कुम्भ का मेला लगाना कांग्रेस के लिए साम्प्रदायिक है, जबकि मदरसों पर खर्च धर्म निरिपेक्ष

कांग्रेस पार्टी के नेता उदित राज ने कहा, ''सरकार द्वारा कोई भी धार्मिक शिक्षा या अनुष्ठान नहीं किए जाने चाहिए। सरकार का खुद का कोई धर्म नहीं होता है। यूपी सरकार इलाहाबाद में कुंभ मेले के आयोजन में 4200 करोड़ रुपये खर्च करती है, वह भी गलत है।''

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सांकेतिक चित्र

भारत मे धर्म और जाति की राजनीति कोई नई बात नही हैं। दशकों से राजनीतिक पार्टियां हिंदी मुस्लिम और ऊँच नीच की जाति पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकती नजर आयी हैं। इन पार्टियों के लिये किसी खास धर्म या जाति से कोई लगाव नही है, इन्हें बस अपने वोट से लगाव है। वोट के लिए ये दिखावे के तिलक लगाने को भी तैयार है और टोपी भी पहनने को तैयार हैं। ये मंदिर में जाकर घंटी भी बजायेंगे और मस्जिद मे बैठकर कलमा भी पढेंगे। समय की माँग और वोट की ताकत को देखते हुए ये पल-पल में अपना भी धर्म और जाति बदलते हुए देखे जाते हैं। राजनीति के आकाओं का लोगो को धर्म और जाति के आधार पर बाँटना कोई नई बात नही है।

लेकिन किसी धर्म विशेष के लिए किए गए खुद के कार्यों को धर्म निरपेक्ष बताना और अन्य के कार्यों को सांप्रदायिक बताना आखिर किस तरह की राजनीति कही जाएगी?

संस्कृति को साम्प्रदायिकता का रंग देना कहाँ तक सही है?

इस बात में कोई सन्देह नही है कि भारत एक सनातन धर्म वाला राष्ट्र है। यहाँ की संस्कृति और परंपरा को कभी नहीं बदला जा सकता है। ऐसे में अगर इस संस्कृति और परंपरा को जीवित रखने के लिए कोई कार्य किया जाता है तो उसे साम्प्रदायिक कहना कहाँ तक सही है? हम बात कर रहे हैं, भारत में लगने वाले कुम्भ मेले की, जो कि सदियों से भारतीय संस्कृति की पहचान के रूप में विश्व विख्यात है। लेकिन धर्म की राजनीति में अंधी कांग्रेस पार्टी के लिए कुम्भ मेले का आयोजन साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देना है। उनके अनुसार अगर कोई सरकार कुम्भ मेले के आयोजन की तैयारी कर रही है या कुम्भ मेले को लगवा रही है तो वो किसी धर्म विशेष को ज्यादा महत्व देने का प्रयास कर रही है। अब कांग्रेस को ये कौन बताये की कुम्भ का मेला किसी धर्म विशेष का या सम्प्रदाय का मेला नही है, बल्कि ये भारतीय संस्कृति की पहचान है और जिसमे देश विदेश के लोग इस संस्कृति में आस्था की डुबकी लगाने के लिए आते हैं।

लेकिन कांग्रेस पार्टी के अनुसार कुम्भ का मेला लगाना साम्प्रदायिक है। जबकि कांग्रेस पार्टी के लिए मदरसों के विकास के लिए 90 प्रतिशत तक का अनुदान करना साम्प्रदायिक नही है। जी हाँ.. कांग्रेस पार्टी वाले राज्य राजस्थान में मदरसों के विकास के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 90 प्रतिशत तक का अनुदान देने का ऐलान किया है। इसके बाद भी कांग्रेस धर्म निरपेक्ष है।

कांग्रेस के अनुसार कुम्भ के मेले पर 4200 करोड़ खर्च करना गलत

अभी हाल ही में कांग्रेस पार्टी के नेता उदित राज ने कुंभ मेले को लेकर बयान दिया है। उन्होंने धार्मिक आयोजनों में सरकारी खर्चे पर सवाल उठाते हुए कहा है कि कुंभ मेले में सरकार द्वारा 4200 करोड़ रुपये खर्च किया जाना गलत है।

कांग्रेस नेता उदित राज का कहना है कि किसी भी सरकार को न तो किसी धर्म को बढ़ावा देना चाहिए और न ही उसे नीचा दिखाना चाहिए। उदित राज ने ट्वीट किया, ”सरकार द्वारा कोई भी धार्मिक शिक्षा या अनुष्ठान नहीं किए जाने चाहिए। सरकार का खुद का कोई धर्म नहीं होता है। यूपी सरकार इलाहाबाद में कुंभ मेले के आयोजन में 4200 करोड़ रुपये खर्च करती है, वह भी गलत है।”

इस कुत्सित मानसिकता से कांग्रेस क्या हासिल करना चाहती है?

अभी तक कांग्रेस पार्टी के लिए श्री राम काल्पनिक थे। कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी तो कुम्भ मेले को ही बंद करने की वकालत कर चुकी है। ऐसे में अब इनके द्वारा कुम्भ मेले का लगना, साम्प्रदायिक माना जाना कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन ताज्जुब की बात ये है कि कांग्रेस के लिए मदरसों के विकास के लिए पैसे खर्च करना धर्म निरपेक्ष है। अपने इस खर्च को धर्म निरपेक्ष बताना और कुम्भ के मेले पर किये गए खर्च को साम्प्रदायिक बताना कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व की कुत्सित मानसिकता को दर्शाता है। सत्ता से कई वर्ष बाहर रहने के बावजूद कांग्रेस पार्टी धर्म की राजनीति करने से बाज नही आ रही है। दिन पर दिन गर्त की ओर अग्रसर कांग्रेस अपने ढर्रे से हटने को तैयार नही है।

अब देखना ये होगा कि कांग्रेस पार्टी की ये कुत्सित मानसिकता उन्हें किस मुकाम पर लेकर जाती है।

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