बिना कुश के नहीं होता पूर्वजों का तर्पण, जानिए कुश के धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व

कुश का भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण योगदान है मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के वराह अवतार के शरीर से कुशा बनी है। और इसका उपयोग पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान किया जाता है।

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भारतीय संस्कृति एक अनूठी संस्कृति है जिसमें पेड़ पौधों नदी से लेकर वातावरण की प्रत्येक उपलब्धि को पूजा जाता है। इसी में एक और उपलब्धि का नाम भी शामिल है जिसे वेदों और पुराणों के अनुसार कुशा, दर्भ या डाभ भी कहा जाता है। यह एक प्रकार की घास होती है और मत्स्य पुराण के अनुसार यह माना जाता है वराह अवतार के शरीर से कुशा बनी थी इसे हिंदू धर्म के अनुष्ठान तथा पूजा पाठ में उपयोग किया जाता है। यह माना जाता है बिना कुशा के पूर्वजों का तर्पण नहीं किया जा सकता। पूजा पाठ के स्थान को पवित्र करने के लिए कुश से जल छिड़का जाता है। लेकिन इसके अलावा कुछ घास का एक वैज्ञानिक महत्व भी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस घास का उपयोग दवाइयों में किया जाता है, कुश घास यूनिफिकेशन की एजेंट है।

धार्मिक महत्व

1. यदि हिंदू धर्म के अनुसार कुछ के धार्मिक महत्व को जानने का हम प्रयास करें तो यह माना जाता है कि यह घास भगवान विष्णु के वराह अवतार से बनी है इसी कारण से इसे पवित्र माना जाता है। भगवान वराह ने जब हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को स्थापित किया तब अपने शरीर से लगे पानी को झाड़ा तब उनके शरीर से बाल पृथ्वी पर गिरे और वे कुशा के रूप में बदल गए।

2. महाभारत के प्रसंग के अनुसार जब गरुड़ देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने वह कलष थोड़ी देर के लिए कुश पर रख दिया। कुश पर अमृत कलश रखे जाने से कुश को पवित्र भी कहा जाने लगा। महाभारत के आदि पर्व के अनुसार राहु की महादशा में कुशा वाले पानी से नहाना पवित्र माना जाता है। महाभारत में ही कर्ण ने अपने पितरों का श्राद्ध कुश को धारण करके किया था।

आध्यात्मिक महत्व

यदि हम कुश के आध्यात्मिक महत्व की बात करें तो यह कहा जाता है कि पूजा पाठ और ध्यान के दौरान हमारे शरीर में एक ऊर्जा उत्पन्न होती है। कुश के आसन पर बैठकर पूजा-पाठ और ध्यान करने से वह ऊर्जा पैर के जरिए जमीन में चली जाती है। इसीलिए धार्मिक कामों में कुश की अंगूठी बनाकर तीसरी उंगली में पहनाई जाती है। ताकि आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगली में ना जाए। अनामिका को सूर्य का स्थान कहा जाता है सूर्य से हमें जीवन जीने की शक्ति और यश मिलता है और इसके अलावा एक और कारण यह भी है कि ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकती है।

वैज्ञानिक महत्व

कुश का वैज्ञानिक महत्व आचार्य बालकृष्ण बताते हैं जोकि आयुर्वेद विशेषज्ञ और पतंजलि योगपीठ के संस्थापक स्तंभ हैं।

1. अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण होने वाले दस्त में इसका काफ़ी उपयोग होता है। दो चम्मच कुश के जड़ के रस को दिन में तीन बार पीने से प्रवाहिका तथा छर्दि या उल्टी से आराम मिलता है।

2. 5 ग्राम कुशाद्य घी का सेवन करने से अश्मरी या स्टोन टूट कर बाहर निकल जाता है।

3. कुश आदि वीरतरवादि गण की औषधियों के काढ़े तथा रस आदि का सेवन करने से अश्मरी, मूत्र संबंधी रोग तथा मूत्राघात की समस्याओं तथा वात सम्बंधी बीमारियों से राहत मिलती है।

4. मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि। कुश इस बीमारी में बहुत ही लाभकारी साबित होता है।

5. त्रिफला, खदिर सार, कुश के जड़ आदि का काढ़ा बनाकर व्रण या अल्सर का घाव धोने से व्रण साफ हो जाता है।

6. कुश को जलाकर प्राप्त भस्म में घी या तेल मिलाकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है।

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