5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 पूरी तरह से निष्प्रभावी कर दिया गया था। जिस आर्टिकल 370 ने पिछले 70 सालों से जम्मू कश्मीर के विकास में बाधा डाली, उसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पूरी तरह से खत्म कर दिया था। जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद राज्य के कई नेताओं ने केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध किया था। राज्य की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए केंद्र सरकार ने कई नेताओं को नजरबंद तक कर दिया था। जिसमें पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला जैसे बड़े नेताओं का नाम शामिल था। लेकिन अब महबूबा मुफ्ती के रिहा होने के साथ ही एक बार फिर जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक हलचल फिर बढ़ गई है।
हाल ही में गुपकार समझौते को लेकर पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं के बीच जम्मू-कश्मीर में बैठक हुई। इस बैठक की अध्यक्षता फारूक अब्दुल्ला ने की। फारूक अब्दुल्लाह की मानें तो उन्होंने यह बैठक 14 महीने बाद महबूबा मुफ्ती की रिहाई को लेकर बुलाई थी लेकिन सभी जानते हैं इस बैठक के पीछे का मकसद जम्मू कश्मीर से हटाए गए आर्टिकल 370 को वापस जम्मू कश्मीर में लागू किए जाने का था।
बैठक में शामिल हुए पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और अन्य दलों के नेताओं ने अनुच्छेद 370 हटाने को गलत ठहराया है और वापस इसे लागू करने की मांग की है। जम्मू कश्मीर को आर्टिकल 370 हटा कर विशेष दर्जा दिलाए जाने का समर्थन कांग्रेस ने भी किया था लेकिन जम्मू कश्मीर के राजनैतिक दल एक बार फिर केंद्र के इस फैसले के खिलाफ खड़े नजर आए हैं। पूरा देश 370 को अस्थाई करने के साथ खड़ा है, ऐसे में पीडीपी नेशनल कांफ्रेंस और अन्य राजनीतिक दलों के तेवर देखकर यह स्पष्ट होता है कि जम्मू कश्मीर के नेता धारा 370 हटाने के खिलाफ नहीं, देश की एकता के खिलाफ एकत्रित हुए हैं।
क्या है गुपकार समझौता?
जम्मू कश्मीर के नेताओ ने जो बैठक बुलाई जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, पीपल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन, पीपल्स मूवमेंट के नेता जावेद मीर और माकपा नेता मोहम्मद युसूफ तारिगामी शामिल हुए। इस राजनीतिक बैठक को ‘गुपकार समझौता’ का नाम दिया गया। पिछले साल जब जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाया गया था तब घाटी में हलचल काफी तेज हो गई थी। उस दौरान घाटी के सभी राजनीतिक दलों ने एक साझा बयान जारी किया था। उस बयान में धारा 370 और 35ए को हटाना असंवैधानिक बताया गया। सभी नेताओं ने जारी बयान में कहा कि इससे लद्दाख और जम्मू कश्मीर के लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इसी को बाद में गुपकार समझौता का नाम दिया गया।
370 हटने के बाद पहली मीटिंग
जम्मू कश्मीर से 370 हटे 1 साल से ज्यादा का समय बीत गया है लेकिन अभी भी पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस के नेता केंद्र के इस फैसले को मानने को बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं। 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने और नजरबन्द नेताओं की रिहाई के बाद ये पहला मौका था जब जम्मू कश्मीर के राजनैतिक दल एकत्रित हुए हों। सभी नेताओं ने अनुच्छेद 370 हटाने के दिन को ‘काला दिन’ बताकर इसे वापस लागू करने की मांग की है।
फारूक अब्दुल्ला द्वारा बुलाई गई इस बैठक में जो गठबंधन बना उसे ‘पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन’ नाम दिया गया है। फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि उनके पास भविष्य की सभी योजनाओं का पूरा प्लान तैयार है यानी कि नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे आने वाले समय में आर्टिकल 370 हटाए जाने के खिलाफ कुछ बड़ा कदम उठा सकते हैं। साथ ही उन्होंने कहा है कि यह हमारी संवैधानिक लड़ाई है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से जो छीन लिया गया, उसकी बहाली के लिए हम संघर्ष करेंगे।
370 हटाए जाने से क्या परेशानी?
370 हटाए जाने के बाद जिन नेताओं को हिरासत में लिया गया था उसमें फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे बड़े नेताओं का नाम शामिल था। अब फिलहाल सभी नेताओं की रिहाई हो चुकी है। रिहा होते ही इन्होंने एक बार फिर आर्टिकल-370 को हटाए जाने के खिलाफ और जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को वापस लाने के लिए अलग-अलग पहल भी शुरू कर दी है। मौजूदा स्थिति को देखें तो पिछले डेढ़ साल में जम्मू कश्मीर पूरी तरह से बदल चुका है राज्य में विकास को गति देने के लिए नयी परियोजनाओं की शुरुआत हो चुकी है।
जम्मू कश्मीर और घाटी के लोगों ने खुद केंद्र के इस फैसले का स्वागत किया है। लेकिन क्या कारण है कि कुछ राजनैतिक दल लगातार इस फैसले को चुनौती देने की कवायद में जुटे हुए हैं। 1990 के दशक से जम्मू कश्मीर को कहीं न कहीं केंद्र सरकार द्वारा ही चलाया जा रहा था, लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी पार्टियों ने जम्मू कश्मीर में अपनी पूरी पकड़ बनायी हुई थी। वहीं अब 370 हटने के बाद पूरी घाटी केंद्र के अधीन आ गई है। जहाँ राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद घाटी का हर निर्णय केंद्र के अधीन ही होगा। ऐसे में PDP और नेशनल कॉन्फ्रेंस को अपने अस्तित्व को लेकर थोड़ा भय जरूर होगा जिसके चलते वह लगातार 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने के बाद केंद्र के खिलाफ मुहिम छेड़ रहे हैं।
देश की एकता से डरे PDP और नेशनल कॉन्फ्रेंस?
जम्मू कश्मीर से 370 को हटाना केंद्र का पहला मकसद था। भाजपा और उनके पूर्ववर्ती संगठनों ने इस बात को कभी नहीं छुपाया कि इस अनुच्छेद को भंग करना उनकी पार्टी का मूलभूत दर्शन रहा है। लेकिन किसने सोचा था कि यह 2019 लोकसभा के चुनावो के कुछ महीनों बाद ही देखने को मिल जाएगा। पूरे देश ने एक सुर में मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया।
साथ ही जम्मू कश्मीर के उज्जवल भविष्य को घाटी को आतंकमुक्त करने के लिए केंद्र की इस पहल का साथ भी दिया लेकिन अब जम्मू कश्मीर के नेताओं की ओर से लगातार जारी बैठकों ने एक बार फिर देश में शांति के माहौल को भंग करने के संकेत दे दिए हैं। कुछ वामपंथी दल और PDP समेत नेशनल कॉन्फ्रेंस को ये रास नहीं आ रहा की आखिर इतनी आसानी से इतने बड़े फैसले को कैसे लागू कर दिया गया? ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा की जम्मू कश्मीर में नेता 370 हटाए जाने के खिलाफ नहीं बल्कि देश की एकता के खिलाफ एकत्रित हुए हैं।