आज भारत की राजनीति के लिए ऐतिहासिक दिन है 28 साल से चल रहे मुकदमे का आज निर्णय आया है। 28 साल पहले 6 सितंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराया गया था, जिसके बारे में हमेशा यह कहा जाता रहा है और हिंदुओं की आस्था है कि वहां भगवान राम का मंदिर था। इस मामले की 28 साल बाद आज लखनऊ की विशेष अदालत ने इस मामले में 32 आरोपियों को बरी कर दिया है। इस पर राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा हो रही है। इसी बीच ए आई एम आई एम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने तंज कसते हुए कहा है, ” दुनिया जानती है कि बी जे पी, आर एस एस, विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना और कांग्रेस पार्टी की मौजूदगी में विध्वंस हुआ था। इसकी जांच कांग्रेस पार्टी है इनकी हुकूमत ने मूर्तियां रखी गई थी। ” इसके अलावा उन्होंने ट्विटर पर ट्वीट करते हुए लिखा, ” वही क़ातिल वही मुंसिफ़ अदालत उस की वो शाहिद बहुत से फ़ैसलों में अब तरफ़-दारी भी होती है”
वही क़ातिल वही मुंसिफ़ अदालत उस की वो शाहिद
बहुत से फ़ैसलों में अब तरफ़-दारी भी होती है— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) September 30, 2020
इसके अलावा शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने इस मामले पर कहा है, ” न्यायालय ने जो कहा है यह कोई साजिश नहीं थी। यही निर्णय अपेक्षित है। हमें उस एपिसोड को भूल जाना चाहिए। अब अयोध्या में राम मंदिर बनने जा रहा है। अगर बाबरी का विध्वंस नहीं होता तो आज जो राम मंदिर का भूमि पूजन हुआ है वह दिन हमें देखने को नहीं मिलता। ”
आज लखनऊ सीबीआई की विशेष अदालत ने 2015 में इस मामले का निर्णय दिया न्यायालय ने कहा कि सीबीआई ने इस मामले की वीडियो फुटेज की कैसेट पेश की थी। उनके दृश्य स्पष्ट नहीं थे और ना ही कैसेट को सील किया गया था। घटना की तस्वीरों के नेगेटिव भी अदालत में पेश नहीं किए गए। अदालत ने कहा कि 6 दिसंबर 1992 को दोपहर 12:00 बजे तक सब कुछ ठीक था। मगर उसके बाद विवादित ढांचा के पीछे से पथराव शुरू हुआ। विश्व हिंदू परिषद के नेता विवादित ढांचे को सुरक्षित रखना चाहते थे क्योंकि ढांचे में रामलला की मूर्तियां रखी थी। उन्होंने उन्हें रोकने की कोशिश की थी और कारसेवकों के दोनों हाथ व्यस्त रखने के लिए जल और फूल लेने को कहा था।