हैं और इसका बहिष्कार करते हैं। आप सभी जानते हैं कि हमारे गांव में रहने वाले लोग आज भी अपनी दावतों शादियों में प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए बर्तनों का प्रयोग करते हैं। जर्मनी की लीफ रिपब्लिक नाम की कंपनी डिजाइनर और इंजीनियर का एक छोटा सा ग्रुप है जो पारंपरिक पतलू और दोनों के आईडिया से बड़े प्रभावित हैं और उन्होंने भारत की ऐसी संस्कृति को अपना लिया है। यह कंपनी पत्तों से प्राकृतिक बर्तन तैयार करती है।

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